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Guillain Barre Syndrome बीमारी बना रही सबको अपना शिकार, जानिए क्या है लक्षण

Guillain Barre Syndrome: आजकल एक बीमारी ने लोगों को काफी परेशान कर रखा है। मिली जानकारी के अनुसार पुणे में 59 लोगों में गिलियन-बैरे सिंड्रोम नामक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार पाया गया है।
 
Guillain Barre Syndrome
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Guillain Barre Syndrome: आपको बता दें कि आजकल एक बीमारी ने लोगों को काफी परेशान कर रखा है। मिली जानकारी के अनुसार पुणे में 59 लोगों में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) नामक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार पाया गया है। साथ ही 12 लोग वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। साथ ही यह भी आपको बता दें कि बच्चों में भी यह बीमारी हो सकती  है।

 


आपकि जानकारी के लिए यह भी बता दें कि यह सिंड्रोम बच्चों में भी हो सकता है। आज हम आपको इस लेख में बच्चों में जीबीएस के लक्षण, इलाज, आदि के बारे में बता रहे हैं।

 

गिलियन-बैरे सिंड्रोम क्‍या है?
Cedars-sinai कहते हैं कि यह एक जानलेवा बीमारी है जो शरीर की नसों को प्रभावित करती है। इससे मांसपेशियों में दर्द, मांसपेशियों में कमजोरी और चेहरे, छाती और पैरों में लकवा हो सकता है। इलाज न मिलने पर छाती और निगलने वाली मांसपेशियों में दर्द की वजह से सांस लेने में कठिनाई, दम घुटने और मौत तक हो सकता है।

 

बच्‍चों में क्‍यों होता है जीबीएस?
जानकारी के अनुसार जीबीएस का सटीक कारण शोधकर्ताओं को पता नहीं है। यह एक ऑटोइम्युन विकार है, जिसमें इम्युन सिस्टम नर्वस सिस्टम पर हमला करता है। ऐसा सर्जरी, वायरल संक्रमण या बहुत कम मामलों में वैक्सीन के प्रतिक्रिया से हो सकता है। जीबीएस के लक्षण लगभग 3 में से 2 लोगों में दस्त या श्वसन संबंधी बीमारी के कुछ दिनों या सप्ताहों बाद दिखाई देते हैं।

 

बच्‍चों में जीबीएस के लक्षण
जीबीएस के लक्षण हर बच्चे में अलग-अलग हो सकते हैं। इसमें उंगलियों और पैरों की उंगलियों में कम महसूस होना, इनमें दर्द होना, पैरों में कमजोरी, पैरों के दर्द का हाथों तक आना, चलने में दिक्‍कत, चिड़चिड़ापन, सांस लेने में दिक्‍कत, निगलने में दिक्‍कत, चेहरे पर कमजोरी शामिल है।

कब तक रहते हैं लक्षण?
कुछ हफ्तों तक बच्चे की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं। नसों को ठीक करने में कितने दिन लगेंगे, इस पर निर्भर करता है। यह आम तौर पर एक से दो महीने तक रहता है। पूरी तरह से फिर से स्वस्थ होने में एक से दो वर्ष लगते हैं।

Kidshealth के अनुसार, इस बीमारी का इलाज दो तरीके से किया जा सकता है:

इम्यूनोग्लोबुलिन चिकित्सा: शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इस स्वस्थ एंटीबॉडी इंजेक्शन से बचाव करती है।

प्लाज्मा एक्सचेंज या प्लाज्माफेरेसिस: एक मशीन शरीर से खून को पंप करती है, तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली कोशिकाओं को हटाती है और फिर खून को वापस शरीर में भेजती है।

इस स्थिति वाले लोगों को दर्द कम करने और खून के थक्कों को कम करने के लिए दवाएं दी जाती हैं।

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