रविवार की कथा: रविवार का व्रत करने वाली बुढ़िया को जब भगवान ने बना दिया धनवान

Sunday Story: ये कहानी एक बुढ़िया माई और भगवान की है जो कि हर रविवार के दिन भगवान का व्रत और पूजा करती थी। इसके बदले मे भगवान ने उसे क्या क्या दिया देखिये...
 

रविवार की कथा व व्रत (Ravivar ki katha aur Vrat)

एक बुढ़िया का नियम था कि वह नहा धोकर सुबह हर रविवार को पड़ोसन की गाय के गोबर से घर को लिप कर भोजन बनाती और भगवान को भोग लगाकर स्वयं करती थी। इस व्रत को करने से उसका घर धन-धान्य से परिपूर्ण था। इस तरह करते-करते बहुत दिन हो गए। पड़ोसन ने सोचा वृद्ध बुढ़िया मेरे गौ का गोबर ले जाती है। वह अपनी गाय को घर में बांधने लगी। बुढ़िया को रविवार को उसका गोबर नहीं मिला। उसने घर को ना ही लीपा, ना ही भोजन बनाया, ना ही खाया और ना ही भगवान को भोग लगाया। सपने में सूर्य नारायण बोले बुढ़िया भूखी क्यों है? बाहर निकल कर देखो। वृद्ध माता तुमको गोरी गाय और बछड़ा बंधा हुआ है।

तभी उसने बाहर गाय और बछड़े को देखा। खुश होकर उसने रविवार को गांय के गोबर से घर लीप कर भोजन तैयार करके व भगवान को भोजन का भोग लगाती है और खुद भोजन करती है। इससे खुश होकर यह वरदान देता हूं तथा अनंत समय मोक्ष देता हूं। स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान तो अंतर्ध्यान हो गए। जब उसकी पड़ोसन ने बुढ़िया के घर के बाहर गाय बंधी हुई देखी तो गाय ने एक लड़ी गोबर की और एक लड़ी सोने की तो पड़ोसन सोना आप ले जाती। बुढ़िया को इसकी खबर नहीं थी। पड़ोसन रोज रोज सोने को उठाकर ले जाती और गोबर को रख जाती थी। नित्य प्रति ऐसा करती तो भगवान ने संध्या के समय पड़ोसन के कारण बुढ़िया ठगी जा रही थी। भगवान ने अपनी माया से आंधी चला दी। बुढ़िया ने अंधेरी के डर के कारण गाय बांध ली।

प्रातकाल उठकर वृद्धा ने देखा कि गाय ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रही। उसने प्रतिदिन गाय को अंदर बांधना शुरू कर दिया तो पड़ोसन को गुस्सा आया। उसने राजा से शिकायत करी। बुढ़िया की गाय तो सोना देती है। ऐसी गाय बुढ़िया क्या करेगी। राजा के पास होनी चाहिए। राजा ने नौकर भेजकर गाय मंगवा ली और राजा ने अपने महल में बांध ली। मगर गाय ने सारा महल गोबर से भर दिया। राजा ने बुढ़िया को बुलाया और राजा ने कहा तेरे घर तो सोना देती थी। हमारा महल तो गोबर से भर दिया। वृद्धा ने कहा कि महाराजा मेरा गोबर का नियम है, मैं गोबर लीप कर खाना बनाती थी। खाना बनाकर पहले भगवान को भोग लगाकर फिर मैं खाती थी। यह मेरा रोज का नियम था। एक दिन मुझे गोबर नहीं मिला तो मैं भूखी सो गई। सपने में सूर्य भगवान आए और बुढ़िया से बोले बाहर निकल कर देख।

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मैंने बाहर देखा तो गाय और बछड़ा बंधा हुआ था। गाय ने गोबर और सोने की लड़ी दी है गोबर में लेती आती, सोने को पड़ोसन ले जाती तो भगवान ने सोचा बुढ़िया बहुत भोली है। भगवान ने आँधी मेघ बरसा दिए। मैंने गाय अंदर बांध ली। उसे गोबर सोना नहीं मिला, इसलिए आपसे शिकायत कर दी। राजा ने स्वप्न में बुढ़िया की गाय लौटाने को कहा, इसमें ही तेरा भला है। राजा ने वृद्धा की गाय और बछड़ा और बहुत सा धन दिया। पड़ोसन को राजा ने दंड दिया। उसी दिन से राजा ने नगर के लोगों को आदेश दिया कि राज्य की अपनी समस्त मनोकामना की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत करो। व्रत करने से नगर के लोग सुखी और बीमारी के प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था। सारी प्रजा सुखी रहने लगी।