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Big Breaking, Drugs : ड्रग्स की लत के लिए बेचती हैं शरीर, मिले रुपए से खरीदती हैं पहले ड्रग्स फिर खाना

अक्सर गोल्डन टेंपल जाकर सोती थी. कई बार होटल के कमरे में रात बीतती, कभी सड़क किनारे भी. घर पर सोना क्या होता है, ये पता नहीं था. एक बार एक आंटी मिलीं. कहा कि मेरी भी तेरे जैसी बेटी है. तू मेरे घर सोने चली आ. किराया मत देना. सौदा (राशन) लाने के लिए कुछ दे देना.
 
Big Breaking, Drugs : ड्रग्स की लत के लिए बेचती हैं शरीर, मिले रुपए से खरीदती हैं पहले ड्रग्स फिर खाना

DRUGS : शाम गहराते ही सड़क किनारे खड़ी हो जाती हूं. अगर कोई ‘बंदा’ लगातार देख रहा हो, तो पास बुलाती हूं. जाते हुए वे जो पैसे देते हैं, उससे दो दिन का चिट्टा (DRUGS) जुट जाता है. बचे पैसों से खाना खरीद लेती हूं.

पंजाब में पुरुषों के बाद लड़कियां भी इस कदर ड्रग्स की चपेट में हैं कि इसके लिए वे अपनी देह बेचने पर मजबूर हैं. हाल में सोशल मीडिया पर इसको लेकर वीडियो भी वायरल हुआ था. मैंने सोचा क्यों न पंजाब जाकर ही इसकी पड़ताल की जाए. सो मैं मृदुलिका झा, पहुंच गई अमृतसर...

रात के करीब 10 बजे का वक्त. मानसिंह चौक पर बाजार के अंधेरे कोने में बैठी हूं, नशेड़ी झूमते हुए बगल से निकल रहे हैं. ड्रग्स, पसीने और पेशाब की मिली-जुली गंध नाक से होते हुए दिमाग तक घुस चुकी, लेकिन निधि का चेहरा बिल्कुल सपाट है. मानो वह साफ-सुथरे घर के ड्रॉइंगरूम में बैठी हों.

बीते 7 महीनों से चिट्टा ले रही तकरीबन 19 साल की ये लड़की अपनी कहानी ऐसे सुनाती है, जैसे सब्जी मंडी में आलू का भाव बता रही हो.
खुलकर बात करने के बीच निधि एकदम से रुकती और अपनी धूल सनी चप्पलों की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं- ‘ये एक आंटी से मांगी है. मेरे पास चप्पल नहीं. एक चुन्नी भी लेनी है, फुलकारी वाली. दिवाली पर पहनूंगी. आप पैसे दे सकेंगी क्या?’

बड़ी-बड़ी आंखें उम्मीद से फैली हुईं. मास्क से छनकर आती आवाज में उदास बेपरवाही, मानो कहती हो कि तुम न भी दो, तो दूसरे मिल जाएंगे.

पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन (PGI) चंडीगढ़ की ताजा स्टडी के मुताबिक पंजाब में हर 7वां शख्स नशे की गिरफ्त में है. निधि यही 7वीं लड़की है. जब हम उनसे मिले, वह सड़क किनारे ग्राहक का इंतजार कर रही थी, ताकि रात की डोज का इंतजाम हो सके. बड़े मान-मनौवल के बाद हमसे बातचीत के लिए राजी होती है.


‘जो पूछना है, जल्दी पूछ लीजिए, मुझे जाना है’, ये कहते हुए बात शुरू करती है तो घंटेभर से ज्यादा बैठी रह जाती है.

मैं कचरा बीनकर बेचती. मम्मी-पापा हैं नहीं. सड़क पर ही पली-बढ़ी. घूमने आने वाले कुछ न कुछ दे देते. रात में गोल्डन टेंपल जाकर सो जाती. यही रुटीन था. थोड़ी-बहुत पढ़ाई भी की, फिर छोड़ दी.

