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Gwadar Port: Adani के मुंद्रा पोर्ट की पाकिस्तान में चर्चा क्यों?

Pakistan Learn From India : जब चीन के सहयोग से पाकिस्तान ने अपने बलूचिस्तान प्रांत में ग्वादर पोर्ट का निर्माण शुरू किया था, तो पाकिस्तान को उम्मीद थी, कि इस बंदरगाह के जरिए देश में व्यापार का विकास होगा और अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा, लेकिन बंदरगाह के निर्माण के बाद कई सालों के बाद भी व्यापारिक विकास तो काफी दूर की बात, अब ग्वादर बंदरगाह का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है।
 
Gwadar Port: Adani के मुंद्रा पोर्ट की पाकिस्तान में चर्चा क्यों?

Haryana Update: पाकिस्तान के लिए ग्वादर बंदरगाह (Pakistan Gwadar Port) का बर्बाद होने गले में भारी पत्थर बांध देने जैसा इसलिए भी है, क्योंकि इसका निर्माण चीन के बीआरई इनिशिएटिव (BRE Initiative) के तहत चायना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (Pakistan Economic Corridor) के तहत हुआ है और ये चीन के समुद्री सिल्क रोड परियोजना के लिए भी एक लिंक हैं और चीन ने इसमें अरबों रुपये लगाए हैं, लिहाजा अगर ये बर्बाद होता है, तो इसे चीन अपने कब्जे में ले लेगा। लिहाजा, इन दिनों पाकिस्तानी मीडिया (Pakistan Media) में भारत के मुंद्रा पोर्ट की काफी चर्चा है और सलाह दी जा रही है, कि पाकिस्तान को भारत के मुंद्रा बंदरगाह से सीख लेनी चाहिए। ऐसे में आईये जानते हैं, कि आखिर मुंद्रा बंदरगाह कैसे भारत के लिए कामधेनु गाय की तरह बन गया है?

 


 

कहां है भारत का मुंद्रा बंदरगाह-Where is India's Mundra port?
 कच्छ की खाड़ी के उत्तरी तट पर स्थित मुंद्रा बंदरगाह भारत का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह (India's largest private port) है। जहां प्रति वर्ष लगभग 150 मिलियन टन सामान का आयात-निर्यात (import-export) होता है और इस बंदरगाह ने साल 1998 में परिचालन शुरू किया था, जिसे अब अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड लिमिटेड (Adani Ports & SEZ Limited) द्वारा संचालित किया जाता है, जिसके सीईओ करण अडानी (CEO Karan Adani) हैं। करण अडानी, गौतम अडानी के बेटे हैं, जो दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं, जिनकी कुल संपत्ति लगभग 140 अरब डॉलर आंकी गई है। मुंद्रा बंदरगाह (Mundra Port) के उदय में भारतीय नीति निर्माताओं (Indian policy makers) द्वारा अपनाई गई नई नीति काफी कारगर रही है। नरेंद्र मोदी सरकार (PM Modi Government) की, जो पहले गुजरात के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Gujrat) के रूप में और फिर भारत के प्रधान मंत्री (India Prime Minister) के रूप में काम कर रहे हैं। पाकिस्तानी अखबार डॉन (Pakistan newspaper Don) ने भारत के मुंद्रा बंदरगाह से पाकिस्तान सरकार को सीख लेने की सलाह दी है और कहा है कि, ग्वादर पोर्ट की पूरी क्षमता का एहसास करने के लिए पाकिस्तानी नीति निर्माताओं को मुंद्रा पोर्ट कई सबक प्रदान करते हैं।

मुंद्रा बंदरगाह का आधुनिक युग-Modern era of Mundra port
मुंद्रा बंदरगाह के लिए आधुनिक युग की शुरूआत 1994 से होती है, जब गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) (Gujarat Maritime Board (GMB)) ने कैप्टिव जेटी के लिए मंजूरी दी थी। चार साल बाद 1998 में गुजरात अडानी पोर्ट लिमिटेड (Gujarat Adani Port Limited) के तहत पहले टर्मिनल का संचालन शुरू हुआ और 1999 के अंत तक इस बंदरगाह पर बहुउद्देश्यीय बर्थ ने काम करना शुरू कर दिया। इस फैसिलिटी के आर्थिक महत्व को स्वीकार करते हुए इस बंदरगाह को एक निजी रेलवे लाइन से साल 2001 जोड़ दिया गया और 2002 में मुंद्रा पोर्ट को रेल लाइन से पूरी तरह जोड़ा जा चुका था, जिसके बाद मुंद्रा पोर्ट पर विदेशों से आए सामान या फिर मुंद्रा पोर्ट पर सामान भेजना पूरे भारत में कहीं से भी काफी आसान हो गया। इसके साथ ही साल 2002 में मुंद्रा बंदरगाह पर विदेशों से आने वाले कच्चा तेल को रखने की सुविधा विकसित की गई और फिर साल 2003 में मुंद्रा बंदरगाह को एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) बना दिया गया।

