logo

Millets Year: मोदी सरकार ने देश में मोटे अनाज को लेकर बनाया, नया प्लान! फिर से करेंगे ‘जय जवान-जय किसान’ के नारे को बुलंद

Millets Year: अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इस नारे को फिर बुलंद करने जा रही है. इसके लिए सरकार ने एक जबरदस्त प्लान बनाया है. वैसे भी संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को 'मिलेट ईयर' के तौर पर मनाने का ऐलान किया है.

 
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार एक तरफ भारत को दुनिया की ‘मिलेट कैपिटल’ बनाना चाहती है. वहीं दूसरी ओर सरकार मोटे अनाज (मिलेट्स) के माध्यम से देश में एक बार फिर ‘जय जवान-जय किसान’ के नारे को बुलंद करना चाहती है. इसके लिए सरकार ने 2023-24 के आम बजट में भी ‘श्री अन्न’ के कॉन्सेप्ट पर फोकस किया है, नया प्लान बनाया है. वहीं ये देश में मोटे अनाज का बिजनेस भी बढ़ाएगा, जिससे किसानों की आय बढ़ेगी.

यह भी पढ़ें-IAS Interview Questions: झूठ बोलते समय शरीर का कौन से अंग गर्म हो जाता है?

भारत में एक या दो नहीं बल्कि मोटे अनाज की दर्जनों किस्में पाई जाती हैं. इसमें मक्का, ज्वार, बाजरा जैसी फसलें जहां काफी पॉपुलर हैं तो वहीं रागी, कोदे, काकुन, चीना, कंगनी जैसे कई और अनाज भी इस कैटेगरी में आते हैं. हम सबने महाराणा प्रताप की घास की रोटियां खाने वाली कहानी सुनी है, ठीक वैसी ही एक कहानी 2015 में बुंदेलखंड से आई थी…

बुंदेलखंड में गांव वालों ने खाई घास की रोटी

देश में बुंदेलखंड का इलाका अक्सर सूखे की चपेट में रहता है. ऐसे में 2015 में एक खबर आई कि इस इलाके के गांवों में लोगों को गरीबी के चलते घास की रोटी खानी पड़ रही है. पर बुंदेलखंड का इलाका मोटे अनाजों की अच्छी पैदावार वाला इलाका है. बाद में पता चला कि उन्होंने वहां जंगली तौर पर उगने वाले मोटे अनाज की रोटियां खाईं थी, जो दशकों से स्थानीय खाने में इस्तेमाल होता रहा है.

यह भी पढ़ें-IAS Interview Questions: ऐसी क्या चीज है जिसे लड़की खाती भी है और पहनती भी है?

मोटे अनाजों की एक खासियत होती है कि ये सूखा या कम पानी वाले इलाकों में भी अच्छी फसल देते हैं. वहीं इन्हें कई सालों के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है. सूखा प्रभावित इलाकों में सालों से जब भी फसल बरबाद होती है, तब यही अनाज स्थानीय लोगों की भोजन की जरूरत पूरा करते हैं. अब सरकार फिर से इन मोटे अनाजों को प्रोत्साहन देने का काम कर रही है.

Bhutta Pixabay

मोटे अनाजों में मक्का, ज्वार, बाजरा जैसी फसलें काफी पॉपुलर हैं. (Photo: Pixabay)

सेना की खुराक में शामिल होंगे मोटे अनाज

करीब 50 साल पहले भारतीय सेना की खुराक में अच्छी-खासी मात्रा में मोटे अनाज का इस्तेमाल होता था. फिर देश में ‘हरित क्रांति’ आई और गेहूं-चावल जैसी फसलों को उगाने पर जोर दिया जाने लगा. किसानों ने मोटे अनाजों की खेती कम कर दी. पहले देश में खेती के कुल रकबे में मोटे अनाजों की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी. अब ये घटकर महज 20 प्रतिशत रह गई है. इसलिए लोगों के साथ-साथ ये सेना के जवानों की थाली से भी गायब हो गए.

अब सेना चाहती है कि जवानों की डाइट में मोटे अनाज शामिल हों और अब ये मांग जल्द पूरी भी होने जा रही है. ईटी की खबर के मुताबिक आने वाले समय में सेना के जवानों की डाइट में लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा मोटे अनाज शामिल किए जाएंगे. ये उनके स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाएगा. मोटे अनाज में हाई फाइबर, प्रोटीन और अच्छी मात्रा में विटामिन्स और मिनरल होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बढ़िया हैं.

