China-Taiwan: क्या ताइवान की तनातनी भारत के लिए है एक मौक़ा?

Taiwan- China controvercy: बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव से बात करते ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ़ वू ताइपे (Foreign Minister Joseph Wu Taipei) के विदेश मंत्रालय में इन दिनों काफ़ी गहमा-गहमी है. लगभग सभी बड़े अधिकारी काम पर हैं और जो छुट्टी पर थे वे भी जल्द लौट आए हैं.
 

Haryana Update: राजधानी के बीचोबीच बने एक विशालकाय, खूबसूरत प्रेसीडेंशियल पैलेस के पास मौजूद सादी सी इमारत के अंदर दिन-रात विदेशी मित्रों से सम्पर्क सधा हुआ है. चीन की मीडिया (China media) पर नज़र रखने के लिए एक अलग विभाग है और अंतरराष्ट्रीय मीडिया (international media) पर नज़र बनाए रखने के लिए दूसरा.

आज का समय दिया है- given today time

मुलाक़ात में जोसेफ़ वू ने कहा, "भारत और ताइवान डेमॉक्रेसी और मानवाधिकारों ("India and Taiwan Democracy and Human Rights) में यक़ीन रखते हैं और भारत तो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. दुर्भाग्यवश हम दोनों को ही चीन से ख़तरा है. हाल ही में चीन ने हमारे इर्द-गिर्द जिस तरह की सैन्य कार्रवाई की है उससे साफ़ हो गया है कि हमें समर्थन चाहिए होगा. मुझे उम्मीद है कि हमारे भारतीय दोस्त हमारे समर्थन में आएँगे".

तनाव क्यों-Why stress?

ताइवान और चीन के बीच जारी तनातनी कम होने का नाम नहीं ले रही है. दरअसल, अमेरिकी संसद के निचले सदन, हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी (Speaker of the House of Representatives Nancy Pelosi) दो अगस्त को ताइवान पहुँची थीं. चीन के एतराज़ और धमकियों के बावजूद उन्होंने अपनी यात्रा पूरी की और ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन (President Sai Ing-wen ) से भी मुलाक़ात की. बेहद नाराज़ चीन ने इसे 'वन चाइना पॉलिसी' ('One China Policy') का उल्लंघन बताते हुए सैन्य ड्रिल शुरू कर दिए और उसके फाइटर जेट विमानों ने "ताइवान की एयरस्पेस के ऊपर उड़ानें भरीं और उसके मिसाइल ताइवान को पार करते हुए जापान के समुद्री क्षेत्र में जा गिरे".

ज़ाहिर है, ताइवान ने भी अपनी सैन्य शक्ति दिखाने में देर नहीं की. यकीनन, यूक्रेन में जारी संकट के बाद दुनियाभर की नज़रें ताइवान पर टिकी हुई हैं. चीन ताइवान को खुद से अलग हुआ एक ऐसा प्रांत मानता है जिसका देश की मुख्यभूमि में विलय होना तय है. लेकिन दूसरी तरफ़ ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश के रूप में पेश करता है जिसके यहां लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है. हालांकि ताइवान ने अब तक खुद को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित नहीं किया है.

भारत के लिए मौका-Opportunity for India?

भारत ने इस पूरे घटनाक्रम पर बहुत संजीदगी से नज़र बनाए रखी है. चीन की एकाएक बढ़ी सैन्य हलचल पर भारतीय विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, "कई अन्य देशों की तरह भारत भी हाल के घटनाक्रम से चिंतित है. हम संयम बरतने और स्टेटस-को बदलने के लिए एकतरफ़ा एक्शन से बचने, तनाव कम करने और क्षेत्र में शांति प्रयासों का अनुरोध करते हैं".

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लेकिन असल सवाल ये है कि क्या भारत के लिए ये एक सुनहरा मौक़ा हो सकता है दुनिया की एक एक बड़ी ट्रेड पावर से जुड़ने का? अपनी "वन चाइना पॉलिसी" के चलते भारत ने ताइवान के साथ डिप्लोमैटिक ताल्लुकात बहुत दबे स्वर वाले और अनऔपचारिक रखे हैं. लेकिन पिछले कुछ हफ़्तों के घटनाक्रम को देखकर साफ़ है कि ताइवान को भी एशिया में एक नए, सशक्त सहयोगी की तलाश है. ख़ासतौर पर इसलिए कि चीन के साथ उसके संबंध पिछले कई दशकों में सबसे ज़्यादा नीचे गिर चुके हैं.

राजधानी ताइपे में इंडिया कल्चरल सेंटर के संस्थापक जेफ़री वू के मुताबिक़, "1970 के बाद से ताइवान की अर्थव्यवस्था उछाल पर थी. टेकनॉलॉजी के क्षेत्र में ताइवान चिपसेट से लेकर सब कुछ बना रहा था और तब भारत सरकार ने भी यहां अपना ठिकाना बनाया. आधिकारिक दूतावास तो नहीं बनाया लेकिन काम वही होता है आज भी. अब यहाँ भारतीय छात्र आते हैं, आदान-प्रदान बढ़ रहा है. हम एक दूसरे को ज़्यादा समझ रहे हैं."


