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भगवान दत्तात्रेय जयंती की कथा, जब अहंकार मे आयीं त्रिदेवियाँ

Religious: कौन थे भगवान दत्तात्रेय(Dattatreya), कैसे हुआ था उनका अवतार, जानिए इस कथा मे...
 
Dattatreya

दत्तात्रेय जयंती की कहानी

एक समय की बात है नारद मुनि भगवान शंकर(Shiva) जी, विष्णु(Vishnu) जी से मिलने स्वर्ग लोग गए। परंतु उनकी भेंट त्रिदेव से नहीं हो सकी। उनकी भेंट त्रिदेव की पत्नियों पार्वती, लक्ष्मी व सरस्वती से हो गई। नारद जी ने तीनों का घमंड तोड़ने के लिए कहा कि विश्वभर में भ्रमण करता रहता हूं। लेकिन ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूईया(Anasuya) के समान पतिव्रता स्त्री मैंने नहीं देखी। आप तीनों देवियां भी पतिव्रता धर्म पालन में पीछे हैं। यह बात सुनकर उनके मन में बड़ी ठेस लगी। क्योंकि वह समझती थी कि हमारे समान पतिव्रता नारी इस संसार में नहीं है। नारद के चले जाने के बाद तीनों देवियों ने अपने-अपने देवो से सती अनुसुइया(Sati Anasuya) का पतिव्रत धर्म नष्ट करने का अनुरोध किया। तीनों देव एक ही समय अत्रि मुनि के आश्रम पहुंच गए। तीनों ही देवों का एक ही उद्देश्य था जो कि अनुसुइया का पति धर्म नष्ट करने का। तीनों ने मिलकर एक योजना बनाई। तीनों देवों ने ऋषियों का वेश धारण करके अनुसूईया से भिक्षा मांगी। भिक्षा में उन्होंने भोजन करने की इच्छा प्रकट की। अनुसूईया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानने वाली ने कहा- आप स्नान आदि से निवृत होकर आओ। तब तक मैं आपके लिए रसोई तैयार करती हूं।

Lord Dattatreya Story

तीनों देव स्नान करके आए तो अनुसूईया ने उन्हें आसन पर बैठने को कहा। इस पर तीनों देव बोले -हम तभी आसन ग्रहण कर सकते हैं जब तुम बिना वस्त्र के हमें भोजन कराओगी।अनुसूईया के तन बदन में आग लग गई। परंतु पति धर्म के कारण वह तीनों देवों की चाल समझ गई। अनुसूईया ने अत्रि ऋषि के चरणोंदक से त्रिदेव के ऊपर जल छिड़क दिया।

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इसे त्रिदेव छोटे छोटे बालकों के रूप में बदल गए। तब सबको उनकी शर्त के अनुसार अनुसूईया ने भोजन कराया तथा तीनों को अलग-अलग पालने में उन्हें सुलाने लगी। तीनों देवियों ने सोचा कि तीनों देव गए काफी समय हो गया। वें अभी तक नहीं लौटे तो तीनों देवियां त्रिदेव को खोजती हुई अत्री के आश्रम में आई और अनुसूईया से त्रिदेवों के बारे में पूछा। अनुसूया ने पालने की ओर इशारा किया कि तुम्हारे देव पालनो में आराम कर रहे हैं। अपने-अपने देव को पहचान लो। लेकिन तीनों एक जैसे चेहरे होने के कारण वह ना पहचान सकी।

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लक्ष्मी जी ने बहुत चालाकी से विष्णु को पालने से उठाया तो वे शंकर थे। इस पर उनको बड़ा उपहास सहना पड़ा। तीनों देवियों ने अनुसूईया से विनती की। अनुसूईया ने कहा इन तीनों ने मेरा दूध पिया है, इसलिए इन्हें किसी ना किसी रूप में मेरे पास रहना पड़ेगा। इस पर त्रिदेव के अंश से एक विशिष्ट बालक का जन्म हुआ जिसके 3 सिर तथा 6 भुजाएं थी। यही बालक बड़ा होकर दत्तात्रेय ऋषि(Dattatreya) कहलाए।

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