अल्ट्रासाउंड जैल को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट, खतरनाक बैक्टीरिया फैला रहे गंभीर संक्रमण

पथरी होने पर या गर्भवती महिलाओं के गर्भस्थ की जानकारी करने समेत अन्य इंसान पेट से संबंधित गंभीर बीमारियों का उपचार कराने से पहले अक्सर डाक्टर अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह देते हैं।
 

Haryana Update. Danger Bacteria in Ultrasound Gel News: बीमारी का इलाज कराने से पहले अल्ट्रासाउंड की वजह से शरीर लगने वाला जैल गंभीर बीमारियां फैला रहा है।

 

जैल में बल्खोलडेरिया सिपेसिया कांप्लेक्स बैक्टीरिया का संक्रमण होता है, जो किसी भी व्यक्ति को संक्रमित करने के बाद लंबे समय तक रहता है। जबकि, बीमार और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर शरीर में गंभीर संक्रमण फैला देता है।

 


भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) के जानपदिक विभाग के वैज्ञानिकों में शाेध में यह निष्कर्ष निकाला गया है। अक्सर अस्पताल जाने पर या फिर आपरेशन कराने पर लोगों के टाकों में या फिर अन्य स्थानों पर संक्रमण फैल जाता है।

 

 

ऐसा इस ग्रुप के खतरनाक बैक्टीरिया एवं आपरेशन प्रक्रिया के दौरान होने वाली लापरवाही से हो जाता है। यह बैक्टीरिया सेवलान एवं डिटाल के पानी, 70 प्रतिशत एल्कोहल वाले सेनेटाइजर आदि में भी नहीं मरता है, जबकि अन्य बैक्टीरिया मर जाते हैं।

 

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आइवीआरआइ के जानपदिक विभाग के विभागाध्यक्ष प्रधान वैज्ञानिक डा. भोजराज सिंह के निर्देशन में तमिलनाडु के शोधार्थी रविचंद्रन कार्तिकेयन ने देश में 17 राज्यों से 15 कंपनियों के अल्ट्रासाउंड जैल के 63 सैंपल लिये। मई 2021 में सैंपल लेने का कार्य शुरू किया गया, जो वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया गया।

इसके बाद सैंपलों की गहनता के साथ जांच की गई। जांच में 32 सैंपलों में है खतरनाक जीवाणु बल्खोलडेरिया सिपेसिया कांप्लेक्स मिला। इसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा अल्ट्रासाउंड जैल ऐसा संक्रमण फैला रहे हैं, जिनका इलाज बेहद मुश्किल है।

बल्खोलडेरिया सिपेसिया ग्रुप के बैक्टीरिया से संक्रमण होने पर अगर सही समय पर इलाज ना कराया जाए तो 40 प्रतिशत मामलों में मृत्यु भी हो सकती है।


इन गंभीर बीमारियों से हो जाते हैं ग्रसित
बल्खोलडेरिया सिपेसिया कांप्लेक्स बैक्टीरिया पहले से बीमार लोगों या फिर रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर ही अपना शिकार बनाता है।

इस बैक्टीरिया का संक्रमण होने पर फेफड़ों में पानी भरना, घाव में संक्रमण होना, सेप्टीसीमिया (पूरे शरीर एवं रक्त में संक्रमण फैलना) हो जाते हैं। इससे किडनी, लिवर आदि फेल हो जाने मृत्यु तक हो जाती है।


इन खामियों की वजह से नहीं हो पाती निगरानी
अल्ट्रासाउंड जैल की जांच कराने के लिए कोई कानून नहीं है

बाजार में अल्ट्रासाउंड जैल आने से पहले उसकी जांच कराने को लेकर आदेश नहीं है

बाजार में आने के बाद अल्ट्रासाउंड जैल की कोई निगरानी नहीं होती है

बाजार में जैल आने के बाद उसकी वापसी हो पाना मुश्किल होता है

इन राज्यों से लिए थे नमूने
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आसाम, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, गोवा, कर्नाटक, उड़ीसा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और दिल्ली राज्यों के विभिन्न जिलों से 63 सैंपल लिये थे।

63 नमूने बंद और खुले डिब्बों से अल्ट्रासाउंड जैल के लिए थे

52 बंद डिब्बों से अल्ट्रासाउंड जैल के नमूने लिये थे

11 खुले डिब्बों से अल्ट्रासाउंड जैल से नमूने लिए थे

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पशुओं को होने वाले क्लीनिकल नुकसान पर करना चाहते थे शोध
तमिलनाडु के पीएचडी शोधार्थी रविचंद्रन कार्तिकेयन क्लीनिक से पशुओं को होने वाले संक्रमण के बारे में जानकारी करके उनको रोकने और पशुओं को सुरक्षित करने के लिए शोध करना चाहते थे। शोध के दौरान जब अल्ट्रासाउंड जैल का परीक्षण किया तो इसमें खतरनाक बैक्टीरिया मिला।


पशुओं और इंसानों का अल्ट्रासाउंड कराने में एक ही जैल का प्रयोग होता है। इस वजह से उन्होंने अल्ट्रासाउंड जैल से इंसानों को होने वाले नुकसान पर केंद्रित रहते हुए शोध किया।