Taj Mahal से लेकर काशी मथुरा और कुतुबमीनार तक कहाँ किस बात पर हो रहा है बवाल, देखिये इतिहास
From Taj Mahal to Kashi Mathura and Qutub Minar, where is the ruckus happening, see history
1991 में केंद्र सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया. ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता.
काशी, मथुरा, आगरा और दिल्ली इन सभी शहरों में इस वक्त मंदिर-मस्जिद को लेकर बवाल चल रहा है. मध्य प्रदेश के धार में भी ऐसा ही विवाद कोर्ट पहुंच चुका है. किसी मामले में कोर्ट ने सर्वे करने का आदेश दिया है तो किसी मामले को कोर्ट ने सुनने से ही इनकार कर दिया है. कोई ताजमहल को शिव मंदिर बता रहा है तो कोई कुतुब मीनार को विष्णु स्तंभ घोषित करने की मांग कर रहा है.
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देश में मंदिर-मस्जिद को लेकर चल रहे पांच बड़े मामले कौन से हैं? इनका इतिहास क्या है? ये अभी किस वजह से चर्चा में हैं? विवाद की पूरी कहानी क्या है? आइये जानते हैं…
स्थान: ज्ञानवापी मस्जिद, वाराणसी, उत्तर प्रदेश(Gyanvapi Mosque Varanasi)
अभी क्यों चर्चा में: ज्ञानवापी परिसर स्थित श्रृंगार गौरी समेत कई विग्रहों के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश कोर्ट ने दिया था. 10 मई को कोर्ट में रिपोर्ट सौंपनी थी. इसके लिए कोर्ट ने एक कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था. हालांकि, सर्वे करने पहुंचे कोर्ट कमिश्नर और वादी पक्ष का मुस्लिम पक्ष ने विरोध कर दिया. नौ मई को मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट कमिश्नर की निष्पक्षता पर सवाल उठाए और उन्हें हटाने की मांग की. इसी को लेकर कोर्ट में तीन दिन बहस चली और फिर कोर्ट ने नया आदेश दिया.
कितना पुराना है विवाद: 1991 में वाराणसी कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ. याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई. प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं. मुकदमा दाखिल होने के कुछ महीने बाद सितंबर 1991 में केंद्र सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया. ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी.
1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी. उसके बाद ऑर्डर प्रभावी नहीं रहेगा. इस आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई. इस याचिका में मस्जिद परिसर के सर्वे की मांग की गई. कोर्ट ने आदेश भी दिया लेकिन अप्रैल 2021 में हाईकोर्ट ने सर्वे पर रोक लगा दी.
18 अगस्त 2021 को दिल्ली की पांच महिलाओं ने बनारस की एक अदालत में नई याचिका दाखिल की थी. इन महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के पीछे वाले हिस्से में स्थित मां श्रृंगार गौरी की प्रतिमा की पूजा की अनुमति मांगी. इसी याचिका पर परिसर का सर्वे हो रहा है.
इतिहास क्या कहता है: इस मामले में याचिका लगाने वालों का दावा है कि 1699 में मुगल शासक औरंगजेब ने मूल काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी. वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी. कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था.
स्थान: ताजमहल, आगरा, उत्तर प्रदेश
अभी क्यों चर्चा में: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में ताजमहल को लेकर एक याचिका पर सुनवाई हुई. याचिका में ताजमहल परिसर में सालों से बंद पड़े 22 कमरों को खुलवाने और उनकी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) से जांच कराने की मांग की गई है. गुरुवार को हाईकोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी.
कितना पुराना है विवाद: 1965 में इतिहासकार पीएन ओक ने दावा किया कि ताजमहल एक शिव मंदिर है. ताजमहल को लेकर उनकी दो किताबें आईं. एक का नाम 'ट्रू स्टोरी ऑफ ताज' और दूसरे का नाम 'द ताज महल इज तेजो महालय- अ शिव टेंपल' था. इसमें उन्होंने दावा किया कि ताजमहल एक शिव मंदिर है, जिसे तेजोमहालय के नाम जाना जाता था.
