Ganesh Chaturthi Rajasthan Ganesh Temple: गणेश का ये मंदिर है बेहद अनोखा, सोने के कटोरे में मिलता था प्रसाद

Ganesh Chaturthi Rajasthan Ganesh Temple: This temple of Ganesh is very unique, Prasad used to be found in a golden bowl

 

Haryana Update: गणेश चतुर्थी का उत्सव (ganesh chaturthi 2022) इस साल 31 अगस्त से शुरू होने जा रहा है| विघ्नहर्ता गणेश जी की महिमा पूरे जगत में फैली हुई है| ऐसे में आज हम आपको जयपुर की पुरानी राजधानी आमेर (Ganesh temple of Rajasthan) में श्वेत आंकड़े की जड़ से तैयार गणेश जी के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं|

सूर्यवंश शैली में बने 450 साल पुरानें 16 वीं शताब्दी के महल रोड आमेर स्थित श्वेत अर्क गणपति मंदिर (Ganesh temple) में छठा देखते ही बनती है| लोग यहां असाध्य बीमारियों के इलाज के लिए पहुंचते हैं| इसके साथ ही कई ज्योतिषियों की भी मंदिर में विशेष मान्यता है| गणेश जी यह प्रतिमा सफेद आंकड़े से निकली हुई है| आमेर को छोटीकाशी के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यहां पर करीब 365 मंदिर बने हुए हैं| इन सभी मंदिरों में श्वेत अर्क गणेश मंदिर की अपनी अनूठी विशेषताएं हैं| आमतौर पर पाषाण के गणेश, भस्म के गणेश की प्रतिमाएं होती हैं| तो, चलिए इस मंदिर की ओर खासियतों के बारे में आपको बताते हैं|

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सूर्यमुखी गणेश जी की विशेषता -Characteristics of Suryamukhi Ganesh ji

जयपुर की पुरानी राजधानी आमेर के इस मंदिर में श्वेत अर्क की प्रतिमा के नीचे पाषाण की गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित है| पूर्व दिशा को देखती हुई दोनों मूर्तियों में गणेश जी की बांई सूंड हैं| इसलिए इसे सूर्यमुखी गणेश भी कहा जाता है| महाराजा मानसिंह प्रथम ने यहां 18 स्तम्भों का मंदिर बनवाकर गणेश को विराजमान करवाया था| बरसों प्राचीन पहले बावड़ी थी, पानी के ऊपर स्तंभ बनाकर गणेश जी विराजमान किए|

विवाह आदि के निमंत्रण पत्र डाक या कोरियर से यहां भेजते हैं| गणेश चतुर्थी पर मेला भरने के साथ ही आमेर कुंडा स्थित गणेश मंदिर से शोभायात्रा का समापन आंकड़े वाले गणेश जी पर होता है| महंत ने बताया कि चौथी पीढ़ी मंदिर में सेवा पूजा कर रही है, राजा मानसिंह जब यहां अनुष्ठान करते थे तब गणपति के समक्ष रोजाना 125 ग्राम सोना प्रसाद (gold found in bowl of Ganesh temple) के कटोरे में मिलता था|

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घुड़सवार रह गए थे चकित -The horsemen were left amazed

महंत चन्द्रमोहन शर्मा (Mahant Chandramohan Sharma) ने बताया कि इस दुर्लभ प्रतिमा को महाराजा मानसिंह प्रथम (Maharaja Mansingh I) जयपुर की स्थापना के पहले हिसार हस्तिनापुर (Hisar Hastinapur) से लाए थे| इस मूर्ति को वापस मंगाने के लिए हिसार के राजा ने आमेर में अपने घुड़सवारों को भेजा था| महाराजा ने श्वेत अर्क गणेश के पास ही पाषाण की दूसरी मूर्ति बनवा कर रख दी, जिससे घुड़सवार आश्चर्य चकित हो गए वे दोनों बालस्वरूप मूर्तियां यहीं छोड़ गए, तभी से ये दोनों ढाई फीट की प्रतिमाएं बावड़ी (Ganesh Chaturthi 2022 Puja) पर स्थित हैं
 

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