Agniveer: भर्ती के लिए जाति-धर्म सर्टिफिकेट विवाद पर सेना के अधिकारी ने दिया जवाब

Latest news: सेना ने इस तरह के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। सेना का कहना है कि यह पहले भी उम्मीदवारों की भर्ती के लिए मांगा जाता था। अग्निपथ योजना के तहत भर्ती के लिए इसको लेकर किसी भी तरह का नियमों कोई बदलाव नहीं किया गया है।
 

Haryana News: सेना के अधिकारी ने दी सफाई। इस पूरे विवाद पर सेना की ओर से कहा गया है कि आवेदकों के लिए उनका जाति प्रमाण पत्र और जरूरत पड़े तो धर्म प्रमाण पत्र हमेशा से सेना भर्ती में लिया जाता रहा है। इस मामले में अग्निवीर भर्ती योजना में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

भारतीय सेना के अधिकारी की ओर से कहा गया है कि अगर जवान ड्यूटी के दौरान शहीद होता है या ट्रेनिंग के दौरान किसी वजह से उसकी मृत्यु होती है तो उसके अंतिम संस्कार के लिए भी उसकी धर्म की जानकारी की जरूरत होती है ताकि उसके रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार किए जा सके।

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क्या कहा संजय सिंह ने
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने मोदी सरकार की अग्निपथ योजना पर सवाल खड़ा करते हुए इसको लेकर सदन में जमकर हंगामा किया। इसी दौरान संजय सिंह ने अग्निवीरों की भर्ती से जुड़ी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि मोदी सरकार का घटिया चेहरा अब देश के सामने आ चुका है। नरेंद्र मोदी नहीं चाहते हैं कि देश के दलित और आदिवासी सेना में भर्ती हों, वो इन्हें इस काबिल नहीं मानते हैं।

अग्निवीर या जातिवीर
संजय सिंह ने कहा कि भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब सेना में भर्ती के लिए उम्मीदवारों से उनकी जाति पूछी जा रही है। उनका धर्म पूछा जा रहा है, ये अग्निवीर हैं या जातिवीर। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने संजय सिंह के इन आरोपों पर पलटवार किया है। भाजपा सोशल मीडिया के हेड अमित मालवीय ने कहा कि 2013 में सेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया गया था जिसमे स्पष्ट है कि सेना में भर्ती धर्म, जिता, क्षेत्र के आधार पर नहीं की जाती है। प्रशासनिक सुविधा और परिचालन के लिए उनसे यह जानकारी ली जाती है, जिससे एक समूह के लोगों को एक रेजिमेंट में रखने में आसानी हो।

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अमित मालवीय ने किया पलटवार
अमिल मालवीय ने कहा कि हर चीज के लिए पीएम मोदी पर आरोप लगाने के मोह में संजय सिंह जैसे लोग अपना पैर हर रोज अपने मुंह में डालते हैं। आर्मी रेजिमेंट व्यवस्था ब्रिटिश काल से चली आ रही है। आजादी के बाद इसे स्पेशल आर्मी ऑर्डर के तहत 1949 में फॉर्मल कर दिया गया। मोदी सरकार ने कुछ भी बदलाव नहीं किया है। सेना में भर्ती होने वाले लोगों को उनके क्षेत्र के आधार पर रेजिमेंट में रखा जाता है, जिससे कि उनकी जरूरतों को पूरा करने और संचालन में सहूलियत रहे।