2015 में लखनऊ के हरीशंकर जैन ने आगरा के सिविल कोर्ट में ताजमहल को लार्ड श्रीअग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजमान तेजोमहालय मंदिर घोषित करने को याचिका दायर की. बाद में जिला जज ने याचिका को खारिज कर दिया. हालांकि, जैन ने फिर से रिवीजन के लिए याचिका दायर की. ताजमहल के बंद हिस्सों की वीडियोग्राफी कराने से संबंधित याचिका एडीजी पंचम के यहां अभी विचाराधीन है. हालांकि, 2017 में केंद्र सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने ये साफ किया कि ताजमहल में कोई मंदिर या शिवलिंग या तेजोमहालय जैसी कोई चीज नहीं है.
इतिहास क्या कहता है: आगरा के ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने 1632 में शुरू कराया था, जो 1653 में खत्म हुआ था. कई हिंदू संगठनों का दावा है कि शाहजहां ने ‘तेजोमहालय’ नामक भगवान शिव के मंदिर को तुड़वाकर वहां ताजमहल बनाया. मौजूदा याचिका बीजेपी के अयोध्या के मीडिया इन-चार्ज रजनीश सिंह ने दाखिल की थी. याचिका में कहा गया कि ताजमहल के बंद 22 कमरों की जांच से ये साफ हो जाएगा कि वह शिव मंदिर है या मकबरा. रजनीश सिंह का दावा है कि 1600 ई. में आए तमाम यात्रियों ने अपने यात्रा संस्मरण में राजा मान सिंह के महल का वर्णन किया है. ताजमहल 1653 में बना और 1951 में औरंगजेब का एक पत्र सामने आया जिसमें वह लिखता है कि अम्मी के मकबरे की मरम्मत कराने की जरूरत है.
दावा ये भी है कि ये तेजोमहल राजा मान सिंह का ही था. इससे जुड़ा एक अभिलेख जयपुर स्थित सिटी पैलेस संग्रहालय में है. इसमें जिक्र है कि राजा मान सिंह की हवेली के बदले में शाहजहां ने राजा जय सिंह को चार हवेलियां दी थीं. यह फरमान 16 दिसंबर 1633 का है. इसमें राजा भगवान दास की हवेली, राजा माधो सिंह की हवेली, रूपसी बैरागी की हवेली और चांद सिंह पुत्र सूरज सिंह की हवेलियां देने का उल्लेख है. इसके अलावा शाहजहां के फरमान में उल्लेख है कि उन्होंने जय सिंह से संगमरमर मंगवाया था. इस पत्र को आधार मानकर दावा किया जाता है कि जितना संगमरमर शाहजहां ने मंगवाया था, उससे ताजमहल का निर्माण नहीं हो सकता.
स्थान: कुतुब मीनार, दिल्ली
अभी क्यों चर्चा में: यूनाइटेड हिंदू फ्रंट नाम के संगठन के कार्यकर्ताओं ने कुतुब मीनार परिसर के पास हनुमान चालीसा का पाठ किया. इसके बाद कुतुब मीनार परिसर में हनुमान चालीसा का पाठ करने रवाना हुए. हालांकि, इसके पहले ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि कुतुब मीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तंभ कर दिया जाए.
कितना पुराना विवाद: मीनार की दीवारों पर सदियों पुराने मंदिरों के अवशेष साफ दिखाई पड़ते हैं. इसमें हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और मंदिर की वास्तुकला मौजूद है. इसे मीनार के आंगन में साफ देखा जा सकता है. मीनार के अंदर भगवान गणेश और विष्णु की कई मूर्तियां हैं. कुतुब मीनार के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख है. इसमें प्रयुक्त खम्भे और अन्य सामाग्री 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को ध्वस्त करके प्राप्त की गई थी.
इतिहास क्या कहता है: कुतुब मीनार का निर्माण 12वीं और 13वीं शताब्दी के बीच में कई अलग-अलग शासकों द्वारा करवाया गया है. इसकी शुरुआत 1193 ई. में दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी. कुतुबुद्दीन ने मीनार की नींव रखी, इसका बेसमेंट और पहली मंजिल बनवाई. कुतुबद्दीन के शासनकाल में इसका निर्माण पूरा नहीं हो पाया. इसके बाद कुतुबद्दीन के उत्तराधिकारी और पोते इल्तुतमिश ने मीनार की तीन और मंजिलें बनवाईं. साल 1368 ई. में मीनार की पांचवीं और अंतिम मंजिल का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने करवाया.
