मंगलवार की कथा: जब हनुमान जी ने दूर किए साहूकारनी के कष्ट और ब्राह्मणी को दिया बालक
मंगलवार की कहानी
एक साहूकारनी हर रोज हनुमान जी के मंदिर में जाती थी। वह चूरमे का लड्डू और एक मीठी रोटी ले जाती थी और कहती कांधे सोटा, लाल लंगोटा। हनुमान जी आते चूरमा, रोटी खा लेते। तब वह कहती मैंने तुम्हें दिया जवानी से तुम मुझे देना बुढ़ापे में। पूजा करने के बाद साहूकारनी घर आई और बहू बोली सासूजी तुम चूरमा रोटी लेकर कहां जाती हो। सास बोली बालाजी के मंदिर में जाती हूं।
बहू सास से बोली अब मंदिर मत जाया करो तो सासु ने कुछ नहीं कहा। ना खाना खाया, ना पानी पिया, जा कर सो गई। सोते-सोते 5 दिन हो गए। हनुमान जी सपने में आए और बोले तूने मुझे दिया जवानी में मैं तुझे देता हूं बुढ़ापे में। बुढ़िया बोली आज तो तुम दे रहे हो। रोज-रोज मुझे कौन देगा? हनुमान जी बोले मैं तुमको दूंगा तो बुढ़िया ने चूरमा खा लिया। बहू के घर में कुछ भी नहा रहा और सब चीजों में घाटा होने लगा। बहू ने सोचा सास को देखूँ उसे 7 दिन हो गए। लेकिन खाने को मैंने कुछ नहीं दिया तो भी वह बहुत मोटी हो गई, तो बहू बोली सासू जी आप क्या खाती हो जो इतनी मोटी हो गई। सास ने कहा मुझे तो हनुमान जी चूरमा और मीठी रोटी देकर जाते हैं।
वह खाती हूं तो बहू सास के पैरों में पड़ गई और माफी मांगने लगी और कहा हम तो सासु जी आपके भाग्य का खाते हैं। इसलिए आप अपने घर को संभालो। सास रोज चूरमा रोटी चढ़ाने लग गई। खूब धन और दौलत हनुमान जी की ने फिर से भर दिया। ऐसी ही एक और कथा है:-
एक ब्राह्मण के घर में कोई संतान नहीं थी जिसके कारण पति-पत्नी दुखी थे। वह ब्राह्मण पूजा करने के लिए वन में गया। वह पूजा के साथ महावीर जी से 1 पुत्र के कारण मंगलवार पुत्र की कामना करता था। घर पर उसकी पत्नी घर में मंगलवार का व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए करती थी। मंगल के दिन व्रत का भोजन बनाकर हनुमान जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। एक दिन दूसरा कोई व्रत आ जाने से वह ब्राह्मणी भोजन ना बना सकी व हनुमानजी को भोग ने भी नहीं लगाया। वह अपने मन में प्रण करके सो गई। मैं अगले मंगलवार को हनुमान जी का भोग लगाकर भोजन ग्रहण करूंगी तो भूखी प्यासी 6 दिन पड़ी रही। मंगलवार को उसको मूर्छा आ गई और भगवान ने उस की भक्ति देखकर प्रसन्न होकर हनुमान जी ने उसे दर्शन दिए। मैं बहुत प्रसन्न हूं।
मैं तुम्हें एक बालक देता हूं जो तुम्हारी बहुत सेवा करेगा। मंगलवार को बालक रूप में देकर अंतर्ध्यान हो गए व ब्राह्मणी सुंदर बालक से प्रसन्न हुई और उसका नाम मंगल रखा। थोड़े दिन के बाद ब्राह्मण वन से घर लौट आया सुंदर बालक को को घर में खेलते देखकर वह पत्नी से कहने लगा कि यह बालक कौन है? ब्राह्मण ने कहा कि मंगलवार का व्रत से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने दर्शन देकर मुझे बालक दिया। पत्नी की छल कपट से भरी बात जानकर उसे वह उल्टा कपटी अपनी कलुषता बात छुपाने के लिए बात बना रही है।
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एक दिन उसका पति कुएं से पानी भरने चला तो पत्नी ने कहा कि उसे भी साथ ले जा। वह मंगल को साथ ले गया तो मंगल को कुएं में डाल कर पानी भर कर घर वापस आ गया तो पत्नी ने पूछा कि मंगल कहां है। तभी मंगल मुस्काता हुआ घर आया। ये देखकर ब्राह्मण को आश्चर्य हुआ। रात्रि को उसके पति को हनुमान ने स्वप्न में कहा यह बालक मैंने दिया।
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तुम पत्नी को कुलटा क्यों कहते हो। पति ये बात जानकर हर्षित हो गया। पति-पत्नी ने मंगलवार का व्रत रखा और अपना जीवन आनंद से व्यतीत करने लगे। जो कोई मनुष्य मंगलवार की व्रत कथा को पढता है या सुनता है, जो कोई मनुष्य व्रत कर नियम से करता है, सब कष्ट हनुमान जी की कृपा से दूर होकर सर्व सुख प्राप्त होते हैं।