10 battles: वो लड़ाईया जिसमें  मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए थे मुगल.. 

History taught us something: अगर इतिहास ने हमें कुछ सिखाया है, तो वह यह है कि हर लड़ाई जीती नहीं जा सकती. दुनिया में ऐसा कोई साम्राज्य नहीं है जो यह दावा कर सके कि उसने जितने भी युद्ध लड़े हैं, उसमें कभी शिकस्त का सामना नहीं किया.
 

Haryana Update: History taught us something और ये बात मुगल साम्राज्य पर भी लागू होती है. इतिहास बताता है कि मुगलों के पास ताकतवर शासक थे और उनकी शक्तिशाली सेना अच्छी तरह से प्रशिक्षित भी थी, लेकिन उसी इतिहास में यह भी दर्ज है कि कुछ लड़ाइयों में मुगलों को भी मैदान छोड़कर भागना पड़ा. कई लड़ाइयों में छत्रपति शिवाजी, शेरशाह, तान्हाजी और बाजी राव पेशवा जैसे शूरवीरों के आगे मुगल टिक नहीं पाए और उन्हें मुंह की खानी पड़ी.

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आम तौर पर हम उनकी हारी हुई लड़ाइयों को कम और उनकी जीती हुई लड़ाइयों को ज्यादा याद करते हैं. लेकिन आज हम आपको बताएंगे, उन 10 संग्रामों के बारे में, जिनमें मुगलों की हार हुई थी.


 

 

चौसा का युद्ध battle of chausa
चौसा की लड़ाई में मुगल सेना सिर्फ हारी ही नहीं, बल्कि सम्राट हुमायूं को अपने सूबों को छोड़कर भागना पड़ा. यह लड़ाई हुमायूं और अफगान सेनापति शेरशाह सूरी के बीच, चौसा में 26 जून, 1539 को लड़ी गई, जिससे आगे जाकर सुर साम्राज्य की स्थापना हुई; यह मुगलों के लिए एक करारी हार थी. शेरशाह का साथ भोजपुर के उज्जैनिया राजपूतों ने दिया. मुगल सेना की हार के बाद, हुमायूं अपनी जान बचाने के लिए युद्ध के मैदान से भाग गया, और विजयी शेरशाह ने खुद को फरीद अल-दीन शेर शाह के ख़िताब से नवाज़ा.

 


 

 

 

कन्नौज की लड़ाई Battle of Kannauj
हुमायूं ने अपने दो भाइयों अस्करी मिर्जा और हिंडल मिर्जा के साथ 17 मई, 1540 को एक बार फिर कन्नौज की लड़ाई में शेरशाह का सामना किया. हुमायूं की नीतिगत त्रुटियों और उसके शस्त्रागर की शक्ति की विफलता ने उसे फिर एक बार पराजय के सामने खड़ा कर दिया. कन्नौज की लड़ाई में शेरशाह ने दूसरी बार मुगल सेना को हराया. हुमायूं को लगभग भगोड़े कि तरह अपने भाइयों के साथ अपनी जान बचाने के लिए युद्ध के मैदान को छोड़कर भागना पड़ा.


 

मुगल-सफविद युद्ध Mughal-Safavid War
1622-1623 का मुगल-सफविद युद्ध, सफविद साम्राज्य और मुगल साम्राज्य के बीच अफगानिस्तान के महत्वपूर्ण फोर्ट शहर कंधार के लिए लड़ा गया था. ईरान के शासक शाह अब्बास 1595 में इसे खोने के बाद से ही इसपर दोबारा कब्ज़ा करना चाहते थे. 1621 में उन्होंने अपनी सेना को निशापुर में इकट्ठा होने का आदेश दिया. बाद में वो भी अपनी सेना में शामिल हो गए और कंधार की ओर कूच किया, जहां 20 मई को पहुंचते ही उन्होंने तुरंत क़िले कि घेराबंदी शुरू कर दी.

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जहांगीर ने हमले की जानकारी होने के बावजूद हरकत में आने में देर कर दी, और 3,000 सैनिकों की छोटी सी टुकड़ी नई खेप के आभाव में लंबे समय तक टिक नहीं पाई. मुगलों द्वारा जुटाया गया राहत बल निरर्थक साबित हुआ, और 45 दिनों की घेराबंदी के बाद शहर पराजित हो गया.


