सोमवार व्रत की कथा: जब भगवान शिव ने दूर किया ब्राह्मण का रोग
सोमवार व्रत कथा (Somvar Vrat Katha)
मृत्यु लोक में विवाह की इच्छा करके एक समय श्री भूतनाथ महादेव जी माता पार्वती के साथ पधारे। वहां पर घूमते घूमते अमरावती नाम की अति रमणीक नगरी में पहुंचे। अमरावती नगरी बड़ी सुंदर और सुखों से परिपूर्ण थी। वहां के महाराजा का बनाया हुआ भव्य रमणीक शिव जी का मंदिर था। उसमें भगवान शिव पार्वती भगवती के साथ निवास करने लगे। एक दिन माता पार्वती प्राण पति को प्रसन्न देखकर अपनी इच्छा से कहा हे महाराज! आज हम दोनों चौसर खेलें। पार्वती की बात मान कर दोनों चौसर खेलने लगे। वहां पर मंदिर का पुजारी पूजा करने आया। माता पार्वती ने ब्राह्मण से प्रश्न किया कि पुजारी जी बताओ हम दोनों में जीत किसकी होगी। ब्राह्मण ने बिना सोचे समझे बोला कि महादेव जी की जीत होगी। थोड़ी देर में बाजी समाप्त हुई और पार्वती जीत गई। पार्वती ब्राह्मण को झूठ बोलने के बाद में शाप देने को उद्यत हुई। महादेव ने पार्वती को बहुत समझाया। लेकिन ब्राह्मण को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। कुछ समय के बाद ब्राह्मण को कोढ हो गया। ब्राह्मण को कोढ होने के कारण वह इधर-उधर घूमने लगा। लेकिन कष्ट भोंगते हुए बहुत दिन हो गए तो देवलोक की अप्सराएं शिवजी की पूजा करने उस मंदिर में आई और पुजारी के कोढ और कष्ट को देख बड़ी दया भाव से ब्राह्मण को रोगी होने का कारण पूछा। पुजारी ने निसंकोच सब बातें उनसे कहीं। अप्सराएं बोली हे पुजारी! अब तुम दुखी मत हो, भगवान शिव तुम्हारे कष्ट हर लेंगे। तुम सब व्रतों में श्रेष्ठ सोलह सोमवार का व्रत भक्ति भाव से करो। पुजारी अप्सराओं को हाथ जोड़कर सोलह सोमवार व्रत की विधि पूछने लगा। अप्सराएं बोली सोमवार के दिन भक्ति के साथ व्रत करें। स्वच्छ कपड़े पहने, आधा सेर गेहूं का आटा ले। उसकी रोटी बनावे। घी,गुड़ मिलाकर उसके तीन भाग बनाए। उस चूरमे के तीन भागों को एक शिवजी पर चढ़ाएं, एक भाग आप खाएं, एक भाग बांट दें। शिवजी की पूजा प्रदोष काल में इस तरह करें। दीप, नैवेद्य, पूगीफल, बेलपत्र, जनेऊ, जोड़ा, चंदन, अक्षत, पुष्प आदि जल पंचामृत। इस प्रकार भगवान शिवजी की पूजा करें। ऐसा बताकर अप्सराएं स्वर्ग चली गई। ब्राह्मण ने सोलह सोमवार का व्रत किया और शिव जी की कृपा से ब्राह्मण रोग मुक्त हो गया। शिवजी और पार्वती उस मंदिर में आए। ब्राह्मण को निरोग देखकर पार्वती ने ब्राह्मण से रोग मुक्त होने का कारण पूछा तो ब्राह्मण ने सोलह सोमवार व्रत की कथा बताई।
पार्वती बहुत खुश हुई और पार्वती ने भी व्रत किया। व्रत करने के बाद उसकी मनोकामना पूर्ण तथा रूठे पुत्र स्वामी कार्तिकेय स्वयं माता के आज्ञाकारी हुए। कार्तिकेय जी ने यह विचार का रहस्य जानने की इच्छा हुई और माता से बोले यह माता जी आपने ऐसा क्या उपाय किया, जिससे मेरा मन आप की ओर आकर्षित हुआ। पार्वती जी ने सोलह सोमवार व्रत की कथा उनको सुनाई। स्वामी कार्तिकेय बोले कि इस व्रत को मैं भी करूंगा। मेरा प्रिय मित्र ब्राह्मण बहुत दुखी दिल से परदेस गया है। कार्तिकेय ने इस व्रत को किया। उसे