Sedition Law: राजद्रोह कानून पर रोक, जानें सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की 5 बड़ी बातें
Haryana Update. इससे पहले केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानून पर रोक नहीं लगाने की अपील की थी और कहा कि पुलिस अधीक्षक (SP) या उससे ऊपर रैंक के अधिकारी की मंजूरी के बिना राजद्रोह संबंधी धाराओं में एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी.
देशद्रोह के तहत दर्ज नहीं होगा कोई भी मामला
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि जब तक केंद्र द्वारा कानून की समीक्षा पूरी नहीं हो जाती, तब तक देशद्रोह का कोई भी मामला दर्ज नहीं होगा.
यह कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में शामिल है. चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि जब तक केंद्र द्वारा देशद्रोह के प्रावधान की समीक्षा पूरी नहीं हो जाती, तब तक सरकारों को देशद्रोह के प्रावधान का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
Also Read This News-Google ने उठाया बड़ा कदम, Play Store से बैन किए ये Apps
आज के सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं कानून: SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार भी कोर्ट की राय से सहमत है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के प्रावधान आज के सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं हैं. चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें उम्मीद और भरोसा है कि केंद्र और राज्य सरकार धारा 124ए के तहत कोई केस नहीं करेंगे.
जिन पर पहले से केस दर्ज उनका क्या होगा?
चीफ जस्टिस एनवी रमना ने आदेश सुनाते हुए केंद्र और राज्य सरकार को कहा कि वो राजद्रोह कानून (Sediton Law) के तहत एफआईआर दर्ज करने से परहेज करें. जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा नहीं कर लेती है, तब तक इस कानून का इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा. कोर्ट ने कहा कि राजद्रोह कानून फिलहाल निष्प्रभावी रहेगा. हालांकि जो लोग पहले से इसके तहत जेल में बंद हैं, वो राहत के लिए कोर्ट का रुख कर सकेंगे.
Also Read This News-लॉन्च हुई कम कीमत वाली धमाकेदार Calling Smartwatch, जानिए गजब फीचर्स
राजद्रोह कानून पर क्या चाहती है सरकार?
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पुलिस अधीक्षक (SP) या उससे ऊपर रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था.
केंद्र ने राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में न्यायालय को सुझाव दिया कि इस प्रकार के मामलों में जमानत याचिकाओं पर शीघ्रता से सुनवाई की जा सकती है, क्योंकि सरकार हर मामले की गंभीरता से अवगत नहीं हैं और ये आतंकवाद, धन शोधन जैसे पहलुओं से जुड़े हो सकते हैं.
केंद्र की इस दलील को भी कोर्ट ने किया खारिज
केंद्र सरकार की तरफ से तुषार मेहता ने दलील देते हुए कहा कि देशद्रोह कानून पर रोक लगाने का फैसला देना गलत होगा. उन्होंने कहा कि लंबित मामलों में से हर मामले की गंभीरता के बारे में हमें मालूम नहीं है.
Also Read This News-Realme ला रहा दिल को लूटने वाला गजब 5G Smartphone, जानिए फीचर्स
इनमें से कुछ मामलों में टेरर ऐंगल कुछ केस मनी लॉन्ड्रिंग के भी हो सकते हैं. लंबित मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं और हमें उनकी प्रक्रिया पर भरोसा करना चाहिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र की दलीलों को खारिज कर दिया.