Bhai Panchami Vrat Katha 2024: भाई पंचमी के दिन पढ़ें यह कथा, जीवन में बनी रहेगी सुख-शांति!
Rishi Panchami Vrat Katha In Hindi: हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार, ऋषि पंचमी हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। गुरु पंचमी और भाई पंचमी दो अलग नाम हैं जो इस उत्सव को बताते हैं। इस दिन पूजन करके व्रत कथा का पाठ करने से व्रत सफल होता है और सभी पाप दूर होते हैं।
Bhai Panchami Vrat Katha: हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है। जो सप्तऋषियों के नाम पर है। इस दिन सप्त ऋषि की पूजा और व्रत भी किया जाता है। महिलाओं के लिए यह त्योहार बहुत अलग है। रक्षाबंधन को अपने भाई को राखी नहीं बांध पाने वाली बहनें इस दिन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध सकती हैं। यह व्रत भी सभी प्रकार के पापों से मुक्ति देता है और जीवन में सुख-शांति लाता है।
ऋषि पंचमी की व्रत कथा: सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित राजा था। वह ऋषिओं की तरह थे। सुमित्र उनके राज्य में एक किसान था।उसकी पत्नी जयश्री एक बहुत ही पतिव्रत थी। उसकी पत्नी एक बार वर्षा ऋतु में खेती करते हुए रजस्वला हो गई। वह गर्भवती होने के बाद भी घरेलू काम करती रही। दोनों लोग कुछ समय बाद मर गए। ऋतु दोष के अलावा इन दोनों का कोई अपराध नहीं था, इसलिए जयश्री एक कुतिया बन गईं और सुमित्र को एक बैल की योनी मिली। इसलिए वे दोनों अपने पूर्व जन्म का पूरा विवरण नहीं भूले।
अपने बेटे सुचित्र के साथ वे बैल और कुतिया के रूप में उसी नगर में रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र ने अपने अतिथियों को पूरा सम्मान दिया। उसने अपने पिता के श्राद्ध के दिन अपने घर में ब्राह्मणों को खाने के लिए नाना खाना बनाया। रसोई में खीर के बर्तन में विष उगलते हुए एक सांप ने उसकी पत्नी को बाहर निकाला। सुचित्र की मां, कुतिया की तरह, दूर से सब देख रही थी। उसने अपने पुत्र को ब्रह्महत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया जब उसकी बहू आई। सुचित्र की पत्नी चंद्रवती ने कुतिया को मारते हुए चूल्हे से जलती लकड़ी निकाल दी।
डंडे से घायल कुतिया भागने लगी। सुचित्र की बहू ने चौके में जो कुछ भी बचा रहता था, सब कुतिया को खाने के लिए दिया, लेकिन क्रोध में उसने उसे भी बाहर फेंक दिया। खाना फिकवाकर बर्तन साफ करके फिर से खाना बनाकर ब्राह्मणों को खिलाया। रात में भूख से व्याकुल होकर वह अपने पूर्व पति, जो कुतिया बैल की तरह रहता था, के पास आई और कहा, हे स्वामी! आज मैं भूख से मर रही हूँ। मेरा पुत्र मुझे हर दिन खाना देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। अपने पुत्र को ब्रह्महत्या के पाप से बचाने के लिए सांप के विष वाले खीर के बर्तन को छूकर अपवित्र कर दिया।
इसलिए बहू ने मुझे मार डाला और खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया। तब बैल ने कहा, हे भद्रे! तुम्हारे पापों के कारण मैं भी इस जगह आ गया हूँ और आज बोझा ढ़ोते हुए मेरी कमर टूट गई है। आज भी मैं दिनभर खेत में हल में जुटा रहता हूँ। आज भी मेरे पुत्र ने मुझे खाना नहीं दिया और मुझे बहुत पीटा। उसने मुझे इतना दुःख देकर इस श्राद्ध को विफल कर दिया। उसने अपने माता-पिता की बात सुनते हुए दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर दुखी होकर वन की ओर चला गया।
वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता ने किन गलतियों से इन नीच योनियों को प्राप्त किया है और अब इनसे छुटकारा कैसे मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि ने कहा कि पत्नी के साथ ऋषि पंचमी का व्रत करो और अपने माता-पिता को उसका फल दो। भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को अपने चेहरे को शुद्ध करके मध्याह्न में एक नदी में स्नान करना, नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्त ऋषियों का पूजन करना। यह सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नी के साथ पूजन व्रत किया। उसकी कृपा से माता-पिता दोनों जीवों से छुटकारा पाए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह बैकुंठ जाती है और सभी सांसारिक सुखों को भोगती है।