प्रिय मिल गया। मित्र ने इस आकस्मिक मिलने का भेद कार्तिकेय से पूछा- वह बोले हैं मित्र! हमने तुम्हारे मिलने की इच्छा करके सोलह सोमवार का व्रत किया था। ब्राह्मण ने भी अपने विवाह की इच्छा बताई तो कार्तिकेय से व्रत की विधि पूछी और यथा विधि व्रत किया। जब वह अपने काम से विदेश गया तो वहां के राजा का स्वयंवर था। राजा ने प्रण किया था कि जिस राजकुमार के गले में शृंगारिक हथिनी माला डालेगी, मैं उसी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दूंगा। शिव जी की कृपा से ब्राह्मण भी स्वयंवर देखने गया था। वहां पर हथिनी आई। उसने जयमाला उस ब्राह्मण के गले में डाल दी। राजा की प्रतिज्ञा के अनुसार बड़ी धूमधाम से कन्या का विवाह उस ब्राह्मण के साथ कर ब्राह्मण को बहुत सा धन देकर सम्मान और संतुष्ट किया। ब्राह्मण सुंदर राजकन्या पाकर सुख से रहने लगा। एक दिन राजकन्या ने अपने पति से पूछा हे प्राणनाथ! आपने ऐसा क्या पुण्य किया कि हथिनी ने सब राजकुमार को छोड़कर आप का वर्ण किया। ब्राह्मण बोला है प्राण प्रिय! मैंने अपने मित्र की बताई विधि से सोलह सोमवार का व्रत किया था, जिसके प्रभाव से मुझे तुम्हारी जैसी सुंदर लक्ष्मी मिली।
राजकन्या को आश्चर्य हुआ। वह भी पुत्र की इच्छा से व्रत करने लगी। उसको भी सुंदर, सुशील, धर्मात्मा, विद्वान पुत्र हुआ। माता-पिता दोनों उसका लालन-पालन करने लगे। पुत्र ने अपनी माता से प्रश्न किया कि मां तूने ऐसा कौन सतत किया जो कि मैं तेरे गर्भ से पैदा हुआ। मां ने अपने पुत्र की इच्छा जानकर सोलह सोमवार की विधि बताई तो पुत्र भी व्रत को राज्य अधिकार पाने के लिए हर सोमवार का व्रत की यथा विधि पूजन करने लगा। किसी तरह देश के वृद्ध राजा के दूतों ने आकर उसका राज करने के लिए वर्ण किया। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उस ब्राह्मण से सर्वगुण संपन्न करके उसके साथ सुख प्राप्त किया। उस वृद्ध का कोई पुत्र नहीं था। उस ब्राह्मण को गद्दी पर बिठाया। राजा बनने के बाद भी वह ब्राह्मण पुत्र अपनी सोलह सोमवार के व्रत को करता रहा। जब सत्रहवाँ सोमवार आया तो विप्र पुत्र ने अपनी पत्नी से सब पूजन सामग्री लेकर मंदिर में चलने के लिए कहा। परंतु प्रियतमा ने सब सामग्रियां दास दासियों द्वारा शिवालय भिजवा दी, आप नहीं गई। जब राजा ने शिवजी का पूजन समाप्त करा। तब आकाशवाणी हुई। राजा ने सुना कि हे राजा! अपनी रानी को राज महल से निकाल दे नहीं तो तुम्हारा सर्वनाश कर देगी। वाणी को सुनकर राजा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और तत्काल मंत्रियों को सभा में बुलाया और पूछने लगा कि हे मंत्रियों! शिव जी की वाणी हुई है कि राजा तू अपनी रानी को घर से निकाल दो, नहीं तो तेरा सर्वनाश कर देगी। मंत्री प्रजा बड़ी दुखी हुए और जिस कन्या के कारण राजमिला उसे घर से निकाल दिया। रानी अपने भाग्य को कोसती हुई फटे वस्त्र, भूखी प्यासी, नगर से बाहर चली गयी। एक गांव में बुढ़िया सुत कात कर बेचा करती थी। रानी की करुणा को देख बोली चल तू मेरा सूत बिकवा दे, मैं बुड्ढी हूं। रानी ने बुढ़िया की गठरी अपने सर पर रख ली थोड़ी