विश्व धरोहर दिवस: कई विरासतों को समेटे है धर्मनगरी कुरूक्षेत्र, लेकिन विश्व धरोहर में एक भी नहीं शामिल

Haryana Update. कुरुक्षेत्र की पावन धरा भारत की गौरवशाली सभ्यता एवं संस्कृति की जन्मस्थली है। यह धर्मनगरी कई ऐतिहासिक धरोहरों को खुद में समेटे हुए है। इस धरती पर करीब पांच हजार साल पूर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक महाभारत का युद्ध लड़ा गया। युद्ध के दौरान मोह ग्रस्त अर्जुन को गीता का दिव्य संदेश भगवान श्रीकृष्ण ने दिया था, जो आज हर मानव के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।
इस उपदेश का साक्षी वट वृक्ष आज भी ज्योतिसर में स्थित है। कुरुक्षेत्र में शेख चहेली मकबरा, सरस्वती पुल, कर्ण का टीला, अमीन गांव का टीला एवं हर्षवर्धन का टीला कई ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं का द्योतक है। धर्मनगरी में इतने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के स्थल होने के बावजूद भी यूनेस्को विश्व विरासत में एक भी धरोहर शामिल नहीं है।
सिखों के सभी 10 गुरुओं के चरण भी इस भूमि पर पड़े। इसी देव भूमि को ब्रह्मा जी की तपोभूमि एवं वैदिक ऋषियों की यज्ञ स्थली होने का गौरव प्राप्त है। वामन पुराण के अनुसार सृष्टि रचना का ध्यान करते हुए ब्रह्मा ने चारों वर्णों की रचना यहीं के सरोवर के किनारे की थी, जिसे आज ब्रह्मसरोवर के नाम से जाना जाता है। यह एशिया का सबसे बड़ा सरोवर है।
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वृहद कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि में आने वाले लगभग छोटे-बड़े सभी तीर्थ सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों के प्रतीक हैं, जिनसे लोगों की आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। वैसे तो हर साल यहां के तीर्थ व ऐतिहासिक स्थलों को विकसित करने के लिए करोड़ों की राशी पानी की तरह बहाई जा रही है, लेकिन यह सब तब व्यर्थ लगता है जब इसका उद्देश्य पूर्ण नहीं हो रहा है। विश्व विरासत दिवस पर धर्मनगरी की ऐसी धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर की बात करते हैं जिनके संरक्षण एवं संवर्धन का ख्याल रखना बेहद जरूरी है।
राजा के परिवार से भाभी और ननद करती थीं ननदी भौजी तालाब में स्नान
19वीं शताब्दी में कुरुक्षेत्र धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र था और पंजाब के कई राजाओं ने समय-समय पर अपने रहने के लिए यहां महल बनवाए थे। नाभा के राजा और फरीदकोट के राजा का नाम प्रमुख है। नाभा के राजा ने कई शहरों के साथ ही कुरुक्षेत्र में नाभा हाउस के नाम का महल बनवाया था, जो धरोहर के रूप में संरक्षित है। इसी तरह फरीदकोट के राजा भी कुरुक्षेत्र आते-जाते रहते थे। उन्होंने वहां ठहरने के लिए सरस्वती के किनारे एक महल का निर्माण करवाया था।
महल को फरीदकोट के राजा वजीर सिंह की याद में बनवाया गया था। वहीं राजा ने अपने परिवार के सदस्यों के स्नान के लिए ही महल से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर ही एक तालाब का निर्माण भी कराया गया था, जिसे अब ननदी भौजी तालाब के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इस तालाब में नहाने के लिए राजा के परिवार से भाभी और ननद ज्यादातर आती थी तो इसका नाम भी ननदी-भौजी पड़ गया।
राजपरिवार की ओर से स्नान के लिए तालाब पर घाट का निर्माण भी किया गया था। जो छोटी छोटी ईंटों से बनाया गया था। महल से तालाब तक रास्ते का निर्माण भी कराया गया था। कहते हैं कि इस तालाब में स्नान करने के बाद ही राजपरिवार के लोग महल में जाते थे। केडीबी द्वारा यहां नवीकरण तो किया गया, लेकिन उसके बाद ध्यान नहीं दिया गया।
नाभा हाउस में ठहरा करते थे शाही परिवार
नाभा हाउस सन्निहित सरोवर के किनारे बनी एक महलनुमा इमारत है, जिसका उपयोग नाभा के शाही परिवार द्वारा उन दिनों निवास के रूप में किया जाता था जब कुरुक्षेत्र में धार्मिक प्रदर्शन किए जाते थे। ऐसा माना जाता है कि नाभा हाउस लगभग 1800 के दौरान महाराजा हीरा सिंह द्वारा बनाया गया था।
यह उन राजाओं के निवास के रूप में बनाया गया था जो सूर्य ग्रहण के दौरान स्नान करने के लिए सन्निहित सरोवर आते थे। आजादी के बाद, नाभा हाउस को सरकारी स्कूल और फिर आयुर्वेद कॉलेज के लिए जगह के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
सूफी संत अब्दुर रहीम बन्नूरी को समर्पित है शेख चहेली का मकबरा
यह मकबरा शेख चहेली के नाम से विख्यात सूफी संत अब्दुल रहीम बन्नूरी को समर्पित है जिसे अब्दुर करीब या अब्दुल रज्जाक भी कहा जाता है। शेख चहेली मुगल शहजादे दारा शिकोह के आध्यात्मिक गुरु भी कहे जाते हैं। इस मकबरे को हरियाणा का ताजमहल भी कहा जाता है। मकबरे के पीछे राजा हर्ष का टीला नाम से विख्यात एक पुरास्थल है।
