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Suryashtakam: श्री सूर्याष्टकम् पढने के लाभ और महत्तव

Suryashtakam: Benefits and importance of reading Sri Suryashtakam

 
Suryashtakam: श्री सूर्याष्टकम् पढने के लाभ और महत्तव

Haryana Update: रविवार यानि रवि का वार(every sunday) , रवि अर्थात् सूर्य देव (Sunday meaning Sun Dev) रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा (Sun puja) करना श्रेष्ठ रहता है।  इस दिन पूजा के समय श्री सूर्याष्टकम् (Shree Suryashtakam) का पाठ करने से कई लाभ होते हैं। 








श्री सूर्याष्टकम् (Sri Suryashtakam) का प्रारंभ आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर। से होता है।  इसके पाठ से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और करियर में तरक्की मिलती है।  यदि आपकी नौकरी नहीं लग रही है या करियर में कोई समस्या है तो आपको श्री सूर्याष्टकम् का पाठ (Sri Suryashtakam path) सात रविवार करना चाहिए। 

जो लोग यश, कीर्ति, संतान, ग्रह दोष मुक्ति, धन, धान्य, आरोग्य आदि को प्राप्त करना चाहते हैं उनको सूर्य देव की आराधना करनी चाहिए।  गोरखपुर के पंडित वशिष्ठ उपाध्याय कहते हैं कि सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय है उनको प्रात: अर्घ्य देना।  ऐसा करने से सूर्य मजबूत होंंगे और पिता के साथ आपका संबंध भी बेहतर होगा।  यदि आप राजनीति में हैं तो आपको अवश्य ही सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए।  उनके आशीष से आपको उच्च पद की प्राप्ति होगी। 

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Read Sri Suryashtakam with correct pronunciation and reap its benefits

श्री सूर्याष्टकम्
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥1॥

सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥2॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥3॥

त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥4॥

बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च।
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥6॥

तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥7॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥

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सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम्।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत्॥9॥

अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता॥10॥

स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति॥11॥

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