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लोन लेने के लिए इतना होना चाहिए सिबिल स्कोर

CIBIL Score: क्या होता है सिबिल स्कोर, कैसे होता है तय, लोन लेने के लिए कितना होना चाहिए सिबिल स्कोर, कितनी EMI नहीं भरने पर खराब हो जाता है सिबिल स्कोर, एक बार खराब होने के लिए कितने दिन में ठीक होता है सिबिल स्कोर, क्या बार बार चेक करने से खराब होता है सिबिल स्कोर? ये वो सवाल हैं जो लगातार पूछे जाते हैं।
 
लोन लेने के लिए इतना होना चाहिए सिबिल स्कोर

Haryana Update: आपको यदि बड़ी रकम देनी है तब आप यह देखेंगे कि जिसे पैसा दे रहे हैं उससे पैसा वापस मिलने में कोई दिक्कत तो नहीं होगी। क्या सामने वाला इतना सक्षम है कि वो आपका पैसा लौटा देगा। उसका पिछला ट्रैक रिकॉर्ड कैसा है। कहीं उसने पहले किसी से उधार तो नहीं ले रखा है और उधार लिया है तो वापस कितने दिनों में दिया है। 

जब भी आप पहली बार लोन (Loan) लेते हैं या क्रेडिट कार्ड लेते हैं, तभी से आपकी क्रेडिट हिस्‍ट्री (Credit History) बननी शुरू हो जाती है।  सिबिल स्‍कोर तैयार करते समय आपकी क्रेडिट हिस्‍ट्री को भी चेक किया जाता है। आपकी क्रेडिट हिस्‍ट्री कितनी पुरानी है और आपने पहले भी लोन लेने के बाद या क्रेडिट कार्ड के इस्‍तेमाल के बाद समय से भुगतान किया है या फिर नहीं, ये सभी चीजें देखीं जाती हैं। इस क्रेडिट हिस्‍ट्री का असर आपके सिबिल स्‍कोर पर होता है।

पहले आपने कितने अनसिक्‍योर्ड लोन (Unsecured Loan) और कितने सिक्‍योर्ड लोन (Secured Loan) पहले लिए हैं, इससे आपका क्रेडिट मिक्स सामने आता है। उदाहरण के तौर पर अगर आपने पहले अन-सिक्योर्ड लोन जैसे पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड वगैरह कर बार लिया है तो ये दर्शाता है कि आपके पास पैसे की कमी है और क्रेडिट पर आपकी निर्भरता बहुत अधिक है। इसका आपके सिबिल स्कोर पर बुरा असर होता है। 
वहीं अगर आप जरूरत पड़ने पर सिक्‍योर्ड और अनसिक्‍योर्ड दोनों तरह के लोन लेते रहे हैं,

  CIBIL score का पैरामीटर

800-850 : बहुत ही अच्छा
799-740 : बहुत अच्छा
739-670 : अच्छा
699-580 : ठीक
579-300 : बहुत खराब

 कितने समय में ठीक होता है CIBIL score

आप सिबिल स्कोर के फंडा को एक साधारण उदाहरण से समझें। मान लें आपने घर बनाने के लिए किसी बैंक से लोन लिया है और शुरू-शुरू में लोन की किस्त (Loan EMI) चुकाते रहे कि अचानक आपका धंधा चौपट हो गया। इस परिस्थिति में सामने लोन की EMI बंद करने के अलावा कोई चारा न रहा।  लोन की किस्त बंद होते ही बैंक ने आपको डिफॉल्ट (Loan Default) की श्रेणी में डाल दिया। इसके बाद आर्थिक स्थिति ठीक हुई और आपने किस्त (EMI) के बाकी बचे पैसे और उस पर लगे ब्याज को भी बैंक में चुका दिया। 


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