ऑपरेशन ब्लूस्टार: जब स्वर्ण मंदिर में घुसे सेना के टैंक और ब्लैक कैट कमांडो
Haryana Update: Operation Blue star: ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद पंजाब में शांति के लिए लोगों को 10 सालों से ज्यादा वक्त तक इंतजार करना पड़ा था। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, ऑपरेशन ब्लूस्टार में भारतीय सेना में मौतों की संख्या 83 और आम नागरिक की मौतों की संख्या 492 बताई गई थी।
साल 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लूस्टार की यह 38वीं बरसीं है।
जून, 1984 का पहला हफ्ता भारत के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण पल था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश के तहत भारतीय सेना ने सिख (Extremist Jarnail Singh Bhindranwale) चरमपंथी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके सशस्त्र अनुयायियों को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए परिसर में धावा बोल दिया था। 1984 का ऑपरेशन ब्लूस्टार भारतीय सेना द्वारा किया गया अब तक का सबसे बड़ा आंतरिक सुरक्षा मिशन था। साल 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लूस्टार की आज 38वीं बरसीं है।
भले ही खालिस्तान आंदोलन 1940 और 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, लेकिन 1970 और 1980 के दशक के बीच इसने लोकप्रियता हासिल की। भारत में खालिस्तान आंदोलन के उदय के बाद ऑपरेशन ब्लूस्टार ने जन्म लिया। खालिस्तान आंदोलन का उद्देश्य सिखों के लिए एक स्वतंत्र राज्य बनाना था। भारत की तत्कालीन (Prime Minister Indira Gandhi) प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने (Harmandir Sahib Complex (Golden Temple)) हरमंदिर साहिब परिसर (स्वर्ण मंदिर) में जमे सिख आतंकवादियों को हटाने के लिए सैन्य अभियान का आदेश दिया था। यह ऑपरेशन 1 जून से 8 जून 1984 के बीच अमृतसर में चलाया गया था।
भिंडरावाले दमदमी टकसाल का नेता था और ऑपरेशन ब्लूस्टार के पीछे मुख्य कारणों में से एक थे। एक नेता के रूप में, भिंडरावाले का सिख युवाओं पर प्रभाव था। ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान भिंडरावाले और खालिस्तान समर्थकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर स्थित अकाल तख्त परिसर को अपने कब्जे में ले लिया था। उस वक्त भिंडरावाले को खालिस्तान की मांग के एक बड़े समर्थक के रूप में देखा जाता था। देश की सरकार द्वारा इस ऑपरेशन को चलाए जाने का उद्देश्य स्वर्ण मंदिर से जरनैल सिंह भिंडरावाले को हटाकर हरमंदिर साहिब परिसर को मुक्त कराना था।
ऑपरेशन ब्लूस्टार के तहत 1 जून से 8 जून 1984 के बीच कार्रवाई शुरू की गई थी। इसमें 5 जून की शाम दोनों पक्षों के बीच मुख्य लड़ाई शुरू हुई, पहले आदेश थे कि स्वर्ण मंदिर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए , लेकिन इस संघर्ष में आतंकियों के पास आधुनिक हथियार थे। फिर सैन्य कार्रवाई में सेना ने भी टैंको का इस्तेमाल किया और आतंकियों पर गोले बरसाए। इस कार्रवाई में भिंडरावाले की मौत के साथ ऑपरेशन समाप्ति की ओर पहुंच चुका था, हालांकि पंजाब में शांति के लिए लोगों को 10 सालों से ज्यादा वक्त तक इंतजार करना पड़ा था। इस ऑपरेशन से पहले भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने ऑपरेशन सनडाउन को भी प्लान किया था, इसमें भिंडरावाले के अपहरण की योजना बनाई गई थी। जिसे बाद में कई कारणों के चलते टाल दिया गया था।
मीडिया में भी नाराजगी:
साल 1984 में सरकार को जनता के साथ मीडिया की नाराजगी का भी काफी सामना करना पड़ा था। दरअसल, इस ऑपरेशन के दौरान मीडिया को पूरी तरह से पंजाब में प्रवेश करने से रोक दिया था। जो पहले पंजाब पहुंचे भी थे, उन मीडिया कर्मियों को एक बस में बिठाकर हरियाणा सीमा पर उतार दिया गया। चूंकि पंजाब में कर्फ्यू की स्थिति थी, इसलिए उनके यात्रा करने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं था। इसके पीछे एक और कारण माना गया कि सरकार के ऑपेरशन की जानकारी उन कट्टरपंथियों तक न पहुंचे, जो स्वर्ण मंदिर में कब्जा जमाए हुए थे।
ऑपरेशन ब्लूस्टार:
स्वर्ण मंदिर में सेना नहीं भेजना चाहती थीं इंदिरा गांधी, रॉ ने तैयार कर लिया था खास प्लान; यूपी में ट्रेनिंग भी हो गई थी।
ऐसा था ऑपरेशन ब्लू स्टार का परिणाम:
सिख समुदाय के सबसे पूजनीय स्थानों में से एक स्वर्ण मंदिर पर सैन्य कार्रवाई ने दुनिया भर के सिख समुदाय के लोगों में तनाव पैदा कर दिया था। बाद में, इसी ऑपरेशन ब्लूस्टार को शुरू करने का आदेश देने वाली देश की ताकतवर महिला प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 को उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। फिर इस हत्या ने सिख दंगों को हवा दी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे।