सिंधु घाटी में हो रही मूसलाधार बारिश, पाकिस्तान में आई बाढ़ से हे सकता है इसे ख़तरा
 

किसी-किसी इलाके में बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही है। कई इलाकों में तो बाढ़ की परिस्थिति भी पैदा हो चुकी है। हाल ही में पाकिस्तान में भी बाढ़ आई हुई है।  पाकिस्तान में आई बाढ़ के कारण मोहनजोदड़ो के खंडरों को भी भारी नुक्सान पहुँच सकता है। 
 

Haryana Update.  एक तरफ जहां पूरा पाकिस्तान एक विनाशकारी मॉनसून से जूझ रहा है, वहीं प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता (जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है) के दो मुख्य केंद्रों में से एक - मोहनजोदड़ो - के खंडरों में कई सारे मजदूर इसमें ही रहे बारिश के पानी के रिसाव को रोकने और इस आर्कियोलॉजिकल साइट से नालों की खुदाई करने में व्यस्त हैं।

 


इस देश के सिंध प्रांत में हो रही मूसलाधार बारिश के बीच खुली जगह में स्थित इन विरासत स्थलों की रक्षा करना विशेष रूप से कठिन काम होता जा रहा है। इस हफ्ते की शुरुआत में, पाकिस्तानी मीडिया में आई खबरों में मजदूरों को मोहनजोदड़ो के खनन स्थलों से पानी निकालते हुए और टीले को बचा कर रखने वाली दीवार (रिटेनिंग वॉल) को मजबूत करने के लिए लगातार हाथ-पांव मारते हुए दिखाया गया था। 28 अगस्त को, इस आर्कियोलॉजिकल साइट की सबसे प्रतिष्ठित विशेषताओं में से एक, ‘मृतकों का टीला’, को तिरपाल से ढका हुआ देखा गया था।

 

मोहनजोदड़ो की साइट पर की गई खुदाई को पहली बार 1922 में – हड़प्पा की साइट की खोज के एक साल बाद- मान्यता दी गई थी। खुदाई करने पर, यह पता चला कि इसे टीले में 2500-1700 ईसा पूर्व के बीच सिंधु नदी के तट पर बसने वाली एक महान सभ्यता के अवशेष दबे पड़े थे।

यह वही नदी है जिसने पिछले महीने से अपने तटों को सीमा को तोड़ते हुए पूरे पाकिस्तान में अभूतपूर्व तबाही मचा रखी है। सरकार और कल्याणकारी संगठनों ने उन हजारों लोगों की राहत और पुनर्वास के साथ सहायता करने का प्रयास किया है, जो इस विनाशकारी मानसूनी बारिश के कारण बेघर हो गए हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल – जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सबसे बेशकीमती खुदाई स्थलों में से एक थे – भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान के इलाके में चले गए थे। तमाम ख़बरों पता चलता है कि पूरे सिंध प्रांत में, विभिन्न किले, मकबरे और विरासत स्थल, जो इस क्षेत्र के गौरवशाली अतीत का प्रतीक हैं, अब बाढ़ के पानी के कारण ढहने के खतरे में हैं।

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खबरों के अनुसार, मोहनजोदड़ो में बारिश के पानी ने 'खुदाई वाले क्षेत्रों को क्षतिग्रस्त कर दिया है और उनमें गहरे खांचे बनाकर नीचे दबे हुए क्षेत्रों को उजागर कर दिया है'। इसके अलावा, एक खबर में कहा गया है कि 'जमा हुआ पानी खुदाई वाले इलाकों में रिस गया है, जिससे वहां की मिट्टी ढीली हो गई है और इसके परिणामस्वरूप दीवारें झुक गई हैं।'

