Eid AL-Adha 2022: ईद उल अजहा या बकरीद इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार

Latest News: इस समुदाय के लोग पूरे जोश के साथ मनाते हैं. बकरीद इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 12वें महीने में मनाया जाता है.
 

Haryana Update: यह रमजान का महीने खत्म होने के 70 दिन के बाद मनाया जाता है. इस दिन नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी दी जाती है. बकरीद के त्योहार को बकरीद, ईद कुर्बान, ईद अल-अधा या कुर्बान बयारामी भी कहा जाता है. जानें इस साल यानी 2022 में बकरीद (Bakrid) यानी ईद-उल-अजहा (Eid al-adha) कब है और इस पर्व का इस्लाम में क्या महत्व है?


 

Eid al-Adha: बकरीद 2022 कब है?
इस साल भारत में मुस्लिम समुदाय के लोग बकरीद का त्योहार 10 जुलाई को मनायेंगे. इस दिन ईदगाहों और मस्जिदों में जमात के साथ नमाज अदा की जाती है. बकरीद के दिन सुबह में नमाज अदा करने के साथ ही ईद मनाने की शुरुआत हो जाती है. इस्लाम अपने अनुयायियों को खुशी के मौके पर गरीबों को नहीं भूलने की सीख देता है. साथ ही अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को बकरीद की मुबारक बाद देते हैं.

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Eid al-Adha: बकरीद कुर्बानी का पर्व
बकरीद को कुर्बानी का त्योहार माना जाता है. इस अवसर पर इस्लाम धर्म के लोग सबसे पहले मस्जिदों में नमाज अदा करते हैं. इसके बाद बकरे या दुंबे-भेड़ की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी के इस गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इसमें से एक हिस्सा गरीबों को जबकि दूसरा हिस्सा दोस्तों और अपने सगे संबंधियों को दिया जाता है. वहीं, तीसरे हिस्से की अगर बात करें तो यह अपने परिवार वालों के लिए रखा जाता है.

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Eid al-Adha: रब को राजी करने के लिए देते हैं कुर्बानी
इस्लाम मजहब में कुर्बानी को बहुत अहमियत हासिल है. यही वजह है कि ईद-उल-अजहा के मुबारक मौके पर मुसलमान अपने रब को राजी और खुश करने के लिए कुर्बानी देते हैं. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की आज़माइश के तहत उनसे अपनी राह में उनकी सबसे प्रिय चीज कुर्बान करने का हुक्म दिया. क्‍योंकि उनके लिए सबसे प्‍यारे उनके बेटे ही थे तो यह बात हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे को भी बताई.

 

Eid al-Adha हजरत इब्राहिम ने बेटे की मुहब्‍बत से बढ़ कर अपने रब की मुहब्‍बत को अहमियत दी


इस तरह उनके बेटे अल्‍लाह की राह में कुर्बान होने को राजी हो गए. और जैसे ही उन्‍होंने अपने बेटे की गर्दन पर छुरी रखी, तो अल्लाह के हुक्‍म से उनके बेटे की जगह भेड़ जिबह हो गया. इससे पता चलता है कि हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की मुहब्‍बत से भी बढ़ कर अपने रब की मुहब्‍बत को अहमियत दी. तब से ही अल्लाह की राह में कुर्बानी करने का सिलसिला चला आ रहा है.