पारंपरिक खाने ने बचाए रखे मोटे अनाज

गेंहू और चावल का चलन बढ़ने के बाद देश में मोटे अनाज का उपयोग कम हो गया, लेकिन ये पूरी तरह खत्म नहीं हुए. इसकी वजह भारत के पारंपरिक खाने में इनका इस्तेमाल होना. जैसे बाजरे की खिचड़ी, मक्का-बाजरा की रोटी या बाटी और मक्का का खीचला वगैरह. वहीं राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के उन इलाकों में इसकी पूछ बनी रहीं, जहां अक्सर सूखा पड़ता है.

Bajra Roti

बाजरे की रोटी (Photo: Pixabay)

मोटे अनाज को पकाने में गेहूं और चावल के मुकाबले ज्यादा वक्त लगता है. इसलिए लोगों की किचन से ये धीरे-धीरे गायब होने लगे, लेकिन इनके स्वास्थ्यवर्धक होने की वजह से ही ये देश में फिर पॉपुलर हो रहे हैं, तभी तो बाजार में कई कंपनियां मल्टीग्रेन आटा से लेकर मल्टीग्रेन ब्रेड तक बेचती हैं.

लागत कम फिर क्यों नहीं उगाते किसान?

मोटे अनाज को उगाने में मेहनत भी कम लगती है और इसकी खेती में लागत भी कम आती है. सूखे इलाकों में भी इनकी खेती हो सकती है. जबकि कुछ तो अपने आप भी उग आते हैं, तो कुछ पथरीले जमीन पर भी उग सकते हैं. वहीं गेहूं और चावल की खेती के लिए बहुत पानी चाहिए होता है.

फिर किसान आखिर मोटा अनाज उगाने से कतराता क्यों है. इसकी वजह सरकार का मोटे अनाजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर नहीं खरीदा जाना. दूसरा बाजार में इनकी अच्छी कीमत नहीं मिलना. वहीं इनका खाद्य सुरक्षा के कार्यक्रम में शामिल ना होना है. कुछ मोटे अनाज जैसे कि बाजरा, रागी और ज्वार के लिए सरकार ने एमएसपी घोषित की है, लेकिन इन्हें इस कीमत पर बेच पाना टेड़ी खीर है.

Bajra Pixabay

बाजरा का खेत (Photo: Pixabay)

मोटे अनाज कराएगा चोखा धंधा

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में 2012 के आसपास मोटे अनाज पर सरकार का ध्यान एक बार फिर गया. उस समय सरकार ने इसे लेकर एक पॉलिसी बनाई. इसका मकसद मिलेट्स का उत्पादन बढ़ाकर देश में पोषण सुरक्षा तैयार करना था. मोदी सरकार के आने के बाद 2018 में मिलेट्स को ‘पोषक अनाज’ घोषित कर दिया गया. साथ ही इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन से जोड़ दिया गया. उसी साल सरकार ने 2023 को इंटरनेशनल मिलेट ईयर घोषित करने का प्रस्ताव रखा था.

अब सरकार ने हाल में मिलेट बेस्ड प्रोडक्ट के उत्पादन के लिए पीएलआई स्कीम के तहत 800 करोड़ रुपये का आवंटन किया है. इसके अलावा एक मिलेट रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाने का भी प्रस्ताव है. वहीं सरकार ने 2025 तक देश को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मिलेट निर्यातक (एक्सपोर्टर) बनाने का ऐलान किया है. अभी हम इस मामले में पांचवे नंबर पर हैं.

भारत में एफएमसीजी सेक्टर में काम करने वाली कंपनियां बड़े पैमाने पर मिलेट को अपना रही हैं. बिस्किट से लेकर बीयर तक और पैकेज्ड फूड से लेकर रेस्टोरेंट तक, मोटे अनाजों से बने उत्पाद की मांग बढ़ रही है. नेस्ले, आईटीसी, ब्रिटानिया, हिंदुस्तान यूनिलीवर, टाटा कंज्यूमर, बीरा 91 लैसी कंपनियों ने मिलेट से बने कई उत्पाद पेश किए हैं. यानी आने वाले दिनों में इनकी मांग बढ़ना तय है, जो किसानों से लेकर व्यापारियों तक मिलेट के धंधे को चोखा बनाएगा.


click here to join our whatsapp group