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आखिर किन वस्त्रो में निकाला था भगवन श्री राम ने इतना लम्बा वनवास काल ?

वनवास काल के वस्त्र: फिल्म “आदिपुरुष” के साथ ही श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के 14 साल के वनवास के दौरान वस्त्रों पर चर्चा छिड़ गई है. आखिर वो अपने 14 साल के इतने लम्बे वनवास में क्या खाते थे , क्या पहनते थे ?
 
आखिर किन वस्त्रो में निकाला था भगवन श्री राम ने इतना लम्बा वनवास काल ? 

हाइलाइट्स

  • श्रीराम के दौर को त्रेता युग माना जाता है, उस दौर में व्यक्ति बेहतर तरीके से रहने का सलीका जान चुका था
  • वनवास के दौरान उन्होंने प्राकृतिक धागों से बने वस्त्रों का इस्तेमाल किया, जो कुछ चीजों से बनाये जाते थे
  • वैदिक काल में पुरुष और स्त्री की पोशाक क्या होती थी, कपास का उपयोग किस तरह होने लगा था

वनवास काल के वस्त्र: फिल्म “आदिपुरुष” के साथ ही श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के 14 साल के वनवास के दौरान वस्त्रों पर चर्चा छिड़ गई है. ये जानना चाहिए कि श्रीराम, सीता और लक्ष्मण जब अयोध्या से वनवास के लिए निकले, उनके शरीर पर कैसे वस्त्र थे, लंबे वनवास में कैसे वस्त्रों को इस्तेमाल किया, क्या उस दौर में सिले गये कपड़े इस्तेमाल होते थे.

रामायण में इस बात का उल्लेख हुआ था कि जब राम, सीता और लक्ष्मण 14 बरसों के लिए वनवास के लिए निकले और उन्होंने राजमहल छोड़ा तो राजसी वस्त्र छोड़कर वल्कल वस्त्र धारण कर लिये.

वल्कल वस्त्र का इस्तेमाल 
वृक्षों की छाल से बने वस्त्रों को वल्कल कहते हैं. राम और लक्ष्मण सामान्य तौर पर वन में वल्कल वस्त्र धारण करते थे तो सीता जी को दिव्य वसन अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूइया जी ने दान के रूप में दिए थे. वल्कल वस्त्रों के बारे में कहा जाता है कि त्रेता युग में इस तरह के वस्त्रों का काफी इस्तेमाल होता था. हालांकि भारत में कपास की खोज हो चुकी थी. लिहाजा सूती वस्त्रों का इस्तेमाल भी शुरू हो चुका होगा.

उपहार में दिए वस्त्र 

वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण को वनवासी जब मिलने आते थे और वो लोग इस दौरान वन में जब ऋषि मुनियों के पास जाते थे, तो उन्हें उपहार में फलों के साथ वस्त्र भी दिए जाते थे. वल्कल वस्त्रों के बारे में ये भी कहा जाता है कि ये छाल के अलावा प्राकृतिक धागों से बनते थे, उन्हें पानी में धोया जा सकता था.


वनवास में राम, सीता और लक्ष्मण खुद प्राकृतिक संसाधनों से धागे बनाकर वस्त्र तैयार करते थे.
कुछ किताबों में लिखा है कि वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण कड़ी मेहनत करते थे. अपने सारे काम खुद करते थे. वो वल्कल वस्त्र भी खुद बनाते थे, ताकि इनका इस्तेमाल कर सकें.

 जीने का सलीका
भारतीय शास्त्र कहते हैं कि जिस युग में राम पैदा हुए और रहे, वो त्रेता युग था. इस समय तक रहने, भोजन करने और जीवन जीने के तौर तरीके काफी विकसित हो चुके थे. त्रेतायुग हिंदू मान्यताओं के अनुसार चार युगों में एक युग है.

त्रेता युग मानवकाल के द्वितीय युग को कहते हैं. इसी युग में विष्णु के तीन अवतार प्रकट हुए, जो अवतार वामन, परशुराम और श्रीराम माने जाते हैं. यह काल राम के देहांत के साथ खत्म हो गया. इस युग के वर्ष और दिन काफी लंबे माने गए हैं.

