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Haryana News : हरियाणा के इस इलाके में दबा मिल सकता है ये किला, मिल रहे है संकेत

मिर्जापुर गांव में दानवीर कर्ण का टीला महाभारतकालीन युद्ध के अवशेषों की खोज में एक महत्वपूर्ण स्थान हो सकता है। यही स्थान महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण का कैंप या किला था।भारतीय पुरातत्व विभाग आधुनिक उपकरणों से एक निश्चित गहराई तक खोदाई करेगा तो सफलता मिलेगी।
 
Haryana News : हरियाणा के इस इलाके में दबा मिल सकता है ये किला, मिल रहे है संकेत 

सात जगह कर्ण का टीला भी है

पुरातत्ववेताओं के अनुसार, यह पहली बार 1909 में अंग्रेजों द्वारा खोदा गया था, फिर 1985 के लगभग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा दोबारा खोदा गया था। लेकिन दोनों खोदाई सिर्फ अनुष्ठान थीं।

इस दौरान हड़प्पाकालीन वस्तुएं और मृदभांड तो मिले, लेकिन महाभारत युद्ध के अवशेष नहीं मिले। ऐसे में पुरातत्व विभाग को पूरी योजना खोदनी होगी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने पिछले दिनों पुरातत्व विभाग से सात स्थानों का सर्वे कराया था, जिसमें कर्ण का टीला भी था।

भी एक स्नानागार मिल गया

टीले के उत्तरी हिस्से में एक स्नानागार भी मिला. वहाँ से मध्यकालीन भवन संरचनाएं और मृदपात्रों के अलावा अन्य सांस्कृतिक वस्तुएं मिली हैं।

यहां की संरचनाएं लाखोरी ईटों से बनाई जाती हैं। मुगल काल के चमकीले मृदपात्रों के अलावा यहां इसी काल का एक स्नानागार भी पाया गया है। इस स्थान में ऐसे महत्वपूर्ण सामान मिलने के कारण इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया था।

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डॉ. अरुण केसरवानी, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त पुरातत्ववेता, ने कहा कि कर्ण का टीला प्रारंभिक ऐतिहासिक काल का महत्वपूर्ण पुरास्थल है। मिर्जापुर गांव में भी उत्तरी हड़प्पाकालीन अवशेष पाए गए हैं।

50 सेमी लंबी ईंटों की पुष्टि

मिर्जापुर में स्थित कर्ण के टीले को महाभारत काल के कर्ण से संबंधित बताया जाता है। यह कर्ण की सेना थी।

यहां प्राचीन सादे धूसर मृदभांड, लाल मृदभांड और काली पालिश वाले मृदभांड का एक टुकड़ा मिल गया है, साथ ही कुछ चित्रित धूसर मृदभांड भी हैं। यहां पांच सौ सेंटीमीटर लंबी ईटों की भी पुष्टि हुई है। पत्थर के सिल और महंगे मनके भी मिल गए।

मृदभांडों के आधार पर दो उपकालों में बाँट दिया गया

वहीं द्वितीय काल मृदभांडों के अनुसार इसे दो उपकालों में बाँटता है। उपकाल 2A में ईसा के पहले शताब्दी के लाल मृदभांड मिले हैं, जबकि उपकाल 2B में लाल पालिश वाले मृदभांड मिले हैं। इनमें अधिकांश मृदभांड अचित्र हैं, लेकिन कुछ पर चक्र, नंदीपाद और पत्तियों के चित्र हैं। इसमें घर बनाने के लिए पहले कच्ची ईटें थीं, लेकिन बाद में पक्की ईटें भी दी गईं।

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