देर में ऐसी आंधी और तूफान आया जिससे बुढ़िया की सूत की गठरी उड़ गई। बुढ़िया पछताती रह गई और रानी को अपने पास से हटा दिया। रानी एक तेली के घर गई। शिवजी के प्रकोप से तेली के सब मटके चटक गए। तेली ने भी उसे अपने घर से निकाल दिया। रानी बड़ी दुखी मन से सरिता तट पर गयी। नदी का समस्त जल सूख गया। रानी भटकती भटकती एक वन में गई। जाकर सरोवर में पानी पीने गई तो उसके हाथ पर से असंख्य कीड़े पड़ गए और पानी गंदा हो गया। रानी अपने भाग्य पर दुखी होकर रानी ने पेड़ के नीचे शीतल छाया में विश्राम करना चाहा। रानी जिस पेड़ के नीचे जाती, पेड़ सुख कर नीचे गिर जाता। वन के सरोवर का जल, पेड़ के पत्ते गिरने, गो चराते गवालों ने देखा। जंगल में एक पुजारी था। ग्वालों ने इस पुजारी से यह सारी घटना बताई। तब पुजारी ने कहा रानी को पकड़कर लाओ। वे उसे पुजारी के पास ले ग।ए रानी की मुख कान्ति शरीर शोभा देखकर पुजारी ने जान लिया इसे किसी का श्राप लगा है। पुजारी ने कहा पुत्री तुम मेरी बेटी के समान हो। तुमहे किसी प्रकार कष्ट नहीं होगा। तुम मेरे आश्रम में रहो। पुजारी की बात सुनकर रानी को धीरज हुआ और आश्रम में रानी भोजन बनाती। उसमें कीड़े पड़ जाते। जल भर के लाती उसमें भी कीड़े पड़ जाते। अब तो पुजारी भी बहुत दुखी हुआ। रानी से बोले बेटी तेरे पर किस देवता का खौफ है। जिसे तुम्हारी यह दशा हुई। रानी ने शिवजी की पूजा के बारे में पुजारी को बताया। पुजारी जी बोले शिवजी के सोलह सोमवार व्रत को करो, उसके प्रभाव से तुम्ह कष्ट से मुक्त हो सकोगी। पुजारी की बात सुनकर रानी ने सोलह सोमवार के व्रत की विधि पूर्वक संपन्न किया और सत्रहमें सोमवार को पूजन के प्रभाव से राजा के हृदय में विचार उत्पन्न हुआ की रानी को बहुत समय व्यतीत हो गया। ना जाने कहां-कहां भटकती होगी। यह सोच रानी को ढूंढना शुरु करा। चारों तरफ अपने दूत भेजें और तलाश करते हुए पुजारी के आश्रम में रानी को पाकर पुजारी से रानी को मांगने लगे। लेकिन पुजारी ने उनको देने से मना कर दिया। तो दूत बोले- महाराज! रानी का पता लग गया। रानी का पता पाकर राजा बहुत खुश हुआ। दूतों ने बताया रानी एक आश्रम में रहती है। राजा स्वयं पुजारी के आश्रम में गए और पुजारी से प्रार्थना करने लगे महाराज! जो भाई जी आपके आश्रम में रहती है, वह मेरी पत्नी है। मैं उसे लेने आया हूं। शिवजी के कोप से मैने उन का त्याग कर दिया था। अब शिवजी का प्रकोप शांत हो गया है तो उसे लेने आया हूं। आप इसे मेरे साथ जाने की आज्ञा दें। पुजारी जी ने राजा के सत्य वचन समझकर रानी को राजा के साथ जाने की आज्ञा दी। पुजारी की आज्ञा सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। राजा के साथ रानी महल में आई। अनेक प्रकार के बंधावे, मंगल गीत होने लगे। पंडितों ने वेद मंत्रों का उच्चारण कर कर अपनी राजधानी में प्रवेश किया। राजा ने ब्राह्मणों को दान, भूखों को भोजन मिलते रहे। रानी सुखी जीवन करके सोमवार का व्रत करने लगी। शिवजी का सोलह सोमवार का पूजन करके इस लोक में सुख भोगकर शिवपुरी को प्राप्त कर लिया। यह व्रत सर्व मनोरथ को पूर्ण करने वाला है।