 

क्या कहते हैं आंकड़े-What do the figures say?

मगर आँकड़ों की बात हो तो लगता है दूरियाँ बहुत हैं. अगर ताइवान और भारत के बीच सात अरब डॉलर का सालाना व्यापार है तो चीन और ताइवान के बीच सवा सौ अरब से ऊपर का.ताइवान की सवा दो करोड़ की आबादी में भारतीय मूल के कुल 5,000 लोग रहते हैं जिनमें आधे स्टूडेंट्स हैं. ज़ाहिर है, करने को बहुत कुछ है. इंदौर में जन्मीं प्रिया लालवानी 38 साल पहले ताइवान आईं थीं और यहीं पर बस चुकी हैं.

उन्होंने बताया, "ताइवान की ताक़त है हार्डवेयर और भारत की सॉफ़्टवेयर. हमें लगा था इन चीजों में बहुत सहयोग बढ़ेगा, लेकिन उतना नही हुआ. ताइवान की कम्पनियों ने भारत में निवेश करने की कोशिश की है लेकिन कई हताश होकर वापस आ जाते हैं. सासंकृतिक भिन्नता, भाषा या लाल फ़ीताशाही- इन चीजों से दिक़्क़तें होती हैं, क्योंकि उनको आदत है चीन जाने की, उसके बाद कंपनियों ने वियतनाम में बिज़नेस शुरू कर दिया. भारत उन्हें लुभाता तो है, लेकिन उनको डर लगता है".

एक दूसरी हक़ीक़त ये भी है कि ताइवान में दक्षिण एशियाई मूल के लोग कम ही दिखते हैं, ख़ासतौर से भारतीय. भाषा और खान-पान की चुनौतियों के अलावा भारतीय कारोबारियों ने भी पिछले डेढ़ दशक से चीन का ही रुख़ कर रखा था. अब ताइवान एक विकल्प के तौर पर अपनी छाप छोड़ना चाहता है.


 

क्या है लोगों का मानना-What do people believe?

बात ज़मीनी स्तर की हो तो ताइवान में भारत के चाहने वालों की तादाद थोड़ी बढ़ी भी है. शहर के बीचोबीच बसे कमर्शियल इलाक़े, शिमेन, में हमरी मुलाक़ात युवा लोगों से हुई. हैरानी की बात ये थी कि लगभग सभी को पता था कि भारत और चीन के बीच सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं. बायोटेक्नोलोजी में स्नातक की पढ़ाई करने वाले याओ ली पिंग ने कहा, "पहले की तुलना में इन दिनों ताइवान में ज़्यादा भारतीय दिखने लगे हैं. अब हमें भारतीय रेस्टोरेंट भी दिख रहे हैं और मज़े की बात है कि उनमे ताइवान के लोग खाते मिल जाते हैं. दोनो देशों की अपनी ख़ासियत हैं जिनके आधार पर संबंध और बेहतर होने चाहिए."

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वैसे याओ ली पिंग (yao li ping) के दोस्त रायन को लगता है कि, "क्योंकि इस समय ताइवान और चीन के बीच मुश्किलें बढ़ी हुई हैं तो पहली प्राथमिकता उन्हें सुलझाने की होनी चाहिए. जहां तक भारत का सवाल है तो ताइवान के लोग उनसे बेहतर सम्बन्धों की उम्मीद रखते हैं. लेकिन, आगे चल कर."

ताइपे में क़रीब 2,500 भारतीय छात्र-छात्राएँ भी हैं जो उच्च-शिक्षा के मक़सद से यहाँ पहुंचे हैं. पंजाब की रहने वाली ऋतिका पीएचडी करने आई हैं और उनके मुताबिक़, "हम सभी को पता है ताइवान कि प्रमुख शक्ति सेमी-कंडक्टर्स (Shakti Semi-conductors) है. तो सबका ही इसमें फ़ायदा है, इंडिया ज़रूर सपोर्ट करेगा ताइवान को".

ताइवान को बहुत से लोग टेक्नॉलॉजी के नाम से भी बुलाते हैं. थर्मल इमेजिंग हो, चिप मैनफक्चरिंग हो, डिवायसेज़ के साथ नई तकनीक का ईजाद हो, ताइवान का कोई जवाब नहीं है. यही वो जगह है जहां पर भारत के लिए एक बहुत बड़ा मौक़ा हो सकता है और चीन के सस्ते इलेक्ट्रोनिक्स पर भारत निर्भरता का विकल्प ताइवान बन सकता है.

सना हाशमी ताइपे (Sana Hashmi Taipei) के ताइवान-एशिया एक्सचेंज फ़ाउंडेशन (Taiwan-Asia Exchange Foundation) में रिसर्च फ़ेलो, सना हाशमी ने कहा, "मुझे लगता है एक तरीक़े से वरदान है इंडिया के लिए. और एक वेकअप कॉल है ताइवान के उन कारोबारों के लिए जो चीन में हैं कि उन्हें चीन से बाहर निकल कर दूसरे देशों की तरफ़ देखना चाहिए. भारत इतनी बड़ी मार्केट है ताइवान के लिए. आगे चल कर भारत में ताइवान का बिज़नेस और इन्वेस्टमेंट ज़्यादा दिखेगा".

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