 भारत में हुआ था सबसे पहले कपास का उपयोग
प्राचीन पाषाण काल ​​में, कपड़े घास और पौधों के तनों से बनाए जाते थे जो कपड़े बनाने के लिए एक साथ बुने जाते थे. पाषाण युग के अंत में कपड़े बनाने में मदद करने के लिए सुई और धागे का आविष्कार किया जा चुका था. एक बार जब लोग फिट कपड़े पहन सकते थे तो उनके लिए गर्म रखना और कठोर जलवायु में रहना आसान होता गया. इन कपड़ों को धोने की विधियां भी वो सीखते गए.

दुनिया में सबसे पहले कपास की खेती और इससे कपड़े बनाने का काम हजारों साल पहले ईसापूर्व भारत में शुरू हो चुका था.
 

 प्राकृतिक धागों के वस्त्र
प्राकृतिक धागों से बने वस्त्रों में सूती, रेशमी, खादी एवं ऊनी धागों से बने वस्त्र आते हैं. कपास और रेशम प्राकृतिक हैं. उनके बने कपड़े त्वचा के लिए बेहतर रहे हैं. मानव विकास की बहुत ढेर सारी चीजों के साथ ही वस्त्रों का विकास भी धीरे धीरे हुआ. वस्त्रों के लिए कपास की खेती की शुरुआत सबसे पहले भारत में हुई. सिंधु सभ्यता में इसके अवशेष मिले. सिंधू सभ्यता का प्रमुख उद्योग सूती वस्त्र उद्योग था.

सिंधु घाटी सभ्यता 
प्राचीन भारतीय कपड़ों के अवशेष सिंधु घाटी सभ्यता, चट्टानों की कटाई की मूर्तियां, गुफा चित्रों, और मंदिरों और स्मारकों में पाए जाने वाले मानव कला के रूपों से प्राप्त मूर्तियों में पाए जाते हैं. इस दौरान लोग शरीर के चारों ओर लपेटे जा सकने वाले कपड़े पहनते थे. कपड़े व्यक्ति की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी जाहिर करते थे.

वैदिक काल के वस्त्र
प्राचीन भारतीय पुरुष आमतौर पर धोती पहनते थे, जिसे कमर में लपेटकर नीचे पैरों तक पहना जाता था. महिलाएं पूरी शरीर को कवर करते हुए बगैर सिला लंबा वस्त्र लपेटती थीं. वैदिक काल में कपास से कपड़ों की बुनाई और रंगाई का शुरू हो चुका था.

साड़ी वैदिक संस्कृति में महिलाओं के लिए मुख्य पोशाक थी. ‘चोली’ या ब्लाउज, एक ऊपरी वस्त्र के रूप में बाद में वैदिक अवधि में आस्तीन और गर्दन के साथ प्रयोग होने लगी. डुप्टा भी इसके बाद शामिल हुआ.

साड़ी शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘कपड़ा की पट्टी’. ये प्राचीन समय में शडी शबाली बोली जाती थी जो बाद में साड़ी बन गई. तब पुरुषों के शुरुआती पहनावा धोती और लुंगी थे. उन दिनों पुरुष ऊपरी परिधान नहीं पहनते थे. बाद में कपास से बने कुर्ता, पजामा, पतलून, पगड़ी आदि विकसित हुए. ऊन औऱ रेशम का इस्तेमाल शुरू हो गया.

ऋग वेद 
ऋग वेद में मुख्य रूप से वस्त्रों के लिए  तीन शब्दों को प्रयोग करता है. आदिवासृत, कुर्ला और अन्प्रतिधि. निस्का जैसे गहनों के सबूतभी  मिलते हैं, रुका कान और गर्दन में पहनने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. सोने और मोतियों का हार पहना जाता था. ऋग वेद में चांदी का कोई प्रमाण नहीं मिलता.

अथर्व वेद 
अथर्व वेद में वस्त्रों को आंतरिक आवरण, बाहरी आवरण और छाती-आवरण से बना होना बताया गया. कुर्ला और अन्प्रतिधि के अलावा इन्हें निवी, वार्वरी, उपवासान, कुम्बा, उंल्सा, और टर्टल आदि बताया गया, जो शरीर के अलग हिस्सों में पहने जाते थे. गहनों को बनाने के लिए अपडेनहा (फुटवियर) और कंबला (कंबल), मणि (गहना) का भी उल्लेख किया गया.

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