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एसईजेड बनने से बन गई किस्मत-Being SEZ made luck
एसईजेड बनाने की रणनीति, घरेलू और विदेशी निवेशकों के पक्ष में सुसंगत नीतियों के माध्यम से गुजरात राज्य में निवेश आकर्षित करने की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा था। वाइब्रेंट गुजरात नामक एक प्रमुख वार्षिक कार्यक्रम को भी तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी (Chief Minister Narendra Modi) ने साल 2003 में शुरू किया, जिसका आयोजन साल 2019 तक होता रहा। फिलहाल, कोविड की वजह से ये कार्यक्रम नहीं हो रहा है। इस कार्यक्रम में संभावित निवेशकों, नीति निर्माताओं और अन्य व्यापारिक नेताओं की भीड़ लगती थी और इसके जरिए गुजरात में निवेश की नई संभावनाओं को लेकर अलग अलग विकल्पों की तलाश की जाती थी। वहीं, मुंद्रा बंदरगाह के विकास ने जल्द ही एक दूसरे टर्मिनल के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया और फिर टाटा पावर के साथ एक समझौते के माध्यम से बिजली की आपूर्ति में भी वृद्धि हुई, जिसके बाद अब मुंद्रा पोर्ट पर एक साथ कई बड़े और कार्गो जहाजों का रूकने का सिलसिला शुरू हो गया और साल 2008 में, मुंद्रा बंदरगाह ने मारुति सुजुकी के साथ एक समझौते के माध्यम से ऑटोमोबाइल निर्यात (automobile export) को भी संभालना शुरू कर दिया किया।

बन गया भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह-became the largest port of India
2007 तक, परिचालन शुरू होने के एक दशक से भी कम समय में, मुंद्रा पोर्ट एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड (एमपीएसईजेड) (Mundra Port and Special Economic Zone Limited (MPSEZ)) ने भारतीय जनता को इक्विटी शेयरों (Equity Shares to Indian Public) की पेशकश की। और फिर मुंद्रा पोर्ट के शेयरों को लगभग 100 रुपये प्रति शेयर पर पेश किया गया था और पेशकश को 116 गुना अधिक सब्सक्राइब किया गया था। आज, इकाई देश में 13 बंदरगाहों के साथ भारत में सबसे बड़ा निजी बंदरगाह ऑपरेटर है, जो देश की बंदरगाह क्षमता का लगभग 25 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है और इस कंपनी ने हाल ही में 1।18 अरब डॉलर में इज़राइल में हाइफ़ा पोर्ट का अधिग्रहण किया है।

मुंद्रा बंदरगाह की विशालकाय क्षमता-Huge potential of Mundra port
मुंद्रा बंदरगाह में अब लगभग दो दर्जन गोदाम हैं, जिनकी कुल भंडारण क्षमता 137,000 वर्ग मीटर है। ये सुविधाएं गेहूं, चावल, उर्वरक और अन्य वस्तुओं का भंडारण करती हैं। बंदरगाह में गेहूं की सफाई और चावल की छँटाई की सुविधा भी है, जिसमें एक दिन में 1,700 टन से अधिक गेहूं और चावल को संभालने की संचयी क्षमता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा कोयला आयात करने वाला टर्मिनल भी है, जिसकी क्षमता सालाना 40 मिलियन टन से अधिक कोयले को संभालने की है। ये कोयला आयात न केवल भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए, बल्कि अडानी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, जो ऑस्ट्रेलिया जैसी जगहों पर कोयला खदानों का संचालन करते हैं और भारत में कोयला बिजली संयंत्रों के भी मालिक हैं।

