Income Tax : टैक्सपेयर्स को पुराने मामलो से मिली राहत, कोर्ट ने कर दिया बड़ा ऐलान
हाईकोर्ट ने इनकम टैक्स विभाग के एक मामले पर बड़ा फैसला दिया है। दरअसल, इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी कभी भी लोगों को पुराने मामले का खुलासा करने के लिए नोटिस नहीं भेजते थे। ऐसे लोगों के लिए सुखद खबर है। अब इनकम टैक्स विभाग की नोटिस भेजने की समय सीमा को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इतने साल पुराने मामलों में पुनरावेदन नहीं किया जा सकता है।
Haryana Update : दिल्ली हाई कोर्ट ने टैक्सपेयर्स को बड़ी राहत दी है। टैक्सपेयर्स जिन्हें इनकम टैक्स से नोटिस मिल रहे हैं, इस खबर से खुश हो गए हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने आयकर मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि 50 लाख रुपये से कम के आयकर मामले में री-असेसमेंट नहीं हो सकता है, एक रिपोर्ट के अनुसार। फैसले के अनुसार, अब इनकम टैक्स आपके इनकम टैक्स असेसमेंट के मामले को ऐसे ही कभी नहीं देख सकता है। टैक्सपेयर की आय 50 लाख रुपये या उससे अधिक होने पर 10 साल पुराने मामलों को इनकम टैक्स खंगाल सकता है।
बनाया गया था री-असेसमेंट को लेकर नया IT कानून
दरअसल, बजट 2021-22 में री-असेसमेंट को लेकर नया आईटी कानून बनाया गया था। जिसमें छह वर्ष की समयसीमा को तीन वर्ष कर दिया गया था। 50 लाख रुपये से अधिक की राशि वाले सीरियस फ्रॉड में 10 साल की री-असेसमेंट हो सकती है। इनकम टैक्स विभाग के अधिकारियों ने कभी भी लोगों को पुराने मामले खोलने के लिए नोटिस नहीं भेजे। ऐसे में, जिन लोगों को इनकम टैक्स विभाग से नोटिस मिला था, उनके लिए ये अच्छी खबर है। दिल्ली हाई कोर्ट ने इनकम टैक्स विभाग की ओर से नोटिस भेजने की समय सीमा को ध्यान में रखते हुए धारा 148 के तहत निर्णय दिया है। इससे समय के भीतर फिर से खोलने के लिए नोटिस जारी किया जा सकता है।
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शिकायतकर्ताओं ने क्या बताया?
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि धारा 149 (1) के खंड (A) में निर्धारित तीन साल की सीमा लागू होनी चाहिए जब आय (टैक्स असेसमेंट से छूट गई आय) 50 लाख रुपये से कम है। 10 साल की अतिरिक्त अवधि केवल तभी लागू होगी जब आय पांच सौ लाख रुपये से अधिक होगी। दूसरी ओर, आयकर अधिकारियों ने कहा कि ऐसे नोटिस वैलिड हैं क्योंकि आशीष अग्रवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा जारी एक सर्कुलर (मई 2022)।
सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत वकील दीपक जोशी ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि सीबीडीटी के निर्देश में निहित 'ट्रैवल बैक इन टाइम' सिद्धांत कानून की दृष्टि से गलत है। यह एक सराहनीय फैसला है, जो टैक्सपेयर्स को सहायता देगा जो री-असेसमेंट कार्रवाई का सामना कर रहे हैं।
टैक्सपेयर्स जिन्होंने रिट याचिका नहीं दी थी, भी इससे लाभ उठाएंगे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि वित्त मंत्री के भाषण और 2021 के वित्त विधेयक के प्रावधानों की व्याख्या दोनों ने छह साल से तीन साल की समय सीमा घटाई थी।