Property News: प्रॉपर्टी को लेकर Supreme Court का बड़ा फैसला, अगर प्रॉपर्टी पर है बैंक लोन तो खरीदने से पहले जान लें ये नियम

Housing Finance Company/Bank से लोन का विवाद, जानिए क्या है मामला, बैंक द्वारा का गई निलामी
 

Haryana Update News:  आप को बता दें की Property को लेकर सरकार ने एक नया फरमान जारी किया है अगर आप भी प्रोपर्टी खरीदने इच्छुक है तो इस खबर को ध्यान से पढ़े। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अगर किसी भी प्रोपर्टी पर हाउसिंग फाइनेंस कंपनी के लोन का विवाद चल रहा है तो आपका उससे दूरी बनाये रखने मे ही फायदा है। ऐसी प्रोपर्टी को खरीदना आपके लिए नुकसान दायक हो सकता है। जाने सुप्रीम कोर्ट का फैंसला।

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Housing Finance Company/Bank से लोन का विवाद 

आप को बता दें की जिस Property पर विवाद होता है। आम आदमी के लिए उससे दूर रहना ही अच्छा हैं। लेकिन कुछ लोग इसी तरह की प्रोपर्टी खरीदते हैं। तांकि कि सस्ते मे Property Deal हो जाए। यदि आप भी यही सोच है तो ध्यान रखे। अगर किसी भी प्रोपर्टी पर किसी Housing Finance Company/Bank से लोन का विवाद चल रहा हो तो आप उससे दूर ही रहें। नहीं तो आपको भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।  इसमे बिल्डर को कोई नुकसान नहीं होगा।  सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलें मे कहा है कि, कर्ज में डूबी संपत्ति खरीदने वाले Agreement To Sale को कोई राहत नहीं दी जाएगी।क्योंकि, वह बैंक का मूल कर्जदार नहीं है। चाहे वह संपत्ति का पूरा मूल्य चुकाने को तैयार ही क्यों न हो।

जानिए क्या है मामला-

 हाल ही मे एक संघीन मामला जो की एक बिल्डर से जुड़ा है, सामने आया है। उसने स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद से लोन लिया था। यह लोन उसने एक मल्टी स्टोरी हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए लिया था। जिसे वह समय रहते लौटाने में असफल रहा। इसके बाद बैंक ने SARFAESI Act की धारा 13 के तहत लोन की रिकवरी कार्रवाई शुरूकर दी। साथ ही धारा 13(4) के तहत उसकी Property को बैंक द्वारा जब्त कर लिया गया। बिल्डर ने इस कार्रवाई की DRT में चुनौती दी। DRT ने बिल्डर को कुछ समय की अवधि प्रदान की। कि वह Property  खरीदने वालो की लिस्ट लेकर आए। जिससे की कर्ज की रकम अदा की जा सके। बिल्डर ने बैंक साथ एग्रीमेंट किया, कि वह कोई भी  Property अगर किसी को बेचता है तो वह खरीदार के साथ जो एग्रीमेंट करेगा। वह बैंक की अनुमति से ही करेगा। लेकिन बिल्डर ने बैंक से बिना अनुमति के खरीदार से Agreement to Sell कर दिया।

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बैंक द्वारा का गई निलामी

इस बीच बैंक द्वारा नीलामी का फरमान जारी कर दिया गया। इस फरमान को खारिज करवाने के  बिल्डर DRT मे पहुंचा। लेकिन DRT ने बिल्डर की अर्जी खारिज कर दिया  इस बीच  Property को बैंक ने नीलाम कर दिया। नीलाम की गई Property के लिए खरीदारो ने 25 फीसदी राशि जमा कर दी। इस पर एटीएस होल्डर  द्वारा आंध्र हाईकोर्ट को एक फरमान जारी किया गया। जिसमे चुनौती  दी गई  की इस Property को पहले ही निलाम किया जा चुका है। हाईकोर्ट ने नीलामी को रोक दिया और कहा कि,  एटीएस होल्डर द्वारा  पूरी रकम जमा करवाने पर Property उसे दे दी जाएगी। होल्डर ने पूरी रकम अदी कर  दी। इस मामले पर नीलामी में Property के खरीदारो ने बैंक के साथ मिल कर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी।

सुप्रीम कोर्ट से आई खबर

सुप्रीम कोर्ट में Justice M.R. Shah and Justice C.T. Ravikumar की टीम ने इस मामले पर फैसला सुनाया था। टीम ने तीसरे खरीदार के पक्ष में दिए गए हाईकोर्ट के आदेश को अमान्य कर दिया। टीम ने कहा कि हाईकोर्ट को नीलामी नही रोकनी चाहिए थी और न ही एग्रीमेंट टू सेल होल्डर को Property देने का आदेश देना चाहिए था, क्योंकि सरफेसी एक्ट, 2002 की धारा 13 (4) के तहत बैंक अपने कर्ज की वसूली कर रहा था। टीम ने कहा कि इस कार्रवाई को सिर्फ बिल्डर ही रोक सकता है,यदि वह धारा 13 (8) के तहत योजना की पूरी राशि का भुगतान करने को तैयार हो, टीम ने कहा कि कोई भी अदालत एटीएस होल्डर को कर्ज का पूरा भुगतान करने पर कब्जा नहीं दे सकती। न ही बैंक के आदेशों के विरुद्ध हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की जा सकती है, क्योंकि इसके लिए सरफेसी एक्ट की धारा 17 में छुट का प्रावधान है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी मे Property खरीदने वाले के हक में फैसला सुनाया।