क्यों? क्योंकि बाकी बच्चे मजाक उड़ाते थे कि पढ़कर भी क्या कर लेगी. 10वीं में थी तब. इसके बाद एक होटल में नौकरी की, लेकिन चोर कहकर उन्होंने बाहर निकाल दिया. एक घर में भी काम किया, वहां भी यही हुआ. तब से सड़क पर ही हूं. रात होते ही ग्राहक खोजती और अपने पैसे खुद कमाती हूं. कोई चोर नहीं कहता, न धक्के मारता है.

 

ड्रग्स की लत कैसे लगी?

 अक्सर गोल्डन टेंपल जाकर सोती थी. कई बार होटल के कमरे में रात बीतती, कभी सड़क किनारे भी. घर पर सोना क्या होता है, ये पता नहीं था. एक बार एक आंटी मिलीं. कहा कि मेरी भी तेरे जैसी बेटी है. तू मेरे घर सोने चली आ. किराया मत देना. सौदा (राशन) लाने के लिए कुछ दे देना.

मैं पहुंची तो देखा कि आंटी-अंकल और उनकी बेटी तक ड्रग्स लेते थे. फिर एक रात उन्होंने ने चिट्टा देते हुए कहा कि इससे बढ़िया नींद आएगी. वो पहली बार था. अगली सुबह दोबारा लिया. फिर तीसरी बार. इसके बाद आदत लग गई.

धीरे-धीरे मैं नशे के अड्डे जानने लगी. समझने लगी, कहां, कौन-सा माल मिलेगा. कौन ज्यादा सस्ते में ज्यादा बढ़िया माल देता है. चिट्टा लेती और यहीं बस अड्डे के पास लेडीज टॉयलेट में बैठकर कश ले लेती. कमी पड़ती तो इतनी सवारियां आती-जाती हैं, किसी को भी पकड़ लेती.

कैसे पहचानती हैं कि कौन ग्राहक है? कच्चे सवाल का पका हुआ जवाब आता है- पता लग जाता है. कोई लगातार आपको देर तक देखता रहे तो समझ जाइए कि वो साथ चलना चाहता है. पास ही में सुल्तानविंड है. वहां कई होटल हैं, जो 200 से 500 रुपए में 20 मिनट के लिए कमरा देते हैं. उनसे हमारा कॉन्टैक्ट है. इसमें से कुछ हिस्सा होटल वाले हमें देते हैं.

निधि बड़े कॉन्फिडेंस से कॉन्टैक्ट शब्द बोलती हैं. शायद ये उनका इकलौता कॉन्टैक्ट हो, जिस पर उन्हें गर्व है.


डर नहीं लगता? ’लगता है, लेकिन मैं प्रोटेक्शन के बिना कभी नहीं करती.’ पत्थर की बेंच पर बैठ एक पैर झुलाती निधि के लहजे में इत्मीनान है, और ऐसा भाव, जो बुजुर्गों में ही मिलेगा. सब कुछ देख लेने का.

मेरी परेशानी देखकर कुछ नर्म पड़ते हुए कहती हैं- छोड़ना भी चाहूं तो छूटती नहीं. तोड़ बजती है. उल्टियां होने लगती हैं. बुखार हो आता है. कुछ भी मुंह के अंदर नहीं जाता. पैरों में इतना दर्द रहता है कि खड़ी नहीं हो सकती.

कई बार कोशिश की, लेकिन हो नहीं सका. तलब होती है तो कोई सह ही नहीं सकता. बस, कैसे भी पैसे आ जाएं. लड़के चोरी करते हैं. लड़कियां गलत काम में पड़ जाती हैं.

रात गहरा चुकी. हल्की ठंडे वाले मौसम में हल्की टी-शर्ट पहने निधि कांप रही हैं. नशे की तलब में, या ठंड से- पता नहीं! कांपते हुए ही वे कई बातें बताती हैं कि चिट्टे की डोज कैसे लेते हैं. एक डोज में कितने पैसे लगते हैं. वो खुद कितने की ले लेती हैं.