उंबरखिंड का युद्ध war of umbarkhind
उंबरखिंड की लड़ाई 3 फरवरी, 1661 को लड़ी गयी थी. यह छत्रपति शिवाजी महाराज के अधीन मराठा सेना और मुगल साम्राज्य के जनरल करतलब खान के बीच लड़ा गया था. इस युद्ध में मराठों ने मुगल सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया था.


सूरत का युद्ध battle of surat
5 जनवरी, 1664 को सूरत की लड़ाई हुई, जिसे सैक ऑफ़ सूरत के नाम से भी जाना जाता है. यह एक भूमिगत युद्ध था, जो गुजरात के सूरत शहर के पास मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल कप्तान इनायत खान के बीच लड़ा गया था. मराठों ने मुगल सेना को ज़बरदस्त शिकस्त दी और छह दिनों तक सूरत को लूटा.


सिंहगढ़ की लड़ाई Battle of Sinhagad
सिंहगढ़ की लड़ाई, जिसे बैटल ऑफ कोंढाना के रूप में भी जाना जाता है, सिंहगढ़ किले में 4 फरवरी, 1670 की रात को हुई थी. यह उन प्रथम किलों में से एक था, जिसे शिवाजी ने मुगलों से वापस छीना था. इसे रात के अंधेरे में, दीवारों पर रस्सी की सीढ़ी से चढ़ कर अंजाम दिया गया था. इस युद्ध में मराठा सेनापति उदयभान राठौर और तान्हाजी शहीद हो गए, लेकिन मराठों ने किले पर कब्जा कर लिया. यह लड़ाई और तान्हाजी के कारनामे मराठी गाथाओं में आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं.


 

साल्हेर का युद्ध war of salher
फरवरी 1672 में मराठों और मुगल साम्राज्य के बीच लड़ी गई साल्हेर की लड़ाई, जो मराठों के लिए एक निर्णायक जीत साबित हुई. इसे विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह पहला युद्ध था जिसमें मराठों ने मुगलों को धूल चटाई थी.


 

विक्रमगढ़ की लड़ाई Battle of Vikramgarh
विक्रमगढ़ की लड़ाई 1672 में महाराष्ट्र के पालघर जिले में, विक्रमगढ़ के पास, मराठा साम्राज्य और मुगल साम्राज्य के बीच लड़ी गई थी. मराठों का नेतृत्व राजकुमार सांभाजी ने किया, और मुगलों का नेतृत्व खिज्र खान ने किया. मराठों ने मुगल सेना को बुरी तरह से हरा दिया, और कोलवान पर अपनी पकड़ को और मजबूत कर लिया.


 

जैतपुर का युद्ध Battle of Jaitpur
जैतपुर की लड़ाई मार्च 1729 में बुंदेलखंड के मराठा शासक छत्रसाल बुंदेला की ओर से पेशवा बाजी राव प्रथम, और मुगल साम्राज्य की ओर से मुहम्मद खान बंगश के बीच लड़ी गई थी. बंगश ने दिसंबर 1728 में बुंदेलखंड पर हमला किया. छत्रसाल ने अपनी बढ़ती हुई उम्र और नगण्य सैन्य शक्ति को देखते हुए बाजी राव से सहायता की अपील की, जिनके नेतृत्व में मराठा-बुंदेला गठबंधन ने जैतपुर में बंगश को हराया.

 
 

करनाल की लड़ाई battle of karnal
24 फरवरी, 1739 को छिड़ी करनाल की लड़ाई, जो भारत पर चढ़ाई के दौरान ईरान के अफशरीद वंश के संस्थापक नादर शाह के लिए निर्णायक जीत साबित हुई. उनकी सेना ने मुगल सम्राट मुहम्मद शाह की सेना को तीन घंटे के अंदर ही हरा दिया. इस जंग को नादर शाह के सैन्य कार्यकाल में नीतिगत उपलब्धियों का सबसे महत्वपूर्ण रत्न माना जाता है. यह लड़ाई हरियाणा के करनाल के पास हुई.