Khilari Cow: जानिए क्या है खिलारी गाय की विशेषताएँ व लक्षण
Khilari Cow: खिलारी गाय की विशेषताएं, उत्पत्ति और उपयोग जानें: भारत में गाय का पालन कई वर्षों से चलता आ रहा हैं। खेती के साथ-साथ किसान गायो को भी पाल रहे हैं। भारत में बहुत सारी देसी गायों की नस्लें हैं, हर एक की अपनी खासियत है। इनमें से कुछ गायो को आपने देखा होगा और कुछ को सुना होगा, इन्हीं में शामिल हैं पश्चिमी महाराष्ट्र की एक खिलारी गाय।
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इस नस्ल को शिकारी, थिल्लर या मंदेशी भी कहते हैं। इस नस्ल का अधिकांश हिस्सा पश्चिमी महाराष्ट्र में पाया जाता है, जो महाराष्ट्र और कर्नाटक के जिले हैं। इस नस्ल का नाम खिलार है, जिसका अर्थ है पशुओं का झुंड।
शरीर: खिलारी मवेशी छोटे आकार के हैं। इनका शरीर बेलनाकार होता हैं और कमर पर छोटा सा कूबड़ निकला होता हैं।
शरीर का रंग: ये सभी किस्में रंग में बहुत अलग हैं। दक्कन पठार की खिल्लारी गाय पूरी तरह से सफेद होती है। नर मवेशी के पीछे और आगे गहरे रंग के होते हैं। इसके अलावा यह मवेशी मुख्य रूप से स्लेटी-सफेद रंग की होती हैं।
सिर और सींग: खिलारी गायो के अंग मजबूत हैं। इनके सींग लंबे होते हैं, उनका सिंर तंग होता है, उनकी खाल हल्की (पतली) होती है और उनके कान छोटे होते हैं।
वजन: इस नस्ल के नर 450 किलो और मादा 360 किलो होते हैं। इसमें लगभग 4.2 प्रतिशत दूध की वसा होती है। यह नस्ल प्रति दिन 240–515 किलो दूध देती है।
मुख्य लक्षण: खिलारी गाय का रंग है। दक्कन के पठार की खिल्लरी, म्हसवद और अटपाडी महल प्रकार भूरे सफेद रंग के होते हैं; नर के अग्रभाग और पिछले भाग पर गहरा रंग है, और चेहरे पर विचित्र भूरे और सफेद धब्बे हैं। खिल्लारी मवेशी बहुत छोटे हैं।
खिलारी गाय का शरीर गोल है।
खिलारी मवेशी की कमर पर एक छोटा सा कूबड़ है।
खिलारी मवेशी का सिर तंग है और उसके सींग लंबे हैं।
खिलारी गाय का उपयोग: खिलारी मवेशियों को मुख्य रूप से भारी वस्तुओं को ढोने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस नस्ल की गायें कम दूध देती हैं और लाभदायक दूध उत्पादन नहीं करती हैं।