कहा जाता है कि 1508 ई. में आए भयंकर भूकंप की वजह से कुतुब मीनार काफी क्षतिग्रस्त हो गई. तब लोदी वंश के दूसरे शासक सिकंदर लोदी ने इसकी मरम्मत करवाई थी. इस मीनार के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और मार्बल का इस्तेमाल किया गया है. इसके अंदर गोल-गोल करीब 379 सीढ़ियां हैं.
स्थान: शाही ईदगाह मस्जिद, मथुरा, उत्तर प्रदेश
अभी क्यों चर्चा में: मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर विवाद है. 12 मई को इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई. 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर याचिका दायर की गई है. याचिका में पूरी जमीन लेने और श्री कृष्ण जन्मभूमि के बराबर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग की गई है. इस मामले में मथुरा की सेशन कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है. कोर्ट ने इस मामले में 19 मई तक फैसला सुरक्षित रखा है.
कितना पुराना विवाद: शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है. 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया. समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है. पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है. इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी. अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है.
इतिहास क्या कहता है: ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था. 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई. इसमें मराठा जीते. जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया. 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की विवादित भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी. 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली.
स्थान: भोजशाला, मध्यप्रदेश (Bhojshala Dhar MP)
अभी क्यों चर्चा में: इंदौर हाईकोर्ट में दो मई को याचिका दायर की गई है. इसमें भोजशाला को पूर्णत: हिंदुओं के अधिकार में देने की मांग की गई है. इसके लिए प्रमाण भी प्रस्तुत किए गए हैं.
कितना पुराना विवाद: विवाद की शुरुआत 1902 से बताई जाती है, जब धार के शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे होने का दावा किया और इसे भोजशाला बताया. विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई जिस पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था. आजादी के बाद ये मुद्दा सियासी गलियारों से भी गुजरा. मंदिर में जाने को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया. इसकी देखरेख ऑकियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, यानी ASI करता है. उसने हिंदुओं को यहां हर मंगलवार और वसंत पंचमी पर पूजा करने और मुस्लिमों को हर शुक्रवार को नमाज पढ़ने की इजाजत दी है. यहां 2006, 2013 और 2016 को शुक्रवार के दिन वसंत पंचमी पड़ने पर सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं.
इतिहास क्या कहता है: करीब 800 साल पुरानी इस भोजशाला को लेकर हिंदू-मुस्लिम मतभेद हैं. हिंदुओं के मुताबिक भोजशाला यानी सरस्वती का मंदिर है. जबकि मुस्लिम इसे पुरानी इबादतगाह बताते हैं. हिंदू संगठनों का दावा है कि भोजशाला राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है. यहां कभी शिक्षा का एक बड़ा संस्थान हुआ करता था. बाद में यहां पर राजवंश काल में मुस्लिम समाज को नमाज के लिए अनुमति दी गई, क्योंकि यह इमारत अनुपयोगी पड़ी थी. पास में सूफी संत कमाल मौलाना की दरगाह है. ऐसे में लंबे समय से मुस्लिम समाज में नमाज अदा करने का कार्य करते रहे. परिणाम स्वरूप वह दावा करते हैं कि यह भोजशाला नहीं बल्कि कमाल मौलाना की दरगाह है.
एक और तर्क चलता है जिसके मुताबिक भोजशाला का निर्माण राजा भोज ने 1034 में कराया था. 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर हमला किया. बाद में दिलावर खान ने यहां स्थित विजय मंदिर को नष्ट करके सरस्वती मंदिर भोजशाला के एक हिस्से को दरगाह में बदलने की कोशिश की. इसके बाद महमूदशाह ने भोजशाला पर हमला करके सरस्वती मंदिर के बाहरी हिस्से पर कब्जा करते हुए वहां कमाल मौलाना का मकबरा बना दिया. 1997 से पहले हिंदुओं को यहां पूजा नहीं, बल्कि केवल दर्शन करने की इजाजत थी.