सफलता की नींव-foundation of success
मुंद्रा और अडानी समूह की नाटकीय सफलता दो प्रमुख नींवों पर बनी है - नीतिगत प्राथमिकताओं की निरंतरता, विशेष रूप से राज्य सरकार के स्तर पर, और यह मान्यता कि निजी क्षेत्र आर्थिक गतिविधि उत्पन्न करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है। 90 के दशक तक गुजरात में उच्च स्तर की आर्थिक वृद्धि हुई थी और आर्थिक विकास पर ध्यान आज भी काफी दिया जा रहा है। बचपन में कुपोषण, साक्षरता आदि से संबंधित महत्वपूर्ण मानव विकास चुनौतियों के बावजूद, लगातार राज्य सरकारों ने नीतियों का एक सेट विकसित किया है, जो स्थानीय स्तर पर आर्थिक अवसरों को प्राथमिकता देता है। मुंद्रा की सफलता इस प्राथमिकता पर बनी थी, जिसका अर्थ है कि इससे पहले कि बंदरगाह भारत की व्यापक आर्थिक कहानी में मदद करने में भूमिका निभा सके, गुजरात राज्य में रहने वाले लोगों पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

निजी क्षेत्र पर सरकार का विश्वास-Government's confidence in the private sector
दूसरी प्राथमिकता निजी क्षेत्र के उद्यमियों को संसाधन जुटाने, तकनीकी जानकारी हासिल करने और इसके आसपास महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और संबंधित उद्योगों के निर्माण के लिए जोखिम उठाने पर केंद्रित है। जबकि सरकार ने निवेश प्रोत्साहन, टैक्स में छूट और राहत और अन्य सहायता की पेशकश की, मुंद्रा पोर्ट के विकास, विकास और विस्तार की जिम्मेदारी पर अडानी समूह पर थी और अडानी ग्रुप ने ये काम काफी शानदार तरीके से किया है। हालांकि, कुछ लोग इस नवाचार के चालक के रूप में क्रोनी कैपिटलिज्म की ओर इशारा कर सकते हैं, लेकिन, तथ्य यह है कि गौतम अडानी उत्पादक निवेश के माध्यम से दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक बन गए और ऐसा वो राज्य की संपत्तियों पर कब्जा करने नहीं बन सकते थे, जैसा उनके विरोधी आरोप लगाते रहते हैं।

पाकिस्तानी बंदरगाह की कमियां-Drawbacks of Pakistani Port
पाकिस्तान भी ग्वादर बंदरगाह का निर्माण और विस्तार करना चाहता है, लेकिन, पाकिस्तान सरकार की इस कोशिश की नींव से ये दो मूल सिद्धांत गायब प्रतीत होते हैं। पीने के पानी तक सीमित पहुंच वाले ग्वादर के निवासी लगातार इस चीनी परियोजना का विरोध करते हैं और अकसर हमले होते रहते हैं। और चूंकी ग्वादर बंदरगाह के निर्माण में यहां के मूल बलूचिस्तान के निवासियों के हकों को छीन लिया गया है, लिहाजा अब सरकार को बलूच विद्रोह का सामना करना पड़ता है, जो इस बात का सबूत है, कि राज्य के नेतृत्व वाले निवेश के माध्यम से समावेशी आर्थिक अवसर एक दूर का सपना बना हुआ है। सवाल यह है कि क्या एक बड़ा बंदरगाह, जो अपने सबसे करीब रहने वाले लोगों के लिए काम करने में असमर्थ है, क्या पाकिस्तान और उसके नागरिकों को लाभ पहुंचाने वाले आर्थिक अवसर और धन पैदा कर सकता है?

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ग्वादर के साथ दूसरी दिक्कत-Another problem with Gwadar
वहीं, दूसरी दिक्कत ये है, कि ग्वादर में अपनाए जा रहे विकास मॉडल का जोर राज्य द्वारा संचालित है जहां स्थानीय अर्थव्यवस्था की वास्तविकताओं को नजरअंदाज किया जाता है। उदाहरण के लिए, सदियों से ग्वादर की मुख्य आर्थिक गतिविधि मछली पकड़ना रही है। इस स्पष्ट तथ्य के बावजूद, इस मछली पकड़ने के उद्योग को आधुनिक बनाने के लिए निजी पूंजी जुटाने के लिए बहुत अधिक प्रयास नहीं किए गए हैं, ताकि इन उत्पादों के निर्यात पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ समुद्री खाद्य से जुड़े उद्योगों में स्थानीय नागरिकों के लिए अच्छी तरह से भुगतान वाली नौकरियां पैदा हो सकें।


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