Terrace Farming: क्या है सीढीदार खेती, कब और कहाँ की जाती है, जानें पूरी डिटेल
Terrace Farming: भारत में सैकड़ों वर्षों से सीढ़ीदार खेती की जाती है। विशेष रूप से हिमालय और पश्चिमी घाटों के पहाड़ी क्षेत्रों में यह प्रक्रिया लोकप्रिय है। सीढ़ीदार खेती में पहाड़ों की ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेत होते हैं। इस प्रक्रिया में खेतों को एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी तक ले जाने वाली नालियों द्वारा जोड़ा जाता है। नालियों के माध्यम से पानी एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी तक बहता है और इस तरह मिट्टी का कटाव रुकता है और पानी का संरक्षण होता है।
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क्या है सीढ़ीदार खेती? सीढ़ीदार खेत ढलवा भूमि पर कृषि के उद्देश्य से पर्वतीय या पहाड़ी क्षेत्रों में बनाया जाता है। इन क्षेत्रों में मैदानी इलाकों की कमी के कारण पहाड़ों की ढलानों पर सीढियों के आकार के छोटे छोटे खेत बनाए जाते हैं, जो बारिश के पानी को बहने से रोकते हैं और मृदा अपरदन को कम करते हैं।
सीढ़ीदार खेती में उगाए जाने वाले फसलों का क्या नाम है?
सीढ़ीदार खेती में उगाए जाने वाले कुछ फसले निम्नलिखित हैं:
धान, अनाज, फल, सब्जियां, फूल, औषधि, सुगन्धित पौधे, मसाले आदि
सीढ़ीदार खेती के उद्देश्य: सीढ़ीदार खेती को प्रभावी ढंग से नियोजित किया गया है ताकि चर छेत्र में कृषि योग्य भूमि की संख्या को अधिकतम किया जा सके और मिटटी के कटाव और पानी के नुकसान को कम किया जा सके।
सीढ़ीदार खेती का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह पानी और मिटटी को बचाता है क्योंकि यह मिटटी के सतह के पार बढ़ने वाले जल और वेग को कम करता है, जो मिटटी के कटाव को कम करता है।
सीढ़ीदार खेती में बहुत से लाभ हैं। यह मिट्टी के कटाव को रोकता है, पानी को बचाता है और उपज को बढ़ाता है। यह पद्धति भूस्खलन को भी रोकने में मदद करती है।
क्या है सीढ़ीदार खेती? सीढ़ीदार खेती का इतिहास हजारों साल पुराना है। अमेरिकी पहाड़ों में रहने वाले इन्कलोको ने सीढ़ीदार खेती का अविष्कार किया था. लगभग 7,000 साल पुराने सीढ़ीदार खेती के सबसे पुराने प्रमाण चीन में पाए गए हैं।
भारत में सीढ़ीदार खेती लगभग 5,000 वर्ष पुरानी है। हिमालय और पश्चिमी घाटों के पहाड़ी क्षेत्रों में यह प्रक्रिया विशेष रूप से लोकप्रिय है।
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