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Oil Hike: महंगाई से बचाव, खाने के तेल की कीमतों में भारी गिरावट, जानें Latest Price

Oil Latest Price:  आम जनता को बढ़ती महंगाई के बीच राहत की खबर। खाने के तेल (Edible Oil) का मूल्य घट गया है। बाजार सूत्रों ने बताया कि बंदरगाहों पर आयातित तेल की लागत से कम दरों पर बिक्री जारी है। खरीदारी करने से पहले ताजा दरों को भी देखें। 
 
Oil Hike: महंगाई से बचाव, खाने के तेल की कीमतों में भारी गिरावट, जानें  Latest Price

Haryana Update: महंगाई के दौर में रसोई घर से राहत की खबर आई है। खाने के तेल के भाव में कमी आई है। देश के तेल-तिलहन बाजारों में सभी खाद्य तेल तिलहनों के दाम गिरने लगे, जबकि देश के बंदरगाह पर आयातित तेलों की लागत से कम दाम पर बिकवाली जारी रही।

व्यापारिक सूत्रों ने बताया कि बंदरगाहों पर आयातित तेल की लागत से कम दरों पर बिक्री जारी है। आयातकों को पिछले लगभग तीन महीनों से बैंकों में अपना लेटर ऑफ क्रेडिट (LC) घुमाने की मजबूरी की वजह से आयातित खाद्य तेलों को 2-3 रुपये प्रति किलो कम दाम पर बेचना पड़ा है। 3 महीने से चल रहे इस बेपड़ता कारोबार की सरकार और तेल संगठनों ने कोई जांच नहीं की है।


आयातित तेल सस्ता है—
इस निरंतर घाटे के सौदों के बीच आयातकों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। उनके पास इतना पैसा नहीं बचा कि वे आयातित खाद्य पदार्थों का स्टॉक जमा रख सकें और उन्हें लाभ मिलने पर बेच सकें। बैंकों को अपने एलसी को चलाने की जरूरत है, इसलिए आयातित तेल बंदरगाहों पर कम मूल्य पर बेचा जा रहा है। इसके अलावा, मूंगफली, सोयाबीन, सरसों और कपास जैसे तिलहनों की मंडियों में आवक कम हो रही है, बाजार सूत्रों ने पीटीआई को बताया। मंडियों में सूरजमुखी, मूंगफली और सरसों की कीमतें एमएसपी से भी कम हैं।


माल होने के बावजूद पेराई का काम बेपड़ता होने, यानी पेराई के बाद बेचने में नुकसान होने के कारण लगभग 60 से 70 प्रतिशत तेल पेराई की छोटी मिलें बंद हो चुकी हैं। बंदरगाहों पर साफ्ट तेल की कमी और पाइपलाइनों की कमी भी है। दिसंबर में शादियों और जाड़े की बहुत मांग होगी। साथ ही, साफ्ट ऑयल का आयात कम हो रहा है। भविष्य की मांग को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

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तिलहनों की बुआई में कमी आई-
सूत्रों ने बताया कि पहले से किया जाना चाहिए। किसी ने भी उसकी ओर ध्यान नहीं दिया है। नरम तेलों के निकट भविष्य में कोई समस्या उत्पन्न होने पर किसकी जिम्मेदारी होगी? सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि सूरजमुखी और मूंगफली जैसे तिलहनों की बुआई का रकबा पहले से कम हुआ है।

24 नवंबर तक, 1.80 लाख हेक्टेयर में मूंगफली की खेती हुई थी, जबकि पिछले वर्ष 2.7 लाख हेक्टेयर में खेती हुई थी। इस बार सूरजमुखी 37,000 हेक्टेयर में बोई गई है, जबकि पिछले साल 41,000 हेक्टेयर में बोई गई थी। खरीफ मौसम में सूरजमुखी की बिजाई 66% और रबी में 10% गिरी है।
 

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