Bhai Panchami: भाई पंचमी की कथा, कब मनाई जाती है, विधि विधान सहित हिन्दी में
(भाई पंचमी )(Bhai Panchami)
सावन कृष्ण पंचमी के दिन को भाई पंचमी कहते हैं। इस दिन चने, मूंग शाम को चौथ के दिन भिगो दें और पहले दिन ठंडी रोटी करवास बनाएं। एक जेवड़ी में 7 गांठ लगाएं। कांटे वाले पेड़ पर चने पिरोए तथा जेवड़ी भी उस पर चढ़ा दें। जल, कच्चा दूध उस पेड़ पर चढ़ाएं। भीगे चने और मूंग भी उस पर चढ़ा दें। पूजा करने के बाद कहानी सुनो तथा बायना निकालना चाहिए। अपनी सास के पैर छूकर बायना दें।
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(भाई पंचमी की कहानी) (Bhai Panchami Story)
एक साहूकार के सात बेटे, सात बहू थी। सातों बहुए कुएं से पानी लेने गई। सातवीं का कोई पीहर नहीं था। 6 बहुएं कुएं से पानी भरने गई तो आपस में बात करने लगी कि जल्दी जल्दी पानी भर लो। बाद में धोक मारने जाना है। कुएं पर एक औरत बोली कि तेरी जिठानी क्या कर रही है। वह छहों बहुएं बोली- वह चरखा काट रही होगी। उसे क्या पता कि भैया पंचमी क्या है। उसके तो कोई भाई नहीं है। सारी बातें एक सर्प सुनकर उन छहों बहुओं के पीछे पीछे चल पड़ा। घर में आकर आदमी का रूप लिया और सातवीं बहू से कहा- बहन राम राम! वह कहने लगी कि मेरे तो कोई भाई नहीं था। तू भाई कहां से आ गया। भाई बोला बहन तेरी शादी के बाद मेरा जन्म हुआ। इसलिए तुम मुझे नहीं जानती। वह अपनी सास से पूछने गई कि मेरा भाई आया है क्या बनाऊं! सांस कहने लगी कि तेल से चूल्हा लीप ले और तेल में ही चावल चढ़ा दे। ना चूल्हा सूखा, ना ही चावल पके। पड़ोसन से पूछने गई तो पड़ोसी ने बताया कि मिट्टी से चूल्हा लीप ले और पानी में चावल पका ले। फिर चावल-दाल बन के तैयार हो गई। फिर उसने अपने भाई को चावल दाल और घी -बुरा से भाई को जिमाया और भाई बोला कि बहन मैं तुझे घर ले जाने आया हूं। बहन को साथ लेकर जब भाई जंगल में जाकर बहन से बोला कि अब मैं सर्प बनूंगा। तुम डरना नहीं मेरी पूछ पकड़ कर बाबी के अंदर मेरे पीछे पीछे आ जा। बाबी में पहुंचने के बाद भाई बहन कहने लगे कि हमारी बहन आई है तथा भाभी बोली हमारी ननद आई है, भतीजे कहने लगे कि हमारी बुआ आई है, मां हर रोज अपने बच्चों को घंटी बजा कर दूध पिलाती है, वह रोज देखती रहती थी। एक दिन वह अपनी मां से छोटे भाई- बहन को दूध पिलाने की जिद करने लगी। तो मां बोली ले गर्म दूध में घंटी मत बजाना लेकिन उसने गरम-गरम में घंटी बजा दी। जिसके पीने से किसी की जीभ, किसी की पूंछ, किसी का फन जल गया। सब गुस्से से बोले इसने हमें जलाया है हम इसे खाएंगे। इस बात को सुनकर मां बोली इससे गलती हो गई। मैं इसकी तरफ से माफी मांगती हूं और इसको छोड़ दो। उसकी भाभी के लड़का हुआ था, भाभी बोली मांगो, तुम्हें क्या चाहिए। ननद ने नौलखा हार मांगा। भाभी ने ननद को नौलखा हार दे दिया और कहा कि अगर तू पहनेगी तो हार रहेगा, अगर कोई दूसरा पहने का तो सर्प बन जाएगा। राजा का लड़का उसे लेने आया और उसने भगवान से प्रार्थना करी कि हे भगवान! बाबी की जगह महल बना दो। जब उसे रहते हुए ढाई दिन हो गए, तो राजा का लड़का अपनी पत्नी को ले जाने के लिए आया। उन्होंने उसे विदा करते हुए दास-दासी, हाथी, घोड़े, धन- दौलत देकर विदा किया। लेकिन जाते समय राजा का लड़का अपनी धोती भूल गया और रास्ते में याद आया। लड़के ने पत्नी से कहा कि मैं अपनी धोती वापस ले कर आता हूं, पत्नी बोली विदाई में इतना धन दिया है। अपनी पुरानी धोती लेने जाओगे तो भाभियाँ क्या कहेंगी। लड़के ने कहा कि नई मिल जाए तो पुरानी को छोड़ दो? मैं तो अपनी पुरानी धोती जरूर लाऊंगा। राजा के लड़के ने देखा वहां पर ना कोई महल था। उसने अपनी धोती कीकर के पेड़ पर टंगी हुई मिली। लड़का ये देखकर पत्नी पर तलवार लेकर खड़ा हो गया कि सच सच बताओ नहीं तो तुझे मारूंगा। पत्नी ने राजा के लड़के से कहा कि देवरानी-जेठानी, पड़ोसन बोली मार रही थी। यह सब बातें सर्प देवता सुन रहा था और वही मेरा धर्म भाई बना। आपके आने का पता चला तो मैंने भगवान से ढाई दिन का पीहर मांगा था। घर आने के कुछ दिन बाद बहू के लड़का हुआ। तो उसकी ननद ने वही नौलखा हार मांग लिया। जो तुम अपने पीहर से लाई हो उसने कहा और कुछ मांग लो- पर वह नहीं मानी उसने कहा कि ढाई दिन के मांगे का हार है उसने कहा कि अगर मैं पहनूंगी तो हार रहेगा, तुम पहनो गी तो सर्प बन जाएगा। वह नहीं मानी उसने उस हार को ननंद को दिया और उसने पहना तो वह सर्प बन गया।