क्यों अधूरी रह गईं पुरी के भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां?
Haryana Update: उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। यहां हर साल आषाढ़ में भव्य रथयात्रा निकाली जाती है और इस रथयात्रा में देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं।
जगन्नाथ मंदिर में भगवान कृष्ण ही जगन्नाथ के नाम से विराजमान हैं और यहां उनके साथ उनके ज्येष्ठ भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं।
आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को शुरू होने वाली रथयात्रा में रथ को किसी मशीन या जानवर के द्वारा नहीं बल्कि भक्तों द्वारा खींचा जाता है। इसी के साथ आपको यह भी पता हो कि पुरी में भगवान जगन्नाथ के अलावा बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं काष्ठ की बनी हुई हैं। ताज्जुब की पहली बात ये कि तीनों की प्रतिमाएं अधूरी हैं और दूसरा ताज्जुब ये कि मंदिर की कोई परछाई नहीं बनती। आखिर क्यों ये मूर्तियां अधूरी रह गईं और क्यों जगन्नाथ भगवान की अधूरी मूर्ति की पूजा की जाती है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति क्यों है अधूरी?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न पुरी में मंदिर बनवा रहे थे तो भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने का कार्य उन्होंने देव शिल्पी विश्वकर्मा को सौंपा। मूर्ति बना रहे भगवान विश्वकर्मा ने राजा इंद्रद्युम्न के सामने शर्त रखी कि वे दरवाजा बंद करके मूर्ति बनाएंगे और जब तक मूर्तियां नहीं बन जाती तब तक अंदर कोई प्रवेश नहीं करेगा। अगर दरवाजा किसी भी कारण से पहले खुल गया तो वे मूर्ति बनाना छोड़ देंगे।
उस दौरान बंद दरवाजे के अंदर मूर्ति निर्माण कार्य हो रहा है या नहीं, ये जानने के लिए राजा प्रतिदिन दरवाजे के बाहर खड़े होकर मूर्ति बनने की आवाज सुनते थे। एक दिन राजा को अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो उनको लगा कि विश्वकर्मा काम छोड़कर चले गए हैं और इसके बाद राजा ने दरवाजा खोल दिया। उनके इस कार्य के बाद भगवान विश्वकर्मा वहां से अंतर्ध्यान हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी ही रह गईं। उसी दिन से आज तक मूर्तियां इसी रूप में यहां विराजमान हैं और आज भी भगवान की पूजा इसी रूप होती है।