ये सब्जी बना देगी आपको लखपति, पूरे साल रहती है खूब डिमांड 

आधुनिक युग में किसानों ने पारंपरिक खेती को छोड़कर बागवानी और ऑर्गेनिक खेती की ओर रुख किया है। फलों और सब्जियों की खेती से किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। हम इस भाग में चार आलू की किस्मों की जानकारी देंगे जो आपको तीन महीने में अधिक पैदावार देंगे। विशेष बात यह है कि ये किस्में कम पानी में भी तैयार हो सकते हैं।
 

याद रखें कि हर घर हर साल आलू खाता है, जो एक बड़ी नकदी फसल है। इसकी खेती भी व्यापक रूप से की जाती है क्योंकि इसकी खपत अधिक है। राष्ट्रीय स्तर पर उत्तरी मैदानी क्षेत्र करीब 90% आलू की खेती करते हैं। यहाँ रबी में आलू उगाया जाता है। आलू उत्पादक जलवायु परिवर्तन के दौर में फसल के जैविक और अजैविक कारणों से जूझते हैं।


होगी 20 प्रतिशत पानी की बचत आलू की इन किस्मों की खेती करने में 80 से 100 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि आम तौर पर 125 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। 15 से 25 सितंबर तक आलू की खेती करना सबसे अच्छा है, और 15 से 25 अक्टूबर तक इसकी पछेती बुवाई करना सबसे अच्छा है। कम पानी दक्षता वाली आलू की किस्मों की खेती करके किसान अधिक उत्पादन कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। निचे प्रमुख चार किस्मो की जानकारी दी गई है:

कुफरी थार-1 एक आलू की प्रजाति है जो कम पानी और अच्छी उपज देती है। यह कुफरी बहार और सीपी 1785 के बीच क्लोनल चुनाव है। इसका गूदा सफेद-क्रीमी रंग है। 90 दिनों में यह किस्म 30-35 टन प्रति हेक्टेयर देती है।

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कुफरी थार-2: यह किस्म कम पानी वाले क्षेत्रों में उपजाया जा सकता है, जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और छत्तीसगढ़। एक किलो आलू को 75 लीटर पानी चाहिए। यह प्रति हेक्टेयर ३० टन तक उपज दे सकता है।

कुफरी थार-3 किस्म छत्तीसगढ़, राजस्थान और हरियाणा में बेहतर है। यह कुफरी ज्योति और जेएन 2207 के बीच बनाया गया है। यह 38 लीटर प्रति किलो पानी बचाता है। यह किस्म 90 दिनों में तैयार हो जाती है और कुछ हद तक पिछेता झुलसा रोग से बचती है। इसकी उपज 32 से 34 टन प्रति हेक्टेयर होती है।

कुफरी गंगा: कुफरी गंगा 75 से 90 दिनों में मैदानी क्षेत्रों में 35 से 40 टन प्रति हेक्टेयर की उपज दे सकती है। यह सफेद-क्रीमी रंग का है। यह प्रजाति पिछेता झुलसा रोग से मध्यम प्रतिरोधी है।