एक ओर जहां इस साल की विनाशकारी वर्षा ने इस प्राचीन स्थल को तबाह करने का खतरा पैदा कर दिया है, वहीं 2018 के एक अध्ययन, जिसका शीर्षक ‘नियोग्लेशियल क्लाइमेट अनोमालिएस एंड दि हरप्पन मेटामॉरफोसिस’ था, ने यह सुझाव दिया था कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही सिंधु घाटी सभ्यता का भी पतन हुआ हो सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि सबसे पहले, नम सर्दियों वाले मानसून ने शहरी हड़प्पा समाज को एक ग्रामीण समाज में तब्दील कर दिया होगा, क्योंकि वहां के निवासियों ने गर्मियों में बाढ़ के पानी की कमी वाली नदी घाटी से हिमालय के मैदानों की तरफ रुख कर लिया होगा। बाद में, शीतकालीन मानसून में आई गिरावट ने ग्रामीण हड़प्पावासियों के पतन में एक भूमिका निभाई हो सकती थी।

मोहनजोदड़ो की प्रभावशाली संरचनाएं

मोहनजोदड़ो के प्रभावशाली स्थल को साल 1980 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था। मोहनजोदड़ो शहर सिंधु नदी से लगभग 3 किमी दूर स्थित है, जहां ऐसा लगता है कि कृत्रिम बाधाओं का उपयोग करके इसे संरक्षित किया गया है। पुरातत्वविदों को सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों ने उनकी परिष्कृत संरचनाओं के साथ चकित कर रखा है जो एक समझदारी भरे शहरी नियोजन को दर्शाते हैं।

इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, मोहनजोदड़ो में, इन कृत्रिम बाधाओं को एक अद्भुत निरंतरता के साथ एक दर्जन ब्लॉक (या द्वीप') – जिनमें से प्रत्येक उत्तर से दक्षिण तक लगभग 1,260 फीट (384 मीटर) और पूर्व से पश्चिम तक 750 फीट (228 मीटर) लम्बा-चौड़ा है – के रूप में बिछा कर रखा गया था और इन्हें सीधी या लहरियादार मोड़ वाली गलियों द्वारा उप-विभाजित किया गया था।

एक ओर जहां उच्च शिखर पर बनी इमारतों में एक बरामदे, एक बड़ी आवासीय संरचना और एक विशाल अन्न भंडार से घिरा एक विस्तृत स्नानगृह या टैंक शामिल है, वहीँ यह किला इस स्थल के औपचारिक मुख्यालय के रूप में कार्य करता था।


बाकी आर्कियोलॉजिकल साइट्स को भी नुकसान

इस बीच, पाकिस्तान से आने वाली ख़बरों में लरकाना में शाह बहारो और ताजजर इमारतों तथा मोरो में मियां नूर मोहम्मद कल्होरो की कब्रिस्तान जैसे अन्य विरासत स्थलों को बुरी तरह प्रभावित करने वाली भारी बारिश का भी उल्लेख किया गया है।

कुछ अन्य कब्रें और मकबरे तो पूरी तरह से गायब ही हो गए हैं। इस प्रलयंकारी बाढ़ ने दो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिकल साइट – थट्टा और बनभोर में स्थित मक्ली स्मारकों, और थुल मीर रुकान में स्थित बौद्ध स्तूप को भी प्रभावित किया है।

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सिंध प्रान्त की विरासत के संरक्षण के लिए बने एंडोमेंट फंड ट्रस्ट के सचिव हामिद अखुंद ने पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' से बात करते हुए कहा कि 'बड़े पैमाने नुकसान हुआ है।'

उन्होंने कहा, 'हमने जो कुछ भी पुनःस्थापित किया था वह सब क्षतिग्रस्त हो गया है। सिंध में एक भी ऐसी ऐतिहासिक जगह नहीं बची है जहां की विरासत बरकरार है; चाहे वह कोट दीजी, रानीकोट, शाही महल, व्हाइट पैलेस, फैज महल या फिर ऐतिहासिक इमाम बारगाह, बंगले या सार्वजनिक औषधालय हों।'