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Janmashtami 2022: श्री कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत की कथा, कृष्ण चालीसा सहित हिन्दी मे

Janmashtami Vrat Katha with Krishna Chalisa: ज्योतिष शास्त्र  के अनुसार संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपत्ति को जन्माष्टमी का व्रत (Janmashtami Vrat) जरूर रखना चाहिए। साथ ही, इस दिन श्री कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) का पाठ भी जरूर करें। इस दिन चालीसा पाठ करने से व्यक्ति को लड्डू गोपाल (Laddu Gopal) की कृपा तो प्राप्त होती ही है। साथ ही, सभी दुख और विपत्ति से भी छुटकारा मिलता है। आइए जानें श्री कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) के बारे में।
 
Janmashtami Vrat katha

कृष्ण जन्माष्टमी की कथा (Krishna Janmashtami Vrat Katha with Krishna Chalisa)

द्वापर युग में धरती पर राक्षसों के अत्याचार बढ़ने लगे। धरती, गाय का रूप धारण कर अपनी व्यथा सुनाने के लिए ब्रह्मा जी के पास गई। ब्रह्मा जी सब देवताओं को लेकर विष्णु के पास क्षीरसागर गए। उस समय भगवान विष्णु जी शैया पर शयन कर रहे थे। भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की स्तुति करने पर निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्मा और देवताओं को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो धरती बोली- भगवन मैं पाप के बोझ के नीचे दबी जा रही हूं, मेरा उद्धार कीजिए। यह सुनकर विष्णु बोले- मैं ब्रज मंडल में वासुदेव (Vasudeva) की पत्नी देवकी (Devaki) के गर्भ से जन्म लूंगा। तुम सब यादव वंश में सभी देवता जन्म लो। इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद ब्रजभूमि में नंद-यशोदा तथा गोप गोपियों ने जन्म लिया।

द्वापर युग में मथुरा (Mathura) में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस (Kans) था। कंस ने अपने पिता को बलपूर्वक सिंहासन से उतार दिया और जेल में डाल दिया। आप स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव वासुदेव के साथ हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ में जा रहा था तो आकाशवाणी हुई की हे कंस! देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है। उसका आठवां पुत्र तेरा काल बनेगा। आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोध में आकर देवकी को मारने को तैयार हो गया। कंस ने सोचा- ना देवकी होगी, ना उसका पुत्र। वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई डर नहीं है, देवकी की आठवीं संतान से तुम्हें डर है, इसलिए मैं उसकी आठवीं संतान को स्वयं तुम्हें सौंप दूंगा। कंस ने वासुदेव की बात मान ली और वासुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया। उसी समय नारद वहां पर आए और कंस से बोले कि यह कैसे पता लगेगा कि आठवां कौन सा होगा। गिनती प्रथम से या आठवें के गर्भ से शुरू होगी। कंस ने सभी बच्चों को मारने का निश्चय कर लिया। इस तरह उसने एक एक करके देवकी के साथ पुत्रों को निर्दयता पूर्वक मार डाला।

Shri Krishna Birth Story in Hindi

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र मैं श्री कृष्ण (Shri Krishna) का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वसुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा, और पदमाधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा- अब मैं बालक रूप धारण करता हूं। तुम मुझे जल्दी गोकुल में नंद के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी कन्या जन्मी है, उसको कंस को लाकर दे दो। तत्काल वासुदेव जी की हथकड़ियां खुल गई, दरवाजे अपने आप खुल गए, पहरेदार सो गए, वासुदेव कृष्ण को सूप में रख कर गोकुल चल दिए। रास्ते में यमुना श्री कृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए ऊपर बढ़ने लगी। भगवान ने पैर नीचे किए और चरण छूने के बाद यमुना कम हो गई। वसुदेव यमुना पार करके गोकुल में नंद के यहां गए। कृष्ण जी को यशोदा जी के पास सुलाकर कन्या को लेकर वापस आ गए। कंस के कारागार में जेल के दरवाजे फिर बंद हो गए। वसुदेव के हाथों में हथकड़ियां लग गई। पहरेदार जाग गए। कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा लेकिन कंस के हाथों से छूट कर आकाश में चली गई एवं देवी का रूप धारण कर बोली है-  मुझे मारने से कोई लाभ नहीं! तुझे मारने वाला गोकुल में पहुंच गया। यह सुनकर कंस व्याकुल हो गया। कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए अनेक राक्षस भेजें। श्री कृष्ण ने अपनी अलौकिक माया से सारे राक्षसों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मार कर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया। श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण का जन्म हुआ, इसलिए यह जन्माष्टमी के रूप में मनाई जाती है।

Shri Krishna Chalisa

कृष्ण चालीसा पाठ (Krishna Chalisa in Hindi)

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥
जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

चौपाई
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर नाग नथैया।कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजयंती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो।अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो।कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो।कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो।भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो।तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके।लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये।भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया।डूबत भंवर बचावत नैया॥
सुन्दरदास आस उर धारी।दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥

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