Supreme Court Rules : बिना शादी के जन्मे बच्चे का पिता की प्रॉपर्टी में हक होता है या नहीं
Property Rules : विवाहित औलादा का पैतृक संपत्ति में हिस्से को लेकर एक लंबे समय से लंबित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। हम देखेंगे कि क्या बिना शादी के औलाद का पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा।
Haryana Update, Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवैध विवाह से पैदा हुए बच्चे भी अपने माता-पिता की अर्जित और पैतृक संपत्ति का हकदार होंगे। ऐसे मामलों में बेटियों को भी संपत्ति में समान अधिकार होगा। 2011 से लंबित एक याचिका का निपटारा करते हुए शीर्ष अदालत ने यह व्यवस्था दी। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16(3) का दायरा भी बढ़ा दिया है।
शुक्रवार को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने ऐतिहासिक निर्णय दिया। बेंच ने निर्णय दिया कि अमान्य विवाह या शून्य विवाह से जन्मे बच्चों को भी उनकी माता-पिता की अर्जित और पैतृक संपत्ति में हक मिलेगा। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16(1) और 16(2) के अंतर्गत आने वाले बच्चों को भी वैध कानूनी वारिसों के साथ हिस्सा मिलेगा, इसके लिए अदालत ने धारा 16(3) का दायरा बढ़ा दिया।
18 अगस्त को अदालत ने मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने भी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16(3) के तहत ऐसे बच्चों का हिस्सा केवल उनके माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति तक सीमित है या नहीं। 31 मार्च 2011 को, सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इन सवालों को बड़ी बेंच को भेजा।
ये था कोर्ट के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न।
हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की संपत्ति पर सहदायिक अधिकार या माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार होने का कानूनी मुद्दा अदालत के सामने आया। 2011 में एक अदालत ने निर्णय दिया कि हिंदू विवाह कानून के अनुसार, अवैध विवाह से पैदा हुई संतान केवल अपने माता-पिता की अर्जित संपत्ति पर अधिकार दावा कर सकती है। नई बेंच शीर्ष अदालत के पहले फैसले से असहमत थी कि ऐसे बच्चों को अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा।
"कानून भी बदलना चाहिए"
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हमारे समाज सहित हर समाज में वैधता के सामाजिक मानदंड बदल रहे हैं, चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा। वर्तमान में कुछ नाजायज हो सकता है। सामाजिक सहमति से वैधता की अवधारणा पैदा होती है, जिसे बनाने में कई सामाजिक समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कानून बदलते समाज में स्थायी नहीं रह सकता।
हिंदू शादी कानून में शादी को दो आधारों पर अमान्य माना जाता है: शादी के दिन से ही और अगर कोर्ट डिक्री देकर उसे अमान्य घोषित कर दे। हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार, अमान्य शादी में जन्मे बच्चे माता-पिता की अर्जित संपत्ति पर दावा कर सकते हैं। यद्यपि, कोर्ट ने यह भी कहा कि उनका निर्णय केवल हिंदू मिताक्षरा कानून के तहत संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति पर लागू होगा।