Haryana मे निजी कंपनियों मे 75% आरक्षण के फैसले को हाई कोर्ट ने किया रद्द, दी ये दलील

Haryana 75% Reservation: हरियाणा सरकार ने लोकल कैंडिडेट अधिनियम 2020 बनाया था। जिसमें निर्धारित किया गया कि हरियाणा के युवा लोगों को निजी कंपनियों, सोसाइटी, ट्रस्ट, साझेदारी फर्मों में 75 प्रतिशत आरक्षण देना होगा।
 

Haryana में 75% आरक्षण: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने राज्य में स्थानीय युवाओं को निजी नौकरियों में 75% आरक्षण देने वाले कानून को खारिज कर दिया है। 21 अक्टूबर को पहले से ही इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा गया था। हरियाणा सरकार के इस कानून पर उद्योग मालिकों ने सवाल उठाए हैं।ये पहली बार नहीं है कि कोर्ट ने इस मामले में अपने निर्णय को सुरक्षित रखा है।इस कानून को लेकर मार्च 2022 में कोर्ट ने पहले ही फैसला सुरक्षित रखा था। तब हाईकोर्ट ने कानून के पक्ष और विरोध की सभी दलीलें सुनीं, और अप्रैल 2023 में फिर से सुनवाई शुरू की।

दरअसल, हरियाणा सरकार ने लोकल कैंडिडेट अधिनियम 2020 बनाया था। जिसमें निर्धारित किया गया कि हरियाणा के युवा लोगों को निजी कंपनियों, सोसाइटी, ट्रस्ट, साझेदारी फर्मों में 75 प्रतिशत आरक्षण देना होगा। हालाँकि, इससे पहले भी निर्धारित किया गया था कि रिजर्वेशन सिर्फ निजी संस्थानों पर लागू होगा जहां 10 या उससे अधिक लोग काम करते हैं और वेतन 30 हजार रुपये से कम नहीं होता। इस मामले में, 2021 में श्रम विभाग ने घोषणा की कि हरियाणा की नई-पुरानी निजी कंपनियों में हरियाणा के मूल निवासियों को 75 फीसदी नौकरी मिलनी चाहिए।

प्रदेश की गठबंधन सरकार कहती है कि ये कानून राज्यवासियों को उनके हक दिलाने के लिए बनाए गए हैं। वहीं, इस मामले में यह भी कहा गया है कि सरकार इस कानून का पालन न करने के मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर सकती जब तक कि हरियाणा हाईकोर्ट से इसकी वैधता पर निर्णय नहीं आता। हरियाणा की बीजेपी और जेजेपी की गठबंधन सरकार ने इस कानून को राज्य के 75 प्रतिशत लोगों को राज्य के उद्योग में आरक्षण देने का एक बड़ा उपलब्धि बताया था. हालांकि, सभी दलीलों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है।

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याचिकाकर्ता पक्ष के वकील अक्षय भान, जो 2020 में हरियाणा सरकार द्वारा पारित 75 प्रतिशत आरक्षण कानून के खिलाफ याचिका दायर की थी, ने हाई कोर्ट के फैसले पर अपील की है। इसमें स्थानीय लोगों के लिए 75% आरक्षण होगा। पचास हजार रुपये की पहली सैलरी तीस हजार रुपये कर दी गई। अक्षय भान ने कहा कि आदेश में एक्ट संविधान के खिलाफ है। इस मामले में चार सवाल फ्रेम किए गए थे, सभी पर कोर्ट ने कानून को असंवैधानिक ठहराया।