इस टीले के उत्खनन से कुषाण काल (प्रथम-द्वितीय शताब्दी) से लेकर उत्तर मुगल काली संस्कृतियों के अवशेष मिलते हैं। टीले के मध्य भाग से वर्धन और राजपूत काल के विशाल भवनों का पता चलता है। मकबरे के मदरसा परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा बनाए गए संग्रहालय में टीले की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं को यहां स्थित पुरास्थली संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।
महाभारत एवं पौराणिक साहित्य में वर्णित है आपगा तीर्थ का महत्व
महाभारत एवं पौराणिक साहित्य में आपगा तीर्थ का महत्व वर्णित है। महाभारत के वनपर्व में कहा है कि आपगा तीर्थ में किसी ब्राह्मण को श्यामक का भोजन करवाना करोड़ों ब्राह्मणों के भोजन करवाने का फल देता है। पुराणों के अनुसार भाद्रपद मास में विशेष रूप से कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मध्याह्न में इस तीर्थ पर पिंडदान करने वाला व्यक्ति मुक्ति को प्राप्त करता है।
इस तीर्थ में एक वर्गाकार सरोवर है, जिसका निर्माण लखौरी ईंटों से हुआ है। तीर्थ के चारों कोनों पर चार अष्टभुजाकार एवं गुंबदाकार शिखर युक्त उत्तर मध्यकालीन चार छतरियां बनी हुई थी, जिनमें से तीन अनदेखी के कारण टूट गई। यह तीर्थ भी अब बदहाल है।
500 साल पुरानी है बावड़ी
सरस्वती नदी के क्षेत्र में गांव ईशरगढ़ स्थित बावड़ी का अपना अलग ही इतिहास है। ग्रंथों व प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार 500 साल पुरानी इस बावड़ी को लक्खी राय बंजारा की बावड़ी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि व्यापार के लिए दूर दराज के क्षेत्रों में जाते समय लक्खी वंजारा सरस्वती नदी के इस क्षेत्र में रुका करते थे।
इस दौरान लक्खी द्वारा ही बावड़ी का निर्माण किया गया था। प्राचीन काल में सरस्वती नदी का बहाव क्षेत्र बहुत विशाल था, इसलिए लक्खी बंजारा द्वारा सरस्वती नदी के तट पर इस बावड़ी का निर्माण किया गया।हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमिच ने इस बावड़ी का निरीक्षण किया था और इसे धरोहर के रूप में किया जाएगा विकसित करने की बात कही थी।
बौद्ध स्तूप पर किए जा रहे साढ़े चार करोड़ रुपये खर्च
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय स्थित बौद्ध स्तूप मुख्य विरासत में से एक है। राज्य सरकार द्वारा इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए योजना को अमलीजामा पहनाने का काम किया जा रहा है। योजना के तहत बौद्ध स्तूप पर 4 करोड़ 50 लाख रुपये की राशि खर्च कर रही है। बौद्ध स्तूप का सुंदरीकरण करने, पार्क को विकसित करने, ऑर्नामेंटल प्लांट लगाने, शौचालय व फुटपाथ और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाने का कार्य जारी है। कहा जाता है कि 2600 ईसा पूर्व महात्मा बुद्ध के पवित्र चरण कुरु भूमि पर भी पड़े थे। उन्होंने यहां अनोत्ता झील (कमल के फूलों के कुंड) पर दीक्षा ग्रहण की। वर्तमान में अनोत्ता झील कुरुक्षेत्र में कहां है, ये शोध का विषय है।
कर्ण का टीले से मिल चुके हैं कई प्रकार के मृदभांड
यह पुरातात्विक स्थल मिर्जापुर गांव में स्थित है, जिसका संबंध महाभारत के नायक दानवीर कर्ण से जोड़ा जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह टीला कभी राजा कर्ण का किला होता था। इस टीले का सर्वेक्षण सर्वप्रथम कनिंघम ने तथा उत्खनन डीबी स्पूनर ने किया था।
टीले से उत्खनन से प्राप्त अवशेषों को 400 से 100 ईसा पूर्व तथा 100 ईपू से 300 ई तक के दो कालों में विभाजित किया गया। अवशेषों में धूसर चित्रित मृदभांड(मिट्टी के बर्तन), लाल चमकीले मृदभांड तथा काली पॉलिश वाले मृदभांड प्राप्त हुए। इस टीले से मध्यकालीन बस्तियों के भी अवशेष मिल चुके हैं।
कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव मदन मोहन छाबड़ा ने कहा कि धर्मनगरी में विरासतों को संभालने का काम बहुत अच्छे से किया जा रहा है। जितने भी पुराने मंदिर, तीर्थ व ऐतिहासिक स्थल थे उनमें से कईयों का जीर्णोद्धार किया जा चुका है और कईयों पर काम चल रहा है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल के दिशा निर्देश पर यह कार्य किए जा रहे हैं। दयालपुर स्थित आपगा तीर्थ की बात की जाए तो वहां पहले स्थिति काफी खराब थी। पहले फेस में उस स्थित को सुधारा गया अब दूसरे फेस में तीर्थ का सुंदरीकरण किया जाएगा। ज्योतिसर स्थित गीता के उपदेश का साक्षी वट वृक्ष हमारी सबसे बड़ी धरोहर है। यूनेस्को विश्व धरोहर ने अभी पहाड़ों को भी अपने अंतर्गत लिया है। धर्मनगरी की विरासत भी यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल हो इसके लिए हम लगातार प्रयासरत हैं। कुरुक्षेत्र को हरियाणा की सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है।
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