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Court Divorce Rules : तलाक को लेकर कोर्ट ने सुनाया फैसला, अब करना होगा ये काम

Court Rules : सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामलों में नया निर्णय दिया है, जिसके अनुसार, कोर्ट की अनुमति से तलाक छह महीने से पहले भी हो सकता है। 06 महीने इंतजार नहीं करना होगा।आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।

 
Court Divorce Rules : तलाक को लेकर कोर्ट ने सुनाया फैसला, अब करना होगा ये काम

Haryna Update : सुप्रीम कोर्ट ने तलाक पर बड़ा फैसला देते हुए नया कानून बनाया है। जिससे अब दोनों को तलाक के लिए छह महीने इंतजार करने की जरूरत नहीं रहेगी और वे इससे पहले भी अलग हो सकते हैं।

हमारे देश में, कम से कम, ऐसा माना जाता है कि जोड़े स्वर्ग में मिलते हैं। साथी अक्सर ऐसा महसूस करते हैं जब वे शादी करते हैं, लेकिन कभी-कभी रिश्ता थक जाता है या ऐसा होता है विवाहित जोड़े को लगता है कि एक दूसरे के साथ रहना बहुत कठिन है।

विवाहित संबंधों को खत्म करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। तलाक के आवेदन से ये प्रक्रिया शुरू होती है। लेकिन आवेदन करते समय या उसके बाद क्या होता है, यह जानना महत्वपूर्ण है।

खोज कैसे होती है? तलाक की याचिका दायर कर रहे दोनों ही पक्षों को पता होना चाहिए कि इसमें किस तरह की कानूनी बाधाएं आ सकती हैं, या फिर नियमों और अधिकारों की सूची।

तलाक करने से पहले जानें 

देश में तलाक के दो तरीके हैं: आपसी सहमति से तलाक और एकतरफा तलाक। पहले तरीके में दोनों का राजी-खुशी का संबंध समाप्त होता है। वाद-विवाद और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की कोई बात नहीं होती, इसलिए इस बहुत महत्वपूर्ण रिश्ते से बाहर निकलना बहुत आसान होता है। आपसी सहमति से तलाक लेते समय कुछ विशिष्ट बातों को ध्यान में रखना होगा।

गुजारा भत्ता सबसे महत्वपूर्ण है।

पति या पत्नी में से एक जो आर्थिक रूप से दूसरे पर निर्भर है, उसे तलाक के बाद दूसरे को गुजारा भत्ता देना होगा। इस भत्ते की सीमा नहीं है; यह दोनों पक्षों की आपसी समझ और जरूरतों पर निर्भर करता है। कोई समस्या उत्पन्न होने पर कोर्ट को इसमें दखल देना चाहिए।

बच्चों को कस्टडी देने वाले व्यक्ति क्या हैं?

विवाहित बच्चों की कस्टडी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। बाल कस्टडी मिल-जुलकर या अलग-अलग हो सकती है। एक पेरेंट भी बच्चों को देखभाल कर सकता है, लेकिन दूसरा पक्ष उसे पैसे देना चाहिए।

ये हैं सहमति से तलाक की प्रक्रिया 

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पति-पत्नी एक वर्ष से अधिक समय से अलग रह रहे हों तो तलाक की अपील करना संभव है। दोनों पक्षों को पहले कोर्ट में याचिका दायर करनी होगी। दूसरे चरण में दस्तखत की आवश्यकता होती है और दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं। तीसरे चरण में, न्यायालय दोनों को छह महीने का समय देता है ताकि वे अपने निर्णय को फिर से विचार कर सकें। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सिर्फ इस तीसरे चरण को बदल दिया है।

यह छह महीने का इंतजार खत्म किया जा सकता है अगर कोर्ट को लगता है कि रिश्ता इतना खराब हो गया है या स्थिति ऐसी है कि रिश्ता नहीं सुधरेगा। लेकिन अगर कोर्ट को लगता है कि सुलह के लिए छह महीने की आवश्यकता है, तो वह ऐसा कर सकता है।

तब कोर्ट अपना निर्णय देगा

कभी-कभी इसी दौरान मेल होता है और घर बस जाते हैं। दोनों पक्षों को छह महीने बाद फिर से कोर्ट में बुलाया जाता है। जब फैसला बदल जाए तो कई प्रक्रियाएं होती हैं। आखिरी चरण में न्यायालय निर्णय लेता है और संबंध खत्म हो जाता है।

इसलिए भी तलाक की अर्जी 

स्थिति अधिक कठिन होगी अगर दोनों पक्ष तलाक के लिए तैयार नहीं होंगे। यहां दोनों पक्षों में संघर्ष और कानूनी जटिलताएं हैं। पति या पत्नी कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में तलाक की मांग कर सकते हैं। प्रमुख कारणों में शादी से बाहर यौन संबंध, शारीरिक-मानसिक क्रूरता, दो साल या उससे अधिक समय से अलग रहना, गंभीर यौन रोग, मानसिक अस्वस्थता और धर्म परिवर्तन शामिल हैं।

तब शादी अमान्य हो सकती है 

इनके अलावा, पत्नी को तलाक के कुछ विशिष्ट अधिकार भी दिए गए हैं। पति ने बलात्कार या अप्राकृतिक यौन संबंध किया हो, पहली पत्नी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी की हो या युवती की शादी 18 वर्ष से पहले की हो तो शादी अमान्य हो सकती है।

तलाक करने का निर्णय लेने के बाद अपने वकील से मिलकर उसका आधार जानें। जिस कारण से आप तलाक चाहते हैं, उसका पर्याप्त सबूत होना चाहिए। साक्ष्यों की कमी से केस कमजोर हो सकता है और प्रक्रिया अधिक कठिन हो सकती है। अर्जी मिलने पर कोर्ट दूसरे पक्ष को नोटिस देता है। यदि दोनों पक्ष कोर्ट में हाजिर करते हैं, तो न्यायाधीश पूरे मामले को सुनकर पहली कोशिश करते हैं कि सुलह हो जाए। अगर ऐसा न हो तो लिखित बयान कोर्ट में देता है। लिखित कार्रवाई के बाद न्यायालय में सुनवाई होती है। मामले की जटिलता के आधार पर, इसमें कम या अधिक समय लग सकता है। अक्सर मामले कई सालों तक रुके रहते हैं।


 

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