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Economic inequality : भारत के 40 प्रतिशत धन पर जनसंख्या के 1 प्रतिशत पूंजीपतियों का अधिकार

Economic inequality in India : भारत, जिसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है, एक गंभीर आर्थिक असमानता का सामना कर रहा है। हाल के रिपोर्टों और अध्ययनों के मुताबिक, भारत की कुल संपत्ति का 40 प्रतिशत हिस्सा मात्र 1 प्रतिशत पूंजीपतियों के पास है। यह आँकड़ा न केवल चौंकाने वाला है बल्कि सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने पर इसके प्रभाव को लेकर गहरी चिंताएं भी पैदा करता है।

 
Economic inequality : भारत के 40 प्रतिशत धन पर जनसंख्या के 1 प्रतिशत पूंजीपतियों का अधिकार

Haryana Update : Economic inequality in India - यह खबर उन नीतियों, प्रक्रियाओं, और संरचनाओं पर प्रकाश डालती है, जिन्होंने आर्थिक असमानता को इस हद तक बढ़ा दिया है। साथ ही, यह बताती है कि इस असमानता के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नतीजे क्या हो सकते हैं और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।

भारत में आर्थिक असमानता: आंकड़ों की कहानी

ऑक्सफैम और वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब जैसे प्रतिष्ठित संगठनों द्वारा जारी रिपोर्टों ने भारत में आर्थिक असमानता की एक स्पष्ट तस्वीर पेश की है।

  • 1 प्रतिशत अमीर: भारत के कुल धन का 40 प्रतिशत इनकी मिल्कियत है।
  • 10 प्रतिशत सबसे अमीर: देश की 77 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा।
  • 50 प्रतिशत गरीब जनसंख्या: कुल संपत्ति का सिर्फ 13 प्रतिशत हिस्सा।

यह असमानता समय के साथ बढ़ती ही जा रही है। उदाहरण के लिए, 2000 के दशक में भारत की आर्थिक नीति उदारीकरण की ओर बढ़ी, और इसके बाद से अमीरों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई।

असमानता के प्रमुख कारण

1. आर्थिक नीतियों का झुकाव

भारत में 1991 के उदारीकरण के बाद, निजीकरण और बाजार आधारित नीतियों को प्राथमिकता दी गई। इससे बड़े उद्योगपतियों और कॉर्पोरेट घरानों को फायदा हुआ, जबकि गरीब और मध्यवर्गीय तबका पीछे छूट गया।

2. शिक्षा और स्वास्थ्य तक सीमित पहुंच

गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बेहद कमजोर है। इस वजह से गरीब तबका आर्थिक रूप से ऊपर उठने में असमर्थ रहता है।

3. कर प्रणाली की कमियाँ

भारत की कर प्रणाली अमीरों से अपेक्षित कर वसूलने में असफल रही है। अमीर वर्ग अक्सर टैक्स बचाने के लिए कर-छूट योजनाओं और काले धन के माध्यम से सिस्टम का फायदा उठाता है।

4. तकनीकी और डिजिटल विभाजन

डिजिटल युग में तकनीकी प्रगति का फायदा केवल उन लोगों को हुआ, जो पहले से ही संसाधन-संपन्न थे। तकनीकी क्षेत्र में नौकरी और कारोबार के अवसरों ने अमीरों को और अधिक लाभ पहुंचाया।

आर्थिक असमानता के दुष्परिणाम

1. सामाजिक अस्थिरता और असंतोष

धन के असमान वितरण से समाज में वर्ग संघर्ष, अपराध, और सामाजिक तनाव बढ़ सकता है। यह न केवल सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि लंबे समय में देश की स्थिरता पर भी प्रभाव डालता है।

2. लोकतंत्र पर प्रभाव

जब धन का बड़ा हिस्सा कुछ पूंजीपतियों के पास होता है, तो वे नीति-निर्माण और राजनीति पर प्रभाव डाल सकते हैं। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की निष्पक्षता पर खतरा मंडराता है।

3. आर्थिक विकास पर असर

जब समाज का बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से कमजोर होता है, तो उसकी क्रय शक्ति सीमित हो जाती है। इससे समग्र आर्थिक विकास की गति धीमी हो जाती है।

कैसे कम की जा सकती है आर्थिक असमानता?

1. प्रगतिशील कर सुधार

अमीरों पर उच्च कर लगाने और कर-चोरी रोकने के लिए सख्त नियम लागू किए जा सकते हैं। यह धन का पुनर्वितरण करने और सामाजिक कल्याण में सुधार लाने में मदद करेगा।

2. सार्वजनिक सेवाओं में निवेश

शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के क्षेत्रों में निवेश बढ़ाकर गरीब और मध्यम वर्ग को सशक्त बनाया जा सकता है।

3. न्यूनतम आय गारंटी

गरीब तबके के लिए न्यूनतम आय गारंटी योजना (Universal Basic Income) लागू करके उनकी आर्थिक स्थिति सुधारी जा सकती है।

4. रोजगार सृजन और कौशल विकास

गरीब और बेरोजगार युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करना और रोजगार के अवसर बढ़ाना असमानता को कम करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है।

5. वित्तीय समावेशन

बैंकिंग सेवाओं, किफायती ऋण, और बीमा योजनाओं तक गरीब तबके की पहुंच सुनिश्चित करना आवश्यक है।

वैश्विक संदर्भ: भारत की स्थिति

आर्थिक असमानता की समस्या सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है।

  • अमेरिका: वहाँ भी 1 प्रतिशत अमीरों के पास देश के अधिकांश धन का कब्जा है।
  • नॉर्डिक देश: स्वीडन, नॉर्वे और डेनमार्क जैसे देशों में प्रगतिशील कर व्यवस्था और मजबूत सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के कारण आर्थिक असमानता कम है।
  • चीन: गरीबी उन्मूलन की रणनीति, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में भारी निवेश, ने असमानता को कम करने में मदद की है।

भारत इन उदाहरणों से सीखकर अपनी नीतियों में सुधार कर सकता है।

निष्कर्ष: संतुलित विकास की आवश्यकता

भारत में 40 प्रतिशत धन पर 1 प्रतिशत पूंजीपतियों का अधिकार केवल आर्थिक असमानता का मुद्दा नहीं है; यह देश के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक भविष्य के लिए भी खतरा है।
सरकार, नीति-निर्माताओं, और समाज को मिलकर इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना होगा। समावेशी विकास की ओर कदम बढ़ाना, जहाँ समाज के हर वर्ग को समान अवसर और संसाधन मिलें, आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

जब तक आर्थिक असमानता को प्रभावी ढंग से कम नहीं किया जाएगा, तब तक भारत की आर्थिक प्रगति का लाभ केवल कुछ लोगों तक सीमित रहेगा। समय की मांग है कि हम एक ऐसे भारत की कल्पना करें जो न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध हो, बल्कि न्यायपूर्ण और संतुलित भी हो।

 

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