Property Court Rules : जमीनी जायदाद के मामले को लेकर कोर्ट ने लिया नया मौड़, जानिए क्या आया फैसला 

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के बंटवारे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि अवैध शादी करने वाले बच्चों को माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। भले ही ये सम्पत्ति स्वयं प्राप्त की गई हो या पैदा की गई हो।आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।

 

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के बंटवारे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि अवैध शादी करने वाले बच्चों को माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। भले ही ये सम्पत्ति स्वयं प्राप्त की गई हो या पैदा की गई हो।आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की एक बेंच ने इस निर्णय को दिया है। हिंदू मिताक्षर कानून के तहत संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति पर यह निर्णय लागू होगा।

क्या मामला था-
2011 के एक निर्णय के खिलाफ दायर याचिका इस मामले से संबंधित है।  2011 के इस निर्णय में भी अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को प्रॉपर्टी मिलेगी, चाहे वह खुद अर्जित हो या पैतृक हो। इस निर्णय ने कहा कि ऐसे रिश्ते में बच्चे का जन्म मामले से अलग होना चाहिए। अमान्य शादियों में रहने वाले बच्चों को मान्य शादियों से होने वाले बच्चों की तरह समान अधिकार मिलने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया क्योंकि इस मामले में बहस पूरी हो चुकी थी।

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विवाह क्या है?विवाह भारत में एक धार्मिक प्रक्रिया है जिसके कानूनी अधिकार भी हैं। धार्मिक विविधता के कारण भारत में शादी के लिए कई कानून हैं। हिन्दू मैरिज एक्ट, क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, मुस्लिम पर्सनल लॉ, और स्पेशल मैरिज एक्ट इसमें शामिल हैं। इन सभी कानूनों का लक्ष्य है कि शादी को समाज में मान्यता मिले और पत्नी से लेकर बच्चों तक को उनके अधिकार मिले। इन सभी कानूनों में यह भी बताया गया है कि किन दो लोगों के बीच शादी हो सकती है और किन हालात में शादी से बाहर निकला जा सकता है।

कानून के अनुसार विवाह तीन प्रकार का होता है पहला वैध विवाह, या कानूनन मान्य विवाह इसे कानूनी दर्जा मिलता है और शादी में बंधने वाले और उनके आगे बढ़ने वाले सभी अधिकार मिलते हैं।

अमान्य विवाह को दूसरा विवाह कहते हैं। दरअसल, कुछ परिस्थितियों में विवाह संभव ही नहीं है। हिंदू शादी कानून के अनुसार एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं हो सकती। लेकिन शादी होने पर यह विवाह अमान्य विवाह कहलाता है। हिंदू कानून के अनुसार, अमान्य विवाह में पति पत्नी का दर्जा नहीं मिलता। यही कारण है कि ऐसी शादी को खत्म करने के लिए कानून की कोई आवश्यकता नहीं होती। साथ ही पत्नी कोई आरोप नहीं लगा सकती।

तीसरा विवाह अमान्यकरणी विवाह में, दोनों पक्षों में से एक पक्ष विवाह को अस्वीकार करना चाहिए। और विवाह को कानूनन अमान्य घोषित करता है। यह तलाक से अलग है। जहां दो लोग शादी को तोड़ने का अनुरोध करते हैं अमान्यकरणी विवाह में सिर्फ शादी को रद्द करने की मांग की जाती है और दोनों पक्ष अविवाहित माने जाते हैं, लेकिन तलाक के बाद दोनों पक्ष तलाकशुदा माने जाते हैं।  शुक्रवार का निर्णय सिर्फ अमान्य और अमान्यकरणीय विवाहों पर था।