शुक्रवार की कथा: एक औरत जो करती थी माँ लक्ष्मी की पूजा
शुक्रवार की कहानी (Shukravar ki katha)
एक सास- बहू थी, जो कि उसका बेटा कुछ काम धंधा करता था। वह एक दो महीने में घर आता था। उसकी सास शुक्रवार को लक्ष्मी की मूर्ति सिंहासन पर बैठा कर पूजा करती थी। उसकी सास बोली- बहू मैं तीरथ करने जाती हूं। तुम शुक्रवार की पूजा नियम पूर्वक कर लेना। सास तीरथ करने चली गई। बहु देर से नहाती और खा पीकर शुक्रवार की पूजा नहीं करती तो शुक्रवार महाराज को गुस्सा आया और तरह-तरह की विपत्ति आ गई। बच्चे बहुत बीमार हो गए। लड़के की नौकरी छूट गई तो खाने को कुछ नहीं रहा। घर को झाड़ पोंछ कर शुक्र महाराज की मूर्ति कूड़े में फेंक दी। लड़का बीमार हो गया और बीमारी में सब पैसे खत्म हो गए। सास तीरथ करने घर आई तो घर की हालत देख कर बहुत दुखी हुई। सास को रात को सपने में शुक्र महाराज दिखाई दिया और कहा- तेरी बहू ने मेरी पूजा नहीं करी।
इसलिए धन दौलत नष्ट हो गया तो सास ने सुबह बहू से पूछा- लक्ष्मी माता की मूर्ति कहां है? बहू ने कहा मुझे नहीं पता। सास घर सफाई करके कूड़ा बाहर फेंकने गई तो उसे लक्ष्मी की मूर्ति दिखाई दी। वह उसे घर लाइ नहला धोलाकर आसन पर बिठाया और उसकी पूजा करी और आरती करी। भोग लगाया सास ने विनती करी कि बच्चे ठीक हो जाए। लड़के को काम पर लगा लिया।
सास बहू दोनों ने शुक्रवार का व्रत किया। लक्ष्मी माता ने प्रसन्न होकर धन से घर को भर दिया और घर किसी चीज की कमी नहीं रही। बेटे बहू ने माफी मांगी- हे माता! हमने आपको बाहर फेंक दिया था। सास बोली शुक्रवार को जैसे बेटा बहू से रूठे माताजी ऐसे किसी से ना रुठे, जैसी सास बहू पर खुश हुई वैसे सब किसी पर होवे।
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Disclaimer- ये कथा कहानी मान्यताओं पर आधारित है, Haryanaupdate इसकी पुष्टि नहीं करता है।