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Aditya-L1: जाने कब जाने वाला है हमारा एल-1 मिशन, जाने सूरज के कितने पास जाने वाला है हमारा यान, ग्रहण भी नहीं बिगाड़ पाएगा हमारा मिशन

Sun Mission:हम आपकी जानकारी के लिए बता दे कि पृथ्वी से सूरज के बीच की दूरी जितनी है, L1 प्वाइंट उसके केवल 1% ही है. वही हम आपको बता दे कि इस 1% की दूरी 1.5 मिलियन किलोमीटर है, हम आपको बता दे कि पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी 150.99 मिलियन किलोमीटर मानी जाती है.

 
जाने कब जाने वाला है हमारा एल-1 मिशन, जाने सूरज के कितने पास जाने वाला है हमारा यान, ग्रहण भी नहीं बिगाड़ पाएगा हमारा मिशन

Haryana Update: चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की सफलता के बाद भारत, सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य एल-1 मिशन लॉन्च करने को तैयार है. अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) 2 सितंबर (शनिवार) को आदित्य एल-1 मिशन (Aditya L1) लॉन्च करेगा.

इसरो के मुताबिक आदित्य एल-1 सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला वेधशाला श्रेणी (Observatory Class) का सौर मिशन है. इसरो (ISRO), इस सौर मिशन से आखिर क्या हासिल करना चाहता है, आदित्य एल-1 सूरज के कितने करीब और कहां जाएगा, अपने साथ क्या-क्या लेकर जाएगा, अब तक कौन-कौन से देश सौर मिशन भेज चुके हैं? आइये जानते हैं…

सूर्य के बारे में जानकारी

सूरज, हमारे सौरमंडल (Solar System) का सबसे विशाल पिंड और सबसे बड़ा तारा है. हाइड्रोजन और हीलियम गैस से बने सूर्य की अनुमानित उम्र (Sun Age) 4.5 बिलियन वर्ष है और यही पूरे सौरमंडल के लिए ऊर्जा का स्रोत है.

सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना बेकार है. सूर्य का आयतन (Volume) 13 लाख पृथ्वी जितने आयतन के बराबर है और सूरज का गुरुत्वाकर्षण (Gravity) ही सौरमंडल के सभी पिंड को उसकी तय जगह पर टिकाए रखता है, जिसमें पृथ्वी भी शामिल है.

जाने कितना गर्म है सूरज?

सूर्य का सबसे अधिकतम तापमान (Sun Temperature) उसके केंद्र में होता है, जिसे ‘कोर’ कहते हैं। ISRO के मुताबिक ‘कोर’ का अधिकतम तापमान 15 मिलियन यानी 1.5 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

इस टेंपरेचर पर ‘कोर’ के अंदर नाभिकीय संलयन प्रक्रिया (Nuclear Fusion) होती है, यही सूर्य को ऊर्जा प्रदान करती है. सूरज का प्रकाशमंडल (वो हिस्सा जो हमें दिखाई देता है) ‘कोर’ के मुकाबले कई गुना ठंडा है. इसका तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस तक होता है.

ये है आदित्य एल-1 की जानकारी

आदित्य एल-1 (Aditya L1) सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष आधारित मिशन है. यह अंतरिक्ष यान अपने साथ कुल 7 पेलोड्स लेकर जाएगा, जो फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य के सबसे बाहरी परत (कोरोना) का अध्ययन करेंगे.

अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज प्वाइंट 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा. लैग्रेंज प्वाइंट (Lagrange Points) अंतरिक्ष में वह स्थान होते हैं, जहां पर यदि किसी छोटे पिंड को रखा जाए तो वह वहीं ठहर जाता है.

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किसी स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में सूर्य और पृथ्वी के बीच इस प्वाइंट पर इसलिए रखा जाता है ताकि वह एक जगह टिके रहें और ईंधन भी कम खर्च हो.

ग्रहण नहीं रोक सकता आदित्य एल-1 का रास्ता

इसरो के मुताबिक आदित्य एल-1 को लैग्रेंज प्वाइंट L1 की कक्षा (Halo Point) में रखने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इस प्वाइंट से सूर्य को बिना किसी रोकटोक या बाधा के देखा जा सकता है. यहां तक कि ग्रहण भी आदित्य एल-1 का रास्ता नहीं रोक पाएंगे.

जाने कितना करीब जा रहा है आदित्य एल-1?

अंतरिक्ष में इस तरीके के कुल 5 द्विपिंडीय (दो पिंडों के बीच) लैग्रेंज प्वाइंट (Lagrange Points) हैं। इनमें L1, L2, L3, L4 और L5 शामिल है। लैग्रेंज प्वाइंट L1 सूर्य और पृथ्वी रेखा के बीच स्थित है. भारत का सौर मिशन इसी प्वाइंट पर जाएगा.

इसरो के मुताबिक पृथ्वी से सूरज की जितनी दूरी है, L1 प्वाइंट की दूरी उसका महज 1% है. पृथ्वी और एल-1 के बीच की दूरी 1.5 मिलियन किलोमीटर है, जबकि पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी 150.99 मिलियन किलोमीटर के आसपास है. यानी आदित्य एल-1 सूरज के करीब होकर भी बहुत दूर होगा.

जाने इसके जरीए क्या होने वाला है हासिल?

इसरो (ISRO) के मुताबिक चूंकि सूरज सबसे नजदीकी तारा है, इसलिए दूसरे तारों के मुकाबले इसका अध्ययन आसान है. आदित्य एल-1 के जरिये सूर्य की ऊपरी सतह यानी फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर (वायुमंडलीय परत) और कोरोना (दहकता हुआ सबसे बाहरी भाग) के विस्तृत अध्ययन की योजना है।

आदित्य एल-1 के जरिये हम दूसरी गैलेक्सी के तारों के बारे में और जानकारी हासिल कर सकते हैं. साथ ही सूर्य के अध्ययन से दूसरे ग्रहों के मौसम और उसके व्यवहार को भी समझा जा सकता है. इस मिशन के जरिये हासिल डाटा, भविष्य के दूसरे मिशन मसलन- शुक्रयान या मंगल मिशन के लिए भी बहुत कारगर साबित हो सकते हैं.

जाने कौन से देश लॉन्च कर चुके है मिशन?

भारत से पहले अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा (NASA), यूरोप की स्पेस एजेंसी और जर्मनी ने अलग-अलग और संयुक्त रूप से सूर्य के अध्ययन के लिए मिशन भेजे हैं. नासा के 3 मिशन- सोहो (Solar and Heliospheric Observatory), पार्कर सोलर प्रोब और आइरिस (Interface Region Imaging Spectrograph) काफी चर्चित रहे हैं. पार्कर सोलर प्रोब मिशन, सूर्य के सबसे करीब पहुंचने वाला अंतरक्षि यान है.

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