फिर कहती हैं- अकेली होती हूं तो सपने देखने लगती हूं. मेरे भी मम्मी-पापा होते तो पढ़ाते-लिखाते. भला-सा लड़का देख शादी कर देते. तब मुझे सड़कों पर भटकना नहीं होता. मेरा भी घर होता, जहां मैं आराम से सो पाती, लेकिन वे हैं नहीं.

कहीं भी सोऊं, कोई न कोई हाथ टटोलता चला आता है. अब तो लगता है कि दुनिया में कोई अच्छा है ही नहीं. और हो भी तो ‘मुझ जैसी से’ शादी नहीं करेगा!

दुनिया के अंधेरे ने 19 साल की बच्ची के भीतर गहरा अंधेरा भर दिया है. उदासी से खींचने की कोशिश में मैं वापस सवाल करने लगती हूं. ‘रिहैबिलिटेशन सेंटर क्यों नहीं जातीं. वहां जाने से चिट्टा छूट जाएगा.’

‘नहीं! जो भी वहां जाता है, लौटकर दोगुना नशा करने लगता है. मैंने सुना है, वहां बहुत पिटाई होती है. मां-बाप भी मारते हैं. बच्चा ठान लेता है कि बाहर निकलूंगा तो और नशा करूंगा चाहे घरवालों का सब कुछ बिक जाए. सेंटर से निकलकर वो घर पर ही चोरियां करने लगता है. धोखा देता है. झूठ बोलता है. पहले वो नशेड़ी होता है. सेंटर से लौटकर बुरा इंसान भी बन जाता है.’


कच्ची समझ वाली निधि ड्रग डी-एडिक्शन के बारे में कुछ नहीं जानतीं, लेकिन उनके पास तजुर्बा है.

इसी मुद्दे पर पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार जसबीर सिंह पट्टी कहते हैं- हमारे यहां रिहैब कामयाब नहीं हैं, क्योंकि वहां काउंसलिंग नहीं होती. लोगों को भर्ती करना, या दवाएं देना काफी नहीं. उनके मन को भी तैयार करना होगा. वे नशा छोड़ें, लेकिन क्यों, इसकी वजहें जुटानी होंगी.

महीनेभर पहले ही एक लड़की का वीडियो वायरल हुआ, जो नशे के कारण खड़ी तक नहीं हो पा रही थी. उसे रिहैब सेंटर भेजा गया, लेकिन वो वहां से भाग आई और फिर ड्रग्स लेने लगी. उसकी काउंसलिंग होती तो शायद ऐसा नहीं होता.

2018 से 2020 के बीच PGIMER यानी चंडीगढ़ PGI "Epidemiology of substance use and dependence in the state of Punjab, India' के नाम से पूरे पंजाब में एक घरेलू सर्वे करवाया था.

सर्वे के मुताबिक पंजाब में 41 लाख लोगों ने जीवन में कम से कम एक बार वैध या अवैध नशा किया है. पूरे जीवन नशे का इस्तेमाल करने वालों यानी नशे के लती लोगों में 40 लाख पुरुष हैं तो एक लाख महिलाएं.

पंजाब में महिलाओं के लिए सिर्फ एक नशा उन्मूलन केंद्र

पंजाब में कुल 31 सरकारी नशा उन्मूलन केंद्र हैं. इनमें केवल एक महिलाओं के लिए है.
महिलाओं में ड्रग्स की बढ़ती लत की वजह से 2019 में पंजाब सरकार ने सरकारी नशा उन्मूलन केंद्र में अलग महिला वार्ड बनवाने शुरू किए.
देश में 10 से 75 साल की 1.5 करोड़ महिलाओं में नशे की लत

शराब - 90 लाख

गांजा, चरस - 40 लाख

ड्रग्स (ओपियॉड्स) - 20 लाख

Source -नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर और एम्स दिल्ली के साथ सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय का सर्वे)

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