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Farming Tips: सिंचाई जल का इस तरह करें सद्उपयोग, जानिए

Farming Tips: सिंचाई जल का सद्उपयोग - सिंचाई और कृषि का चोली-दामन का साथ है. सदियों से कृषि के प्रमुख आदानों में जल के महत्व को सभी जानते है. 
 
Farming Tips: सिंचाई जल का इस तरह करें सद्उपयोग, जानिए 

Farming Tips:भारतीय कृषि कुछ दशक पूर्व तक पूरी तरह से मानसून की दासी ही तो थी. बढ़ती जनसंख्या खाद्यान्नों के लिये बढ़ती मांग के चलते प्रति इकाई अधिक उत्पादन की ओर सभी संबंधितों का ध्यान गया और महसूस किया गया कि उत्पादन बढऩे के लिए सबसे जरूरी आदान जल है.

 

मानसून के प्राप्त जल से खरीफ का पेट तो भर जाता है. परंतु रबी की फसलों के लिये केवल भूमि में संचित नमी पर्याप्त नहीं हो सकती है. जरूरत अविष्कारों की जननी है परिणामस्वरूप देश में जगह-जगह छोटे, मध्यम तथा बड़े बांधों का निर्माण किया गया ताकि सदियों पुराने बने तालाब, नकलूप तथा कुएं के अलावा अतिरिक्त जल भंडार तैयार हो सके जिनसे फसलों की प्यास बुझाने के अलावा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके और उत्पादन बढ़ाया जा सके.

 

इन बांधों से कमांड क्षेत्रों का विस्तार हुआ नहरों का मकडज़ाल बिछाया गया और प्यासे खेतों तक सिंचाई की पुख्ता व्यवस्था की गई. सिंचाई का शाब्दिक मतलब होता है. सींचना/गीला करना ना की लबालब भरना. सींचने की परिभाषा को पकडक़र उसका अंगीकरण आज की जरूरत बन गई है.

आंकड़े बतलाते हैं धरा पर उपलब्ध जल का केवल 27 प्रतिशत ही उपयोगी है. समुद्र में भरा अथाह जल किसी काम का नहीं है अत: इस सीमित जल की बूंद-बूंद का उपयोग सावधानी से किया जाये.

उल्लेखनीय है कि बांधों की क्षमता कुल बोये जाने वाले क्षेत्र का 20-22 प्रतिशत ही पूरा कर सकता है एक हेक्टर असिंचित भूमि को सिंचित बनाने के लिए शासन को आज एक-दो दशक पहले एक लाख तक का खर्च आता था जो वर्तमान में दोगुना हो गया है इस कारण इस दिशा में प्रगति तो है परंतु अभी अपेक्षायें आगे भी हैं.

यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि एक बार सिंचाई के विस्तार के बाद फसल सघनता 100 प्रतिशत से बढक़र 200 और आंशिक क्षेत्रों में 300 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. यदि समझा जाये तो जहां-जहां भी सिंचाई के कदम आये वहां-वहां उल्लेखनीय प्रगति हुई ग्रामीण अंचलों में जहां साईकिल नहीं मिलती थी आज चार पहिये वाहनों, ट्रैक्टरों के ढेर लग चुके हैं.

यदि आकलन किया जाये जितना खर्च बांधों के निर्माण में किया गया उसका कई गुना धन कमाया जा चुका है. उदाहरण के लिये होशंगाबाद के तवा बांध के निर्माण, नहरों के मकडज़ाल बिछाने में कुछ करोड़ खर्च हुए केवल एक फसल सोयाबीन के लगाने और विस्तार से एक मौसम में ही वापस हो गये, दशकों से पड़े खरीफ के मौसम में खाली खेत आज हरियाली से भर गये. वर्तमान में क्षेत्र में धान का भी विस्तार हो रहा है गेहूं की उत्पादकता दो गुना बढ़ गई जो अपने आप में एक 'रिकार्ड' है.

सिंचाई के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है. जरूरत केवल इतनी ही है कि सिंचाई कब की जाये कितनी की जाये कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा प्रत्येक फसल की क्रांतिक अवस्था आज जगजाहिर है जिस पर सिंचाई की जाना जरूरी होता है जिसका असर उत्पादन पर फौरन पड़ता है.

उसका पालन किया जाये नहरों में बहता जल, बांधों में भरी जल सम्पदा केवल आज कृषकों की है, कृषकों के लिये ही है तो फिर उसका दुरुपयोग क्यों अधिक पानी मिट्टी के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालता है क्योंकि पानी के साथ उर्वरकों का भी उपयोग असंतुलित मात्रा में किया जाता है क्योंकि जल जीवन है तो उसका उपयोग भी जीने के उद्देश्य से ही किया जाये तो बेहतर होगा. सिंचाई और कृषि का यह चोली-दामन का साथ सदियों तक बना रहे इसी भावना से उसका सद्उपयोग प्रगति के मार्ग प